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कलिहनुवानी पुस्तक का सारांश भाग 1

17 अगस्त 2022

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आठों योग सीढ़ियों को प्राप्त करने वाले चिरंजीवी हनुमान जी ने अपना ब्रह्म ज्ञान और अनुभव बाँटने के लिए कुछ विशेष आदिवासी शिष्य चुने।  उन्होंने वचन दिया था की वे हर ४१ वर्ष पश्चात् अपने शिष्यों की नयी पीढ़ियों से मिलने आएंगे।  और उन्हें स्वयं ज्ञान प्रदान करेंगे।  उसी शाश्वत वचन को निभाते हुए वो इस बार भी आये।  घने जंगल से आच्छदित एक पर्वत पर उन्होंने अपने शिष्यों को प्राचीन ज्ञान नवीन ढंग से प्रदान किया।  एक दिव्या लीला के अंतर्गत यह ज्ञान जंगल से बहार कलिहानुवाणी के रूप में पहुँच रहा है। 

नमस्कार दोस्तों स्वागत है आपका वेदर वुड स्टोरीज में। दोस्तों आज जिस पुस्तक का सारांश मैं आपके लिए लेकर आया हूँ उसका नाम है कलिहानुवाणी। जो पहले अंग्रेजी भाषा में इमोर्टल टॉक्स भाग १ जो २०१७ में प्रकाशित हुयी और पुनः इसका दूसरा भाग २०१९ में  इमोर्टल टॉक्स भाग २ नाम से प्रकाशित की गयी। 

पुस्तक की सफलता को देखते हुए इसे २०२० मे भारतीय जन मानस की भाषा हिंदी में प्रकाशित किया गया। इस पुस्तक के सभी कॉपी राइट २०१७-२०२० तक के शून्य नाम से रजिस्टेर्ड है। अब ये शून्य कौन है इसके बारे में कुछ कहना संभव नहीं।  इसको हिंदी में सीर बुक्स ltd ने पब्लिश किया।

इस पुस्तक में प्रस्तावना को जोड़कर कुल १३ भाग है। जिसमें १ प्रस्तावना शेष १२ अध्याय है।  जिनके नाम क्रमशः 

१. दो माताओं से जाना  २. जलकन्या  ३. अवर्णीय का वर्णन   ४. समय के तार  ५. मृत्यु को हराना   ६. अभिशप्त आत्माएं  ७. सहस्त्र जीवन  ८. लिंग कुंजी

९. अपूर्ण  १०. अदृश्य चार  ११. जागृति विन्यास   १२. निरंतरता है।  

आज के इस भाग में हम बात करेंगे पुस्तक की प्रस्तावना का और सारांशित करेंगे

तो आइये बिना किसी देरी के आपको ले चलते है पुस्तक की प्रस्तावना की ओर 

एक घने जंगल में एक मोटे से वृक्ष के तने की आड़ में दो व्यक्ति बैठे है। वो छिप कर लड़की चुनते कुछ आदिवासियों को देख रहे है। काफी समय हो जाने  पर एक व्यक्ति जिसका नाम या ये कहें की उसका सम्बोधन स्वामी है दूसरे व्यक्ति को कहता है की - यहाँ अब और बैठना सम्भवता मूर्खता होगी की हनुमान दस जी

मुझे इन आदिवासियों में कोई कास बात नहीं लगती हम बेवज़ह ही मन बैठे थे की ये जान चिरंजीवी हनुमान जी को देख सकते है। 

हनुमान दास - भी जमवाई लेते हुए हाँ मे सर हिला देते है 

पर अभी भी हनुमान दास का मन का एक कोना उन आदिवासियों के प्रति उत्सुक था तो पुनः स्वामी जी के चेहरे पर पड़ी उनकी नज़र उन्हें स्मृति के गलियों में ले गयी। ५ साल पहले तक हनुमान दास हनुमान दास न होकर कनाडा के टोरंटो शहर के एक सभ्य व्यक्ति थे। जिनके जीवन में कई अपनी परेशानियां थी , इसमें उनके पुत्र का ड्रग्स लेने से होने वाला मानसिक विकार भी था। उनका पुत्र इस मलीन विषय में इतना उलझ गया था की उसे अपने जीवन से ही हाँथ धोना पड़ा। वे अपने पुत्र का अंतिम संस्कार करके वापस लौट रहे थे और अपनी कार की खिड़की से बहार झांक रहे थे तभी उन्हें साथ चलती कार के ऊपर एक विशाल बालों वाला वानर कार के ठीक ऊपर उड़ता दिखाई दिया। उन्होंने चिल्ला कर अपने भाई से कहा जो उस वक्त कार ड्राइव कर रहा था देखो एक मायावी वानर।

उनके भाई ने जब बहार नज़र मरी तो वहां सिर्फ  बराबर में चलती कार दिखी उन्हें लगा उनका भाई अपने पुत्र के निधन के सदमे में है। उसने हनुमान दास जी को कहा वहां कोई नहीं है आप को आराम की जरुरत है। हनुमान दास ने पुनः पुष्टि के लिए नज़र डाली तो सच वहां कोई नहीं था अपितु कार में एक दिव्या पुरुष थे जो लम्बी घनी दाढ़ी के साथ विराजमान थे। 

हनुमान दस घर आ गए और उस पुरुष के बारे में पता करके उनसे मिलने पहुंचे। यही पुरुष हनुमान दास के गुरु हुए। उन्होंने हनुमान दास को हनुमान दस् नाम दिया और उस वक्त की घटना के बारे में भी बताया की जो भी उस दिन हनुमान दास ने देखा वो सच था। अपने पुत्र की मृत्यु के क्षोभ में जब हनुमान दास घर आ रहे थे तो एक समय को उनका मन पूर्णतः रिक्त था उसे दीन दुनिया की कोई खबर नहीं थी सर्वथा रिक्त। इस कारन उन्होंने वो आकृति गरुदेव की गाड़ी के ऊपर

उड़ती देखि जो निश्चित ही हिन्दू के पवित्र और शक्तिशाली देवता हनुमान जी की थी , पर पुनः वो आकृति उन्हें इसलिए नहीं दिखी क्युकी उनका मन तक्षण प्रभाव से वापस दुनिया के राग लपटों से घिर गया था। ये ठीक ऐसा था जैसा की महाभारत काल में अर्जुन के रथ पर लगा हनुमान जी का ध्वज , जिसे सभी केवल ध्वज के रूप में ही देख प् रहे थे। अपितु पांचों पांडव और श्री कृष्णा ही केवल ध्वज के साथ साक्षात् हनुमान जी को भी देख रहे थे। 

गरुदेव ने कहा - ये रोना धोना ये पीड़ा ये दुर्बलता आपकी आत्मा का नहीं अपितु मन का है। आप एक शक्तिशाली आत्मा के स्वामी है जिसका बंधन स्वयं ही 

हनुमान जी से जुड़ा है। शरीर ठीक किसी मशीन की तरह है जो उसके अंदर उपस्थित आत्मा को संसार की माया दुख सुख दर्द शांति का अनुभव मात्र करा देता है. परन्तु आप और आपकी तरह कई आत्माओ  का ये हाल है की वो  अज्ञानता की चादर ओढ़े सो रही है और सिर्फ सांसारिक माया में उलझ कर रहा गयी है।

हनुमान दास अब रिक्त हो गए थे उन्हें न कुछ समझ आ रहा था न कुछ सुझाई दे रहा था। उन्होंने आत्म शुद्धि का प्राण लिया और गुरुदेव से आशीर्वाद लेकर भारत आ गए। कई वर्षों तक कई लोगो से मिले गुनी साधुओं से पाखड़ी बाबाओं से सुदूर हिमालय की कंदराओं में निवास करते नागाओं से। वे सूक्षम से सूक्ष्म

ज्ञान को पा लेना चाहते थे वे लोगो से मिलते बातें करते न की कोई जिज्ञासा दिखते। वो सिर्फ और सिर्फ सुनना चाहते थे।

ऐसे ही एक दिन उन्हें पता चला एक आदिवासी समूह के बारे में जो मातंग कहलाते थे और उनके बारे में कथाएं प्रचलित थी की वे साक्षात् चिनजीवी हनुमान जी के शिष्य है। हनुमान दास ने अपने दो साथियों को साथ लिया और इस विषय की खोज में निकल  पड़े। जिसमें एक थे स्वामी जी एक ब्रह्मचारी जी जिनको उस इलाके के आदिवासियों से प्रवीण संपर्करता के रूप में देखा जा सकता था।

ब्रह्मचारी जी ने मतंगों के मुखिया बाबा से मिलने का प्रयास किया परतुं उसके चिचिड़े स्वाभाव के कारन बात न बनी। तो तीनों ने स्वयं ही इन आदिवासियों के स्वाभाव का अध्यन करने की ठानी और उसी के चलते आज वो उस पेड़ के तनों के पीछे चिप कर बैठे है।

हनुमान दास वापस अपनी स्मृतियों से निकल कर वापस आ गए उन्होंने देखा की आदिवासी महिलाओं में एक दुबली पतली लड़की अचानक से हवा में हाथ पैर

चलाने  लगी और औंधे मु गिर पड़ी। ये कुछ खास गतिविधि नहीं थी देखने से मिर्गी का दौरा मालूम देता था। हनुमान दास ने लगातार ये दृश्य देखना चालू रखा उन्हें लगा की उस लड़की के इर्द गिर्द कुछ प्रकाश मय आकृतियां स्पंदन करती से दिख रही है फिर वो लड़की ने अपने शरीर की हवा में कुछ ऊपर उठाया

और साष्टांग प्रमाण की इस्थिति में आ गयी। फिर वो उठी और दोनों हांथो जो जोड़कर कुछ बुदबुदाने लगी हलाकि ये दरश केवल हनुमान दास ही अनुभव कर पा रहे थे शेष साथियों को वो लड़की मु बंधे सिर्फ हाँथ जोड़े ही नजर आ रही थी। प्रक्रिया समाप्त हुई सभी महिलाये वहां से चलती बानी तीनो ने भी अपना अपना झोला कंधो पर डाला और चर्चा करते चल दिए की शायद यहाँ आना व्यर्थ रहा कुछ हांसिल नहीं हुआ बस कुछ सांकेतिक चिन्ह जिन्हे वो और भी कई जगह देख चुके है  वो किसी अनुष्ठान का अंग मात्र हो। पर हनुमान दास जी की बुद्धि तर्क कुतर्कों से ऊपर उठ चुकी थी कुछ दिनों में उन्होंने मातंगों के उस गूढ़ चिन्हों का अर्थ जान लिया था जीका अर्थ था - चिनजीवी हनुमान ४१ वर्षों में अपने शिष्य मातंगों को ब्रह्मज्ञान देते आते है। 

तो दोस्तों इसी के साथ इस पुस्तक की प्रस्तावना समाप्त हुई जल्दी ही मुलाकात होगी आपसे कलिहानुवाणी के प्रथा अध्याय के सारांश के साथ। आशा है आपको इस पुस्तक का सारांश मेरी भाषा में सरल और मनोरजक लग रहा होगा तो हमारे साथ बने रहे सब्सक्राइब करें लिखे शेयर जरूर करें। बेल आइकॉन को जरूर दबाएं जिससे आप मेरे साथ हर रोचक भाग का हिस्सा बने रहे।


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