मन संतोष सुनत कपि बानी, भगती प्रताप तेज बल सानी।
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना, होहु तात बल सील निधाना।।
नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका वाडर वुड स्टोरीज में। आप सब के साथ किये वादे को निभाने के लिए में फिर से उपस्थित हूँ।
जैसा की आप सभी से वाद किया था की कलिहानुवाणी के प्रथम अध्याय के साथ में पुनः उपस्थित होऊंगा , आइये बिना किसी देर के शुरू करते है
प्रथम अध्याय दो माता का जाना का सारांश
अध्याय की शुरुआत होती है दो स्त्रियों की चीख पुकार से जो आपस में एक बालक के अधिपत्य हेतु गुत्थम गुत्था है। एक स्त्री का नाम सुचेता है और दूसरी का विचेता। दोनों के बीच चित्ता नाम के अबोध बालक को लेकर वाक्युद्ध आरम्भ है। दोनों ही स्वयं को उस बालक की माता कह रही है। विवाद अधिक बढ़ जाने और
सुलह की कोई सम्भावना न दिखाई देने पर विवाद मातंगों के मुखिया बाबा के पास पहुंच जाती है।
बाबा जो एक उच्च शिला पर आसीन है - वे जानते है की चित्ता को कुछ माह पहले सुचेता ने जन्म दिया है, परन्तु चित्ता विचेता की छाती से चिपका है और विचेता का कहना है की सुचेता ने नहीं बल्कि स्वयं उसने बालक को जना है।
सुचेता चीख कर बोली ये झूठ बोलती है आप साक्षी है २ माह पूर्व ही मैंने चित्ता जो जन्म दिया आप सभी वहां उपस्थित अब इस औरत ने मेरे बच्चे पर कोई जादू टोना कर दिया है जो वो उसकी गोद से उतरता ही नहीं
सुचेता सही कह रही थी। बाबा मातंग भी स्वयं इस बात के साक्षी थे पर जब वो विचेता की और देखते है तो जो भारी आँसू उसकी रक्तिम आँखों से लगातार बह रहे है भ्रमित करते है। बाबा को जीवन के कई अनुभव है और वे जानते है की ये झूठे नहीं।
पर न्याय ह्रदय से नहीं अपितु साक्ष्यों से होता है बाबा ने अपना मन कठोर करते हुए विचेता से कहा -
विचेता पता तुम ऐसा क्यों कह रही हो परन्तु ये सत्य है की चिट्टा को सुचेता ने ही जाना है और गांव वाले इस बात साक्षी है। तुम्हे शर्म आनी चाहिए की तुम जादू टोन की सहायता से बच्चे को भ्रमित कर रही हो और इस समाज की पवित्रता को भी खंडित कर रही हो। या तुम मुझे स्वस्थ दिखाई नहीं देती और िस्मृति
लोप की वजह से इस बच्चे को अपना बता रही हो।
विचेता ने चीख कर कहा - क्षमा करें बाबा पर आप ये कैसे कह सकते है। अभी कुछ माह पहले ही तो मैंने इस बालक को जन्म दिया है।
माता मातंग आप चुप क्यों है क्यों नहीं बता देती की आप वही उपास्थि थी जब मैं प्रसव पीड़ा में थी। बाबा आप कैसे भूल सकते है आप ने इसका नामकरण किया। मुझे लगता है आप सभी भ्रम में है और वास्तविकता से मुँह मोड़ रहे है।
बाबा मातंग अवाक् थे क्या सच में ये हो सकता ही की पूरा समाज ही भर्म में हो। पर ये भी सच है की न्याय की हक़दार विचेता भी उतनी ही है जितनी की सुचेता।
बाबा अपने स्थान पर खड़े हो गए और बोले - तो ठीक है इसका समाधान मैं अपने पूर्वजों की सहायता से ही करूँगा। आज शाम ही घाटी की उच्च छोटी पर पर जाकर जहां हमरे पूर्वजों की धूनी जलती है वही उनकी सहायता से इस विवाद का अंत होगा।
सुचेता अब घबराने लगी थी उसे लगा कहीं उससे और पुत्र न छीन जाये। सुचेता ने तनिक भय से बाबा के साथ घाटी में चलने की मंशा जाहिर की। बाबा मान गए और बोले विचेता और चिट्टा भी हमरे साथ चलेंगे।
बाबा जब घाटी पर पहुंचे तो उन्होंने ऊपर चढ़ने के लिए हाँथ में पकड़ी रस्सी ऊपर फेकी ताकि वे छोटी पर चढ़ सकें रस्सी हाँथ से छूटी और अँधेरे में गम हो गयी. बाबा ने बहुत प्रयास किया की रस्सी का एक छोर उन्हें दिख जाये, पर इस अँधेरी रात में जहाँ हाँथ को हाँथ सुझाई न देता हो रस्सी का छोर तो दूर की बात। बाबा उदास होकर वापस जाने को हुए तभी उन्हें सामने रस्सी दिखाई पड़ी उन्होंने उसे पकड़ कर चढ़ना शुरू कर दिया। रस्सी सम्भवता पहले से अधिक
मुलायम प्रतीत होती थी पर हाँथ नहीं फिसलता था। वो पूरी सकती से ऊपर चढ़ गए और बाकि दोनों औरतें भी बाबा ऊपर जाकर देखते है की अंधकार में एक प्रकाशमय पुंज है जो की हनुमान जी की आकृति है। बाबा मंरतमुग्ध हो जाते है और वापस वास्तविक में आकर हनुमान जी को सारा विवाद बताते है हनुमान जी सरल शब्दों में कहते है बालक जिसे कहे वही उसकी माता हुयी यह निर्णय तो बालक का है।
बाबा थोड़ा चकित है पर बालक तो अभी छोटा है हनुमान जी द्वारा पुनः बाबा से प्रश् करते है क्या सच ये बालक छोटा है।
बाबा को अपनी गलती का अहसाह होता है वो क्षमा मांगते और कहते है -ये तो एक आत्मा है जो उतनी ही आयु की है जितनी की हम सभी की।
हनुमान जी मुस्कुराते हुए चिट्टा की और देखते है। चिट्टा ठहाकों के साथ बोलने लगता है वो कथा सुनाता है की वो पिछले जन्म में कौन था और उसके साथ क्या घटनाये हुई।
दोस्तों में यहाँ वो पूरा प्रसंग का वर्णन नहीं कर रहा हूँ क्युकी ऐसा करने में इस किताब को पढ़ने की इच्छा आप सभी में ख़त्म हो जाएगी मैं यहाँ सिर्फ पुस्तक की सारांशित करने की चेष्टा में हूँ।
चिट्टा बताता है वो मोक्ष को पाने के लिए ही इस धरती पर वापस आया है और वो बारी बारी दोनों माताओं के साथ रहेगा।
तो मित्रों इसी के साथ ये अध्याय यहीं समाप्त हुआ।
विश्लेषण - मित्रों इस अध्याय से मुझे जो समझ में आया वो ये है की। मनुष्य धरती पर आकर मेरा तेरा के मायाजाल में फंसा चला जाता है। वो वास्तविक ज्ञान से भटक कर सुख दुःख के चंगुलों में फंस के रह जाता है। यदि कोई भी व्यक्ति अपने जीवन के मुख्य उद्देश्य को समझ लें तो माया मोह के जंजाल से मुक्त हो सकता है। प्रथम अध्याय में कथानक के माध्यम से यही सिद्धकिया जा रह है। जहाँ चिट्टा एक परम सुख है और दोनों माताएं इस भ्रम में पागल हुई जा रही है की ये उसका है। जबकि वो समय समय पर अपना अनुराग बदलता रह रहा है।
आशा करता हूँ कलिहानुवाणी का ये भाग आपको अच्छा लगा हो। शेष क्रमशः हमरे साथ जुड़े रहिये और लाइक सब्सक्राइब जरूर करें जिससे मुझे की निरंतर बढे रहने की शक्ति मिलती रहे