अब रह रह गुस्सा मुझे आता नही है,
सब कुछ ठहरा हुआ, कुछ जाता नही है
कुछ पल हैं जो ख़ामोशी लेकर आते हैं,
वरना पल कोई अब व्यर्थ जाता नही है!!
मैं अब शिकायती नही किफायती हो गया हूँ
पहले थोडा सा बदमाश था, अब शरीफ निहायती हो गया हूँ
वैसे अब यात्रा का आनंद ही कुछ और है....
जब उम्र के इस पड़ाव पर मैं, बच्चा शरारती हो गया हूँ!!
मैं छुद्र था, कब विराट होने लगा पता न चला,
प्रक्रिया भी विराट होने की अब कौन जाने भला
मैंने पाया भी बहुत कुछ, लेकिन किस राह से,
हूँ चला, ये तो जाने वही जो राही है संभला!!---बहुत दिनों बाद कुछ पंक्तियाँ (भाव पुष्प)समर्पित कर रहा हूँ!