पहले अपने आपसे एक हो जाओ. यह युनियो मिस्टिका का पहला कदम है : और फिर दूसरा और आखिरी कदम है: अस्तित्व के साथ एक होना. दूसरा आसान है. पहला इसलिए मुश्किल हो गया है, क्योंकि इतने सारे (कंडीशनिंग) सँस्कार, इतनी शिक्षा, और सभ्य होने के इतने सारे प्रयास हो रहे हैँ. पहला मुश्किल हो गया है.
यदि तुमने अपने आपको स्वीकार करने का और अपने आपसे प्रेम करने का पहला कदम उठा लिया है, क्षण क्षण ....उदाहरण के लिए, तुम उदास हो, इस समय तुम उदास हो. तुम्हारी पूरी कंडीशनिंग तुमसे कहती है, "तुम्हेँ उदास नहीं होना चाहिए. यह बुरा है. तुम्हेँ उदास नहीं होना चाहिए. तुम्हेँ खुश रहना होगा." अब विभाजन हुआ, अब समस्या है.
तुम उदास हो: यह इस क्षण की सच्चाई है.
और तुम्हारी कंडीशनिंग, तुम्हारा मन कहता है, "तुम्हेँ ऐसा नहीं होना चाहिए, तुम्हें खुश होना चाहिए. मुस्कुराओ! तुम्हारे बारे में लोग क्या सोचेँगे? "
अगर तुम इतने उदास होओ तो शायद तुम्हारी प्रेमिका तुम्हेँ छोडकर चली जाए, अगर तुम इतने उदास होओ तो तुम्हारे दोस्त तुम्हेँ छोडकर चले जाएँ, और अगर तुम इतने उदास होओ तो तुम्हारा व्यापार नष्ट हो जाएगा. तुम्हेँ हँसना पडता है, तुम्हेँ मुस्कुराना पडता है, और कम से कम दिखावा करना होता है कि तुम खुश हो. यदि तुम एक डॉक्टर हो तो तुम्हारे मरीजों को अच्छा नहीं लगेगा कि तुम इतने उदास रहते हो. वे एक ऐसा डॉक्टर चाहते हैं जो खुश है, हंसमुख है, स्वस्थ है, और तुम इतने उदास लग रहे हो. मुस्कुराओ! अगर तुम असली मुस्कान नहीं ला सकते तो एक झूठी मुस्कान ला लाओ, लेकिन मुस्कुराओ!. कम से कम, दिखावा तो करो, अभिनय करो.
यही समस्या है: तुम अभिनय करते हो, दिखावा करते हो. तुम मुस्कुराते हो, लेकिन फिर तुमने सच को दबा दिया, तुम नकली हो गए.
और समाज द्वारा नकली की सराहना की जाती है. नकली संत बन जाता है, नकली महान नेता बन जाता है, और नकली महात्मा बन जाता है. और हर कोई नकली के पीछे चलना शुरू करता है. नकली तुम्हारा आदर्श है.
इसलिए तुम स्वयँ को जानने में असमर्थ हो. अगर तुम अपने आपको स्वीकार नहीं कर सकते तो स्वयँ को कैसे जान सकते हो? तुम हमेशा से अपने अँतरतम का दमन कर रहे हो. तो फिर क्या करना है? जब तुम उदास होओ, तो उदासी को स्वीकार करो: यह तुम हो. मत कहो, "मैं उदास हूँ," मत कहो कि तुम उदासी से अलग कुछ हो. बस इतना ही कहना कि "मैं उदासी हूँ. इस समय मैं उदासी हूँ. "
अपनी उदासी को पूरी प्रामाणिकता में जीयो.
और तुम हैरान होओगे कि तुम्हारे अँतरतम मेँ एक चमत्कारी दरवाजा खुलता है. अगर तुम अपनी उदासी के साथ रह सको, बिना कोई खुशी की छवि लिए, तो तुम तुरंत खुश हो जाओगे क्योंकि विभाजन चला जाता है. अब कोई विभाजन नहीं है. "मैं उदासी हूँ"-- और किसी आदर्श का या कुछ और होने का कोई सवाल ही नहीँ है. तो वहाँ कोई कोशिश नहीं, कोई विवाद नहीं है. "मैं केवल यही हूँ" और तनाव एकदम दूर हो जाता है. और उस तनाव रहितता में प्रसाद है, और उस तनाव रहितता में प्रसन्नता है.
सभी मनोवैज्ञानिक दर्द इसीलिए मौजूद हैँ क्योंकि तुम विभाजित हो. दर्द का मतलब है विभाजन. और आनंद का मतलब है कोई विभाजन नहीँ. यह तुम्हेँ विरोधाभासी लगेगा: यदि कोई उदास है, तो उदासी को स्वीकार करने से प्रसन्न कैसे हो सकता है? यह विरोधाभासी लगेगा, लेकिन ऐसा है नहीँ. इसकी कोशिश करो.
मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि खुश होने की कोशिश करो, मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि, "अपनी उदासी स्वीकार करो ताकि तुम खुश होओ "-- मैं यह नहीं कह रहा हूँ. अगर वह तुम्हारी प्रेरणा है तो कुछ नहीं होगा, तुम अब भी संघर्ष कर रहे हो. तुम अपनी आँख के कोने से देख रहे होओगे: "इतना समय गुजर गया है और मैंने उदासी को स्वीकार भी किया है, और मैं कह रहा हूँ कि "मैँ उदासी हूँ", और आनन्द भी नहीं आ रहा है." यह उस तरह नहीं आएगा.
खुशी एक लक्ष्य नहीं है, यह एक उप उत्पाद है.
यह एकता का, एकात्मता का सहज परिणाम है. बस इस उदासी के साथ एकजुट हो जाओ, न किसी उद्देश्य से, न किसी विशेष प्रयोजन के लिए. वहाँ किसी भी प्रयोजन का कोई सवाल नहीं है. तुम इस क्षण ऐसे हो, इस क्षण यही तुम्हारी सच्चाई है. और अगले ही पल तुम क्रोधित हो सकते हो: वह भी स्वीकार करो. और अगले ही पल तुम कुछ और भी हो सकते हो:उसे भी स्वीकार करो.
पल पल जीओ, अपरिसीम स्वीकृति के साथ, बिना किसी भी विभाजन के, और तुम आत्म ज्ञान के रास्ते पर हो. आत्म ज्ञान उपनिषदों को पढ़ने की और चुपचाप बैठकर दोहराने की बात नहीं है, "अहम् ब्रह्मास्मि. मैं भगवान हूँ" ये सभी प्रयास मूर्खतापूर्ण हैं. या तो तुम्हेँ पता है कि तुम भगवान हो, या तुम नहीं जानते. तुम अपनी पूरी ज़िंदगी दोहराये चले जा सकते हो, " अहम् ब्रह्मास्मि. मैं भगवान हूँ" तुम इसे दोहराने में अपना पूरा जीवन बर्बाद सकते हो, लेकिन तुम्हेँ यह पता नहीं होगा.
यदि तुम जानते हो तो इसे दोहराने का कोई मतलब नहीं है. तुम यह क्यों दोहरा रहे हो? अगर तुम्हें पता है, तो तुम्हें पता है. अगर तुम नहीं जानते, तो पुनरावृत्ति द्वारा कैसे पता कर सकते हो? जरा इसकी सारी मूर्खता को देखो.
लेकिन इस देश में यही किया जा रहा है और अन्य देशों में, मठों और आश्रमों में भी. लोग क्या कर रहे हैँ? तोते की तरह दोहरा रहे हैँ.
मैं तुम्हें एक बिलकुल अलग दृष्टिकोण दे रहा हूँ. ऐसा नहीं है कि बाइबिल या वेदों की पुनरावृत्ति के द्वारा तुम ज्ञानी हो जाओगे. नहीँ, तुम केवल एक जानकार बनोगे. तो फिर स्वयँ को कैसे जाना जाए ?
विभाजन छोडो: विभाजन पूरी समस्या है. तुम अपने आपके खिलाफ हो. जो भी आदर्श हैँ, जो तुम्हारे भीतर इस तरह का विरोध पैदा करते हैँ उनका त्याग करो.
तुम जैसे हो, हो; खुशी से, आभार के साथ उसे स्वीकार करो.
अचानक एक समस्वरता महसूस होगी. तुम्हारे दो केँद्र : आदर्श केँद्र और वास्तविक केँद्र, सँघर्ष करने के लिए बचेँगे ही नहीं. वे एक-दूसरे मेँ घुल मिल जाएँगे और विलीन होँगे.
वस्तुत: यह उदासी नहीँ है जो तुम्हेँ दुख दे रही है, यह व्याख्या कि उदासी गलत है, तुम्हेँ दुख दे रही है और यह एक मनोवैज्ञानिक समस्या बन जाती है. क्रोध दुखद नहीं है, यह विचार कि क्रोध ग़लत है, मानसिक उत्तेजना पैदा करता है. यह व्याख्या दुख देती है, तथ्य दुख नहीं देता. तथ्य तो हमेशा मुक्तिदायी होता है.
जीसस कहते हैं सत्य मुक्त करता है." और वह काफी महत्वपूर्ण है. हाँ, सच मुक्त करता है, लेकिन सत्य के बारे में जानना नहीं . सत्य हो जाओ, और मुक्ति हो जाती है. तुम्हेँ इसे लाने की जरूरत नहीँ है, इसके लिए इंतजार करने की जरूरत नहीँ है: यहाँ तत्क्शण होता है .
सत्य कैसे हुआ जाए? तुम / पहले ही सत्य हो
फिर तो क्रोध बहुत सुंदर है. यह जीवन और जीवन-शक्ति है. फिर तो सेक्स भी सुंदर है, क्योंकि यह रचनात्मकता है.
जब कोई व्याख्या नहीं है, तो सब सुंदर है. जब सभी सुंदर है, तुम (रिलैक्स) निश्चिंत हो गए.
उस निश्चिंतता मेँ तुम अपने स्वयं के स्रोत में गिर जाते हो, और उससे आत्म ज्ञान होता है. स्वयँ को जानो, इसका मतलब है अपने ही स्रोत में गिरना. यह ज्ञान का सवाल नहीं है, यह आंतरिक परिवर्तन का सवाल है.
और मैं किस परिवर्तन के बारे में बात कर रहा हूँ? मैं तुम्हें कोई भी आदर्श नहीं दे रहा हूँ कि तुम्हेँ इस तरह होना चाहिए. मैं यह नहीं कह रहा हूँ कि तुम जो हो उसको बदल दो और कुछ और हो जाओ. तुम जो हो उसी मेँ विश्रामपूर्ण हो जाओ और देखो.
क्या तुमने सुना कि मैं क्या कह रहा हूँ? बस इस बिँदु को देखो: यह मुक्ति है. और एक महान समस्वरता, एक महान संगीत सुनाई देता है. यह संगीत आत्म ज्ञान है. और तुम्हारा जीवन बदलने लगता है.
फिर तुम्हारे पास एक जादू की कुंजी होती है, जो सभी ताले खोल देती है.
यदि तुम उदासी स्वीकार करते हो, उदासी समाप्त हो जाएगी. अगर उदासी को स्वीकार किया जाए तो कब तक तुम उदास रह सकते हो? यदि तुम उदासी को स्वीकार सको तो तुम उसे अपने अँतरतम मेँ आत्मसात कर सकोगे, यह तुम्हारी गहराई हो जाएगी.
ओशो: युनियो मिस्टिका, भाग 1, # 3
ओशो