ज़िंदा हूँ कि एक कवि / होने का अहसास ज़िंदा है / आज ढोल की तरह टांग दिया है / तुमने खूंटी पर / कल नगाड़े की तरह / तुम्हारे सर पर मुनादी करूंगा / अपने समय का कवि हूँ / समय का सवार नहीं हूँ मैं – ‘ अपने समय का कवि’
चने को घुन खा रहा है / लोहे को खाए जा रहा है जंग / मित्र अब शिष्ट हो रहे हैं / पहले की तरह बेचैन नहीं दीखते / कविता की आत्मा से / जोंक की तरह चिपक गए हैं भांड / हत्यारे राजघाट पर प्रायश्चित्त कर रहे हैं / सधे हुए मिरासियों की तरह / राजपथ पर दौड़ते-दौड़ते / इस बूढ़े घोड़े की घिस चुकी है नाल / इसकी टापों से रिस रहा है खून – ‘इन दिनों’