मैंने जिंदगी भर शिकायतें की,
मेरा जीवन नरक बन गया...
मेरा जीवन कुछ पीछे सरक गया...
जब मैंने खुद की शिकायत
खुद से की...
तो जीवन पुष्प खिल उठा.....
आनंद जीवन में शामिल हो उठा,
प्रेम की भाषा सीख गया,
मानो आह्लाद की
बारिश में भीग गया....
हाँ कुछ कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ!
मैंने जिंदगी भर, लोगों में एक अलगाव देखा,
स्वयं की नादानी से, दूसरों में घृणा का भाव देखा,
मेरा जीवन कटूमय,
विषाक्त हो गया
व्यर्थ, अर्थहीन चीज़ों में
आसक्त हो गया...
जब मैंने बेवजह, हँसना मुस्कुराना सीखा
खुद ही खुद में,
तो जीवन मेरा हो गया शुद्ध जीवन सरीखा
मिट गया वो आयाम जो था कडुआ तीखा,
सिमटना तो दूर मैं फ़ैल गया,
निर्मल चित्त हुआ हुआ मेरा
सब मैल गया
हाँ कुछ कुछ ऐसा ही हुआ मेरे साथ!
आओं कुछ कदम साथ चलते हैं,
गिरते-रुकते फिर संभलते हैं,
हाथों में लिए हाथ चलते हैं
चलो चले चलते हैं वहां
जहाँ जमीं और आसमान दोनों साथ चलते हैं...
आओं कुछ कदम साथ चलते हैं......सब को सुबह की नमस्ते!