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नक़ली जुर्म (कहानी) - तीसरा अंतिम भाग

27 जून 2016

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''मेरे पास इसके अलावा और कोई चारा नहीं था। मैं उससे प्यार करता था और वह मयंक के पीछे दीवानी थी। इसलिए मैंने अपनी यह मशीन उसके ऊपर आज़माने का फैसला किया।"

''लेकिन यह मशीन काम कैसे करती है?"


''एक ऐसी हक़ीक़त जिसकी तरफ बहुत कम लोगों का ध्यान जाता है, वह ये कि जिसे हम बाहरी दुनिया के तौर पर देखते व महसूस करते हैं, वह सिर्फ दिमाग़ के ज़रिये पैदा एक नज़रिया होता है जो हमारी इन्द्रियों से आने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स पर आधारित होता है।

दुनिया के रंग जो हम देखते हैं, चीज़ों को छूकर उनकी सख्ती या नर्मी जो हम महसूस करते हैं। चीज़ों का स्वाद जो हमारी ज़बान चखती है। तरह तरह की आवाज़ें जो हम अपने कानों से सुनते हैं। खुशबुएं जो हम सूंघते हैं और इसके अलावा अपने आसपास की हर चीज़, हमारा काम, हमारा घर, फर्नीचर, बच्चे, जिन्हें हम अपने क़रीब या दूर देखते हैं, जिनका हमें एहसास होता है वह सब सिर्फ और सिर्फ इलेक्ट्रिक सिग्नल होते हैं जिन्हें हमारी इन्द्रियाँ हमारे दिमाग तक भेजती हैं। दो महान वैज्ञानिकों बर्टरैण्ड रसेल और एलक विटिगेन्स्टाइन का कहना है, 'एक नींबू दरहक़ीक़त अस्तित्व में है या नहीं और यह कैसे अस्तित्व में आया इसे मालूम नहीं किया जा सकता। एक नींबू दरअसल एक ग्रुप होता है ज़ायके, जिसे ज़बान महसूस करती हैं, खुशबू जिसे नाक महसूस करती है, रंग व सूरत जिसे आँख महसूस करती है, और सिर्फ इन ही फीचर्स का अध्ययन किया जा सकता है।"


''हाँ, ये तो हक़ीक़त है कि दुनिया में जो कुछ भी हम देखते या महसूस करते हैं वह दिमाग तक पहुंचने वाले इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स ही होते हैं।" डा0प्रवीर की बहन ने उसका समर्थन किया।


''इसी फैक्ट का इस्तेमाल करते हुए मैंने अपनी ये मशीन तैयार की।" डा0प्रवीर अपनी बहन को शायद वह मशीन ही दिखाने लाया था। और उसके बारे में बता रहा था।

''यह मशीन किसी व्यक्ति की मेमोरी में कृत्रिम इलेक्ट्रिकल सिग्नल्स भेजकर उसकी स्मृति में नकली घटनाएं पैदा कर देती है। और उस व्यक्ति को लगता है कि वह घटनाएं उसकी जिंदगी में घटित हो चुकी हैं। जबकि हक़ीकत में ऐसा कुछ नहीं होता।"


''ओह। वेरी नाइस।" डा0प्रवीर की बहन की प्रतिक्रिया थी।


''फिर मैंने कालेज के वार्षिक समारोह के लिये एक प्रोग्राम बनाया जिसमें पूरे ग्रुप को खास तरह की टोपियां पहननी थीं। उस ग्रुप में मैंने माहम को खासतौर से शामिल किया। उनमें से हर टोपी में इस मशीन का रिसीवर मौजूद था, एक माइक्रोचिप की शक्ल में। टोपियां इतनी आकर्षक थीं कि मुझे यकीन था कि उस ग्रुप का हर मेम्बर उन टोपियों को बाद में भी इस्तेमाल करेगा। अत: मैं अपनी मशीन द्वारा माहम की टोपी पर नज़र रखने लगा। एक दिन मुझे मालूम हो गया कि माहम एकान्त में मेरी टोपी लगाये हुए है। मुझे मौका मिल गया और मैंने वह आभासी घटना उसकी स्मृति में आरोपित कर दी जिसमें मयंक उसके साथ दुराचार करता है।"


आगे कुछ सुनने की ताब माहम में नहीं थी। वह चुपचाप अपने कमरे में वापस आ गयी। उसके दिमाग में आँधियाँ चल रही थीं। उसकी कुछ समझ में नहीं आ रहा था। इतना बड़ा धोखा उसने खाया। उसे पाने के लिये डा0प्रवीर ने कितनी बड़ी साजि़श की थी। और ऐसी साजि़श जिसके लिये दुनिया का क़ानून उसे कोई सज़ा भी नहीं दे सकता था। 


उसे याद आये वह शब्द जो मयंक ने जेल जाने से पहले उससे कहे थे, ''माहम! मैं नहीं जानता कि तुमने ऐसा क्यों किया। शायद दौलत या किसी और लालच ने तुम्हारी आँखों पर पटटी बाँध दी है। लेकिन एक दिन तुम्हें बहुत पछताना पड़ेगा।"


उसकी बात सुनकर माहम ने गुस्से और नफरत के साथ उससे मुंह फेर लिया था और वह ये भी नहीं देख सकी थी कि मयंक की आँखों के दरिया में बेबसी और अफसोस के कितने भँवर तैर रहे हैं।


आज उसे पता चला कि उसने मयंक के ऊपर उस घटना का इल्ज़ाम लगाया था जो इस दुनिया में कभी घटित ही नहीं हुई थी और जिसे वैज्ञानिक तरीके से उसकी स्मृति में आरोपित कर दिया गया था।

कुछ देर तक वह वहीं बैठी आँसू बहाती रही, फिर उसने एक निर्णय लिया एक ऐसा निर्णय जिसने उसके समस्त आँसुओं को अपने अन्दर सोख लिया।

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इसके चार दिन बाद माहम के पास मिलने वालों का ताँता बँधा हुआ था। कोई उसे दिलासा दे रहा था तो कोई हमदर्दी जता रहा था। और इसका कारण भी था।

बीती रात को उसके पति यानि एस.टी.आर के फिजि़क्स लेक्चरर डा0प्रवीर ने खुद को गोली मारकर आत्महत्या कर ली थी।


पुलिस तहक़ीक़ कर रही थी कि डा0प्रवीर ने ऐसा क्यों किया लेकिन कोई वजह समझ में नहीं आ रही थी। अक्सर लोगों का यही विचार था कि अपना प्रमोशन न होने की वजह से वह तनाव में रहता था और इसी तनाव में उसने खुदकुशी कर ली।


माहम को दिलासा देने वालों में उसकी क़रीबी सहेली कल्पना भी थी।

''मैं बहुत बदकिस्मत हूं कल्पना।" माहम ने एक ठंडी साँस ली। 


''तुम ठीक कहती हो माहम। जिसको तुमने प्यार के लिये चुना, उसने तुम्हारे साथ दुराचार किया और जिसको तुमने पति के रूप में चुना उसने खुदकुशी कर ली।"


''मैं इसलिये बदकिस्मत नहीं हूं।" 

''फिर?" कल्पना ने चौंक कर पूछा। 


''कल्पना! तुम मेरी सबसे गहरी दोस्त हो। अत: मैं तुम्हें सब कुछ बताकर अपने दिल का बोझ हलका कर लेना चाहती हूं। क्या तुम आज रात मेरे पास टिक सकोगी?" 

''हाँ, क्यों नहीं।" कल्पना ने उसके कंधे को थपथपाया। 

-----


फिर उस रात माहम ने अपना पूरी कहानी कल्पना से बयान कर दी। जिसमें उसकी स्मृति परिवर्तन के द्वारा मयंक पर दुराचार का आरोप और इसके पीछे उसके पति की साजि़श की कहानी थी।


''ओह माई गाड।" कल्पना की पलकों ने मानो झपकना छोड़ दिया था, ''डा0प्रवीर इतना बड़ा साजि़शी होगा यह तो हम सपने में भी नहीं सोच सकते थे। 

''हाँ। उसके पास टैलेन्ट था। लेकिन उसने अपने टैलेन्ट का गलत इस्तेमाल किया।" माहम ने खोये खोये लहजे में कहा।


''काश कि वह अपनी बुद्धिमता का प्रयोग सही रास्ते पर करता तो पता नहीं कितनी माहम उसके आगे पीछे फिरने लगतीं।" कल्पना ने अफसोस के साथ कहा।

''ऐसे व्यक्ति को मरने के बाद भी चैन नहीं मिलता।" माहम ने गुस्से और दु:ख के साथ कहा।


''लेकिन अब तो उसे धोखे से ही सही उसकी मोहब्बत उसे हासिल हो गयी थी। फिर खुदकुशी क्यों कर ली उसने? क्या उसका जुर्म उसे कचोट रहा था?"

''तुमने ठीक कहा। उसका जुर्म उसे कचोट रहा था। एक ऐसा जुर्म जो उसने किया ही नहीं था।" माहम अब कुर्सी से उठकर टहलने लगी थी।


''क्या मतलब? मैं कुछ समझी नहीं।"

''जब उसने अपनी मशीन के बारे में अपनी बहन को बताया, उसके बाद अकेले में मौका पाकर मैंने उस मशीन की कार्यप्रणाली समझ ली। और फिर उसी मशीन के द्वारा एक दिन खुद उसी के मस्तिष्क में एक नकली घटना आरोपित कर दी। ऐसे जुर्म की घटना जो उसने कभी किया ही नहीं था।"


''वह घटना क्या थी?"


''उस घटना में वह शराब के नशे में अपनी ही बहन के साथ दुराचार करता है। इस घटना के बाद किसी भी इज़ज़तदार भाई के सामने आत्महत्या ही एकमात्र विकल्प बचता है। और डा0प्रवीर ने यही किया। आखिर नशा उखड़ने के बाद वह अपनी बहन का सामना कैसे करता।" माहम ने टहलते हुए ही अपनी बात पूरी की और कल्पना यही सोचती रह गयी कि कैसे क्या जुर्म माने और किसे कितना बड़ा मुजरिम।


--समाप्त-- 


---डा ज़ीशान हैदर ज़ैदी

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