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मैं मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा

13 मार्च 2016

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मैं मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा,

एक नया इतिहास गढ़ता जा रहा।


वक्त गया ​बीत पर अफसोस ना

जो बचा है जीत हेतु काफी हां

इसका अब सदुपयोग करना है मुझे

क्षण क्षण फिर भी फिसलता जा रहा।


सबको लेके साथ आगे बढ़ना है

मुश्किलों के बावजूद चढ़ना है

बचना है फिसलने से हर पल मुझे

पग पग पर संभलता जा रहा।


बिन तुम्हारे कैसा होगा ये सफर

साथ तुम्हारा चाहिए मुझे हर डगर

खाली हाथ लौटना नहीं मुझे

प्यार का सागर बहाता जा रहा।


तोड़ कर बहूंगा अब बांध सब

जोड़ कर रहूंगा अब पांव सब

सबको एक साथ करना है मुझे

बस तुम्हारे भरोसे चलता जा रहा।


लेखक— एन.डी.आसेरी, 

जीनगर मौहल्ला, गोपेश्वर बस्ती, गंगाशहर,

बीकानेर, राज. 334401

मो. 9414142641


जीनगर ज्योति

जीनगर ज्योति

धन्यवाद व आभार

19 मार्च 2016

ओम प्रकाश शर्मा

ओम प्रकाश शर्मा

मैं मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा, एक नया इतिहास गढ़ता जा रहा................बहुत सुन्दर रचना !

14 मार्च 2016

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रचनाएँ
jeengarsabha
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जीनगरसहभा
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जाग रहा है समाज—

13 मार्च 2016
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     जीनगर समाज के राष्ट्रीय संगठन को लेकरपिछले एक माह से वाट्सअप व फेस बुक के माध्यम से चल रही मुहीम से बरसों से स्थिरसमाज में हलचल होने लगी है। सब की इच्छा है कि दूसरे समाजों की तरह हमारे समाज काभी राष्ट्रीय संगठन हो। ऐसा राष्ट्रीय संगठन जिसकी सभी जगह समान शाखाएं हो, जब सबको स्वीकारहो, जिसका सब लो

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मैं मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा

13 मार्च 2016
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मैं मंजिल की ओर बढ़ता जा रहा,एक नया इतिहास गढ़ता जा रहा।वक्त गया ​बीत पर अफसोस नाजो बचा है जीत हेतु काफी हांइसका अब सदुपयोग करना है मुझेक्षण क्षण फिर भी फिसलता जा रहा।सबको लेके साथ आगे बढ़ना हैमुश्किलों के बावजूद चढ़ना हैबचना है फिसलने से हर पल मुझेपग पग पर संभलता जा रहा।बिन तुम्हारे कैसा होगा ये सफ

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सा कला या विमुक्त्ये

19 मार्च 2016
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कला संसार"सा कला या विमुक्तेय" कला वह जो मुक्त कर दें l सजा दें जीवन को सुन्दरत्तम रूप में, छांव हो या धूप में सदैव तटस्थ रहे और ईश्वर को धन्यवाद कहे मन से l तन से स्वस्थ रहे, मन से मस्त रहे ओर करता रहे सृजन l सृजन वयक्ति व प्रकृति का कर्म व धर्म हैl शिशु का जन्म दम्पति का सर्वोत्तम सृजन हैl सजीव सृ

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