shabd-logo

जहाँ जमीं और आसमान दोनों साथ चलते हैं...

13 सितम्बर 2015

70 बार देखा गया 70
मैंने जिंदगी भर शिकायतें की, मेरा जीवन नरक बन गया... मेरा जीवन कुछ पीछे सरक गया... जब मैंने खुद की शिकायत खुद से की... तो जीवन पुष्प खिल उठा..... आनंद जीवन में शामिल हो उठा, प्रेम की भाषा सीख गया, मानो आह्लाद की बारिश में भीग गया.... हाँ कुछ कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ! मैंने जिंदगी भर, लोगों में एक अलगाव देखा, स्वयं की नादानी से, दूसरों में घृणा का भाव देखा, मेरा जीवन कटूमय, विषाक्त हो गया व्यर्थ, अर्थहीन चीज़ों में आसक्त हो गया... जब मैंने बेवजह, हँसना मुस्कुराना सीखा खुद ही खुद में, तो जीवन मेरा हो गया शुद्ध जीवन सरीखा मिट गया वो आयाम जो था कडुआ तीखा, सिमटना तो दूर मैं फ़ैल गया, निर्मल चित्त हुआ हुआ मेरा सब मैल गया हाँ कुछ कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ! आओं कुछ कदम साथ चलते हैं, गिरते-रुकते फिर संभलते हैं, हाथों में लिए हाथ चलते हैं चलो चले चलते हैं वहां जहाँ जमीं और आसमान दोनों साथ चलते हैं... आओं कुछ कदम साथ चलते हैं......सब को सुबह की नमस्ते!
1

अब रह रह गुस्सा मुझे आता नही है

12 सितम्बर 2015
0
3
1

अब रह रह गुस्सा मुझे आता नही है,सब कुछ ठहरा हुआ, कुछ जाता नही हैकुछ पल हैं जो ख़ामोशी लेकर आते हैं,वरना पल कोई अब व्यर्थ जाता नही है!!मैं अब शिकायती नही किफायती हो गया हूँपहले थोडा सा बदमाश था, अब शरीफ निहायती हो गया हूँवैसे अब यात्रा का आनंद ही कुछ और है....जब उम्र के इस पड़ाव पर मैं, बच्चा शरारती हो

2

जहाँ जमीं और आसमान दोनों साथ चलते हैं...

13 सितम्बर 2015
0
5
0

मैंने जिंदगी भर शिकायतें की, मेरा जीवन नरक बन गया...मेरा जीवन कुछ पीछे सरक गया...जब मैंने खुद की शिकायतखुद से की...तो जीवन पुष्प खिल उठा.....आनंद जीवन में शामिल हो उठा,प्रेम की भाषा सीख गया, मानो आह्लाद की बारिश में भीग गया....हाँ कुछ कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ!मैंने जिंदगी भर, लोगों में एक अलगाव देखा,

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए