24 अप्रैल 2022
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पानी और जीवन जाने कितने ही आकार बदलता है जब ये आसमान से आता है तो कई प्यासे मनो को खुशियाँ दे कर जाता है कभी ये पिघल कर बह जाता जब यह फुब्बारे में सजता है तो छोटी बूंदों स
याद आते हैवो बचपनके दोस्तवो छिनकरभाग जानाउनका टिफनजिसमे होते थेबिस्किट और टोस्टवो क्लास में चुपके सेलैटर सरकाना और पीछे से क्लाससे भाग जानावो चुपके सेअपने दोस्त केबैग में छिपाना नकलीसी छिपकलीफिर छुपक
मेरे मदर बोर्ड (god)जब मुझकोदी हार्ड डिस्क (aatma)भरी विंडो एक्स पीटू थौसेंद एंड सिक्सनीचे मेरे सीडी रोम (mom And Papa)ने भरा सॉफ्ट वेयरएंटीवायरस जो गुरु देव थेको किया उन्होंने हायरकुछ वायरस ने किया (
हर दर्द की तासीरहै माँहर क़द्र की तस्वीरहै माँआँखे भर आतीहे उसकी जबदर्द मुझे कोईसाताता हैडर रुलाता हेरातो कोकोई जबमाँ छिपा लेतीहै आँचलमें तबभूखा जब लौटताहूँ घर को वापसआपनी थाली भीपरोस देती हैऔर गर गर्
आते हुए रस्तेसे मैंने पुछाघर कब आएगायह सुन रास्तामंद सी मुस्कानछोड़ कर यह बोलाहे नव राहीतूने की है शुरुआतअभी ही थक गयातू इतनी जल्दीमै जाने कब सेबढ़ता ही जा रहा हूँचलता ही जा रहा हूँकितने ही रहगुजरकरते
मै केवल पढता हूँ कविता को कविता जो मेरे जीवन का सच कहती है मै डरता था जो भी कहने में वो अव केवल मेरी कविता कहती है
वो लंकेश भी क्या रावण था जेसको धेनु मां का अभिमान था वो दशानन भी क्या रावण था जिसे अव्धि मां का ज्ञान था वो दैत्येन्द्र भी क्या रावण था जेसको सहोदर से अनुराग था वो दशशीश भी क्या
खुशियों का कारवां ऐसा बढ़ता चला के गमो की काली घटा छंटती चली पड़ी प्रेम की फुहार ऐसी के तन बदन मेरा भीगता गया मौसम की तरह बदलता है जीवन रंगों की तरह बिखरती है हर ख़ुशी और गम की
कभी मै जेब को बड़ा परेशान करता था गलियां सी दे कर जेबों में ठूंसा जाता था जिसने चाहा जैसे चाहा लिया तोड़ा मरोड़ा मुह में दवा लिया थूंक लगा अंगूठे पर मुझे चिपचिपा दिया बच्चे तो जैसे मुह म
ओह मेरे भगवान् आज फिर में भूल गया अपने ही घर का रास्ता जो इन्ही में से कोई एक था में भूल गया उस टूटी सी देहरी का रास्ता जिसे माँ मिट्टी से लीप कर सजाकर सुगन्धित अगरबत्ती लगाकर यह कहती
कलम आज फिर हुयी शांत किसी शब्द के लिखने पर स्याही हुयी फिर आज ख़तम के कुछ शब्दों को हमने मोड़ना चाहा पर कलम हुयी आज फिर शांत के मंजर आज जुबान पर था वो मंजर जो तड़पाता था हमको ह
बेटी पापा से बोली शाम को घर आ के मुझे कहीं घुमाने ले चलो ना पापा झुला झुलना है गोद में लेके झुलाओ न पापा थक गयी हूँ कंधे पर बिठा लो न पापा डर लग रहा अँधेरे में सीने से लगाओ न पाप
तुतलों की भाषा आज जाके मेरी समझ आई तभी तो आज मेने ८० रूपये किलो की चटनी कमाकर खायी डीजल और पेट्रोल की कहे ही क्या गाड़ी हमने अपनी तमन्ना के होसले से हुर्र हुर्र कर चलाई चूल्हे की आ
आ तेरे आसू मै पोछु तेरे सारे दर्द को खुशी के शीतल जल से में सींचू तेरा मै बन के हमसाया तेरे परछाई से दुःख सारे मै खींचू तूने मुझे अपनाया है तेरे सरे गम को अपना लूँ आ में तेरे
मै समय हूँ हाँ हाँ मै ही समय हूँ यह बात और है की आज कोई भी आज मेरी ही खाट खड़ी कर देता है फिर भी मै ही समय हूँ इतना हंस मत यह जो फटीचर से हालत है मेरी वो कुछ नेता और सरकारी नौकरों
मेरे देश का कानून है कमजोर पर फिर भी मुझे भरोसा है सरकारों में नहीं देश चलने का दम फिर भी मुझे भरोसा है दरोगा बन बैठा है आज डकैत फिर भी मुझे भरोसा है सन्यासी जो सबसे बड़ा है चोर
शब्दों की लड़ जब लड़ लड़ की आवाज़ के साथ तड तड़ाती है बड़े तूफ़ान खड़े हो जाते है आपस मे लड़ते लड़ रुपी पटाखे बड़ी आवाज़ से कानो में तड तडातेहै शब्दों की फटन से कान भी फट जाते है पर जब
अब्ज ज्यू बजता है नभ मे अधर धरा का लगता सिन्दूरी खग की उत्पत्ति से नभ मे बहती अचल समीर जिसके उत्तर से अब्धि की धरा लेती मधु हिलोर खग खग की चीत्कार से उत्पन्न राग से गता कण कण अ
मेरी सारी तमन्नाये टूट जाती है जब माँ मुझसे रूठ जाती है मेरी सारे दर्द नासूर बन चुभते है जब माँ को दर्द होता है मेरी माँ जब भी मुझे पुकारतीहै तब सम्मोहन खीच लेता है
उसकी आँखों में खौफ -सा बिखरा पड़ा है उसके हाथो में खिलोने है बच्चो के पर पसीना कहानी कहता है के किसी के जाने का उसके कांपते होठो पर एक अजीब सी दहशत है इस बेकार की महंगाई ने तोड़
बेटा मेरा जब लिपटता है बांहों में जीवन पूरा जी लेता हूँ अब कोई तमन्ना नहीं है मेरी उसे देख आँखों से खुशियों की शराब पी लेता हूँ उसकी किलकारी ताकत है मेरी इस प्यारी चित्कार को सम
ये केसी शिक्षा हम बड़े गर्व से कहते है मेरा दोस्त ,भाई विदेश में काम करता है मेरी चाची का लड़का विदेश में इंजिनियर है पर ए बेब्कूफो भारत की शिक्षा ही हो चुकी भर्स्ट है जब भी जाओ लेने अ
कर लो चाहे पूजा एक हज़ार कहता यही मै बार बार माँ बाप को जो ठुकराया बुढ़ापे में चोट खायेगा दिन में सौ सौ बार माँ बाप तो गहना है जिसे बचपन में तूने पहना है पत्नी के आते ही ये गहना तू
मै सो रहा था उस दिन अँधेरे किसी कोने से वो एक अवला आ रही थी तभी चार निर्दयी जानवरों ने उस को नोचना शुरू कर दिया उसकी चीखें उस पाश कॉलोनी की कोठियो से टकरा टकरा कर वापस आ रही थी म
जिस भी ने जीवन मे कभी भी कोई भी गलती नहीं की समझ लेना चाहिए वो इंसान नहीं भेड़ है क्यों की उसने खुद कुछ नया नहीं किया बस भेड़ की तरह लाइन में पीछे ही चलता चला इंसा तो वो है जो
जिंदगी उलझ सी गयी है नए रिश्तो के तराने सुलझाते सुलझाते पुराने रिश्तो को समय की मार सी पड़ी दूर हो गए उलझते उलझते कड़वा दर्द बाकी है दिल के कोने मैं धुन लिए कराहते कराहते
वो कल चला गया बहुत ही ख़ामोशी से चहकता बहुत था पर एक तड़प लिए था वो आपने दिल मैं किसी से बयांकर के क्या पा जाता क्योकि जानता था बस हंसने वाले है या उसका मज़ाक बनाने वाले है बताता क्य
बाहर से शर्मिला है तब तो फिर जहरीला है चल धरती का रंग बता अंबर नीला नीला है उतने तो हम भूले बैठे जो तेरा टंडीला है तेरा पर्वत है तुझे मुबारक अपना खुद का टीला है राजनीत की गर्म हवा है प्रेम
रिश्ते नाते यारी सब निकले कारोबारी सब उनके घर में 4 बेटियां फिर भी उन्हें दुलारी सब राजनीत की माचिस देखो देतीं है चिंगारी सब जाने किसकी नजर लगी है सूखीं हैं फुलवारी सब जो दुनिया का चाल चलन