जो कलम सरीखे टूट गये पर झुके नहीं, उनके आगे यह दुनिया शीश झुकाती है. जो कलम किसी कीमत पर बेची नहीं गयी, वह तो मशाल की तरह उठायी जाती है
29 जनवरी 2015
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प्रेम दबे पाँव चला करता है / जा का सूरज / जैसे कुहरे में छिपकर / आता है साँसों को साधकर / नयन पथ पर / लाते हैं/ आना ही पड़ता है. ( नीला आकाश कह सकता है)
ताप के ताए हुए दिन ये / क्षण के लघु मान से / मौन नापा किये ( ताप के ताए हुए दिन )
शब्दों से काम नहीं चलता / जीवन को देखा है / यहाँ कुछ और / वहाँ कुछ और/ इसी तरह यहाँ वहाँ / हरदम कुछ और / कोई एक ढंग सा काम नहीं करता (शब्दों से काम नहीं चलता)