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जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा–: शौचालय राशि

12 सितम्बर 2021

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  "जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा–: शौचालय राशि" 




कल गुजर रहा था मैं पड़ोस वाले भैया के घर के आगे कि गली से। कान में कुछ शब्द पड़े। पंच जी आए हुए थे पड़ोसी के घर में। बाते चल रही थी सरकार के द्वारा शौचालय निर्माण कार्य के बारे में।


मेरे गांव के सारे लोगो ने फार्म भरकर महीने के पहले ही तारीख को जमा कर डाला था क्योंकि सरकारी पैसे कौन छोड़ेगा भला। मैं सोच रहा था कि पड़ोसी ने तो खुद शौचालय बनवा डाला है। भला क्यों पधारे हुए हैं उनके घर में पंच जी?


मेरे कानो में कुछ और आवाजे सुनाई पड़ी। मै उनके दरवाजे के पीछे कि ओर छुपकर खड़ा हो गया। मैने सुना–" जी आपकी मर्जी। सरकारी कार्य है शौचालय निर्माण करवाना। आपने पहले से ही बनवा डाला है तो मैं आपको,आपके शौचालय के पैसे नगद दे दूंगा क्योंकि सरकारी पैसे है " जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा"  लीजिए , देने में कोई आपत्ति नहीं है मुझे। बस थोड़े से पैसें मुझे भी दे देंगे अगर तो फिर देखना कैसे दो दिन के अंदर आपको सरकारी पैसे मिलते हैं।"

सुनने के बाद मैं अपने घर चला आया। अपने घर के गलीचा में कुर्सी पर बैठ कर सोचने लगा। मैने भी तो अपने पैसों से शौचालय बनवा डाला है, तो क्या थोड़े से पैसे उस पंच के मुंह में मारकर मैं भी सरकारी पैसे नही पा सकता?

मै इंतजार करने लगा पंच जी का कि कब आएंगे मेरे घर। जैसे पड़ोसी के घर आए थे बीते रोज। मैने एक के मुंह से सुन रखा था कि मेरा भी नाम " सरकारी शौचालय निर्माण राशि हितग्राही" लिस्ट में लिखाया हुआ है । नींद उड़ गई। पंच जी का कोई शोर– संदेश न मिला। 

सोचने लगा कि कही पंच जी, ही ने तो नही डकार लिए मेरे सरकारी पैसे?

" जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा" सरकारी शौचालय के बदले पैसे ही तो चाह रहा हूं।
मैने सोचा लिखित दरख्वास्त भेज देता हूं संबंधित कार्यालय को जिससे मुझे यह ज्ञात हो जाए कि " मेरा नाम लिस्ट में है लेकिन मेरे घर अभी तक कोई शौचालय निर्माण के मुद्दे को लेकर क्यों नहीं आ सका?"

एक दिन मैने लिख डाला फिर कार्यालय जा पहुंचा। दरख्वास्त वाले कागज़ एक कर्मचारी को मैने देते हुए रौबदार आवाज में कहा –" कृपया मेरी समस्या पर अतिशीघ्र ध्यान दे। मैं मध्यम वर्गीय परिवार से ताल्लुक रखता हूं। शौचालय निर्माण राशि से वंचित हूं। कृपया अपनी ओर से कोई पहल करें धन्यवाद।"
प्रतिउत्तर में उन महोदय ने आंखे तरेर कर मुझे देखा फिर कहा–" आपको क्या लगता है कि हम यहां बैठे –बैठे मक्खी मारते हैं?
मै मन में कुढ़ते हुए बड़बड़ाया –: लगता तो ऐसा ही है वरना सरकारी शौचालय निर्माण राशि हमे कब के प्राप्त हो चुके होते। उनकी बाते जारी थी मैने सुना–"1 महीने का वक्त लगेगा फिर आपको राशि से संबंधित जानकारी मिल जाएगी।"
मै बड़बड़ाते रह गया मन ही मन–"क्या 1 महीने बाद भी सिर्फ जानकारी ही मिलेगी? ये तो आंख में धूल झोंक रहे है जनाब 🤥?
उनकी ढिढाई से भरी आवाज मेरे कानों में पड़ी, जिसके बाद मैं अपने ख्यालों से बाहर आया।
वे बोले –: " अब आप जा सकते है।"
"तो मैं कौनसा सारी जिंदगी यहां खड़े रहकर बिताने आया हूं।" मै बड़बड़ाते हुए वहां से निकल आया।


दिन,सप्ताह तेजी से बीतने लगे।1 महीना पूरा होते –होते मेरे आसपास के पड़ोसियों को "जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा" मिलती गई, और अभी भी मिलती ही जा रही हैं। मैं उन्हे सरकारी शौचालय निर्माण राशि प्राप्त करते हुए देख  खून का घूंट पीता रह गया। मेरा कलेजा जल रहा था क्योंकि सबको पंच जी के हाथों सरकारी शौचालय निर्माण राशि प्राप्त हो रही थी। एक मैं ही अभागा वंचित हूं।

आखिरकार महीना व्यतीत हो गया। पुलकित निगाहें उस कार्यालय को देखते ही चमक उठी। मन में बस यह ख्याल है कि सरकारी शौचालय निर्माण राशि प्राप्त कर लूंगा और जो पहले से ही शौचालय निर्माण करवा डाला हूं उसका नाम लिख दूंगा।
मै अंदर गया। देखा कि वही महोदय कर्मचारी कुर्सी पर पसरे हुए हैं।
मुझे  देखते ही वे टेढ़ी मुंह करके अजीब से भाव चेहरे पर लाते जा रहे है। मै कमर कसकर तैयार हो गया उसका सामना करने के लिए।
मुझे तो यह व्यक्ति अक्ल का दुश्मन जान पड़ रहा हैं लेकिन पता नहीं कैसे ये महाशय,यह  नौकरी हजम किए बैठे है कमबख्त?
वे कुढ़ते हुए बोले –: क्या काम है? क्यों आए हो?
मै भला मानुष गड़े मुर्दे उखाड़ने लगा। वे थोड़े चिड़चिडें से नजर आए। वे मुझे ऐसे  घुर रहे थे मानों मैं पाकिस्तानी हूं या फिर कोई सीरियल किलर। सरकारी शौचालय निर्माण राशि प्राप्त करने के लिए मै ललायित मानुष बिना किसी गुनाह के मुंह छिपाते हुए– सा खड़ा हुआ हूं।

मै सहजता से बोला–: "बस अब मुझे सरकारी शौचालय निर्माण राशि प्राप्त कराई जाए फिर मैं यहां नही आऊंगा।"

वे एक फार्म मेरी ओर खिसकाते हुए तेज आवाज में बोले –: अफसोस ! मेरे पास समय नहीं था जिसके चलते मै, तुम्हारे सरकारी शौचालय निर्माण राशि के बारे में जानकारी न जुटा सका। ये लो फार्म, फिर से भरकर जमा कर दो। अगले महीने आना, सरकारी शौचालय निर्माण राशि से संबंधित जानकारी प्राप्त करने।"

उन्होंने आग में घी डाल दिया। मै आग बबूला हो चुका था फिर मैंने वो फार्म झटके से पकड़ा। सबके निगाहों के सामने उस फार्म को लेकर फाड़ दिया मैने। चिथड़े–चिथड़े करके फार्म के टुकड़ों को हवा में उड़ते हुए मै बाहर कि ओर जाने वाले दरवाजे कि ओर मुखातिब हुआ।
" नही चाहिए मुझे "जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा" ,,, घुसखोरो,, मेरे घर में सरकारी शौचालय नहीं बल्कि अपने पैसों से बनवाया गया शौचालय है।" कहते हुए मैं पैर से जमीन को रौंदते हुए जैसे गया था वैसे ही लौट भी आया।



।।समाप्त।।


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जैसी ईच्छा वैसी भिक्षा–: शौचालय राशि
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एक शौचालय राशि कि चाहत रखने वाले आम आदमी कि लघु कथा।

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