
कला संसार
"सा कला या विमुक्तेय" कला वह जो मुक्त कर दें l सजा दें जीवन को सुन्दरत्तम रूप में, छांव हो या धूप में सदैव तटस्थ रहे और ईश्वर को धन्यवाद कहे मन से l तन से स्वस्थ रहे, मन से मस्त रहे ओर करता रहे सृजन l
सृजन वयक्ति व प्रकृति का कर्म व धर्म हैl शिशु का जन्म दम्पति का सर्वोत्तम सृजन हैl सजीव सृजन किसी भी दृष्टि से निर्जीव सृजन से कमतर नहीं हो सकता l ईश्वर व प्रकृति का सृजन सदैव सुन्दर होता है l पेड़ , पहाड़, नदी, झरना व बादल आदि इत्यादि सभी सुन्दर है कभी असुन्दर नहीं होते l मानव निर्मित कृत्रिम सृजन सुन्दर व असुन्दर होते है l
मानव अपनी अपनी रूचि के अनुसार विषयों या विधाओं का चयन करते हैl इसके बाद किसी माधयम से मन को सुख देने वाला कोई सृजन करते हैl साहित्य का सृजन अति प्राचीन हैl धीरे धीरे मानव सभ्यता के साथ नया कुछ करने के भाव ने अन्य कलाओं को जन्म का आधार दिया l मानव मन आज भी उसी भाव से अपनी सिध्द हस्त कला में प्रयासरत् हैl
कला में आध्यातम भाव कम होता गया ओर बढता गया अर्थाभाव l इसी कारण जीवन मरण से मुक्त कर सकने वाली कला बन्धन कारी लगने लगी है l निर्णय आपका अपना कोनसी कला को चुने l श्रेष्ठ से श्रेष्ठत्तम सृजन कर सकने की अभिलाषा में ......l तथास्तु !
-नारायण आसेरी, बीकानेर