"हिन्दुत्वव् को परिभाषित करना बहुत दुरूह कार्य है। "हिन्दुत्वव् का अर्थ शब्दों में बांधना और भी कठिन है। "हिन्दुत्वव् हिन्दू धर्म नहीं है। हिन्दुओं की किसी भी पूजा पद्धति या लोक-परलोक की आस्थाओं से यह निरपेक्ष है। "हिन्दुत्वव् राजनीतिक विचारधारा भी नहीं है।
"हिन्दुत्वव् वह अमूर्त सांस्कृतिक मूल्य समूह है, जो हिन्दुओं के व्यवहार, मान्यताओं और सांसारिक जीवन के संघर्षो की चुनौतियों की प्रतिक्रियाओं में अभिव्यक्त होता है। "हिन्दुत्वव् हिन्दुओं की वह सामूहिक मनोवृत्ति और मानसिकता है, जो उन्होंने हजारों वर्षों के अनुभवों से जातीय स्मृति के रूप में विरासत में पाई है। यह उनके लिए एक जीवन-पद्धति है, जीने का एक आदर्श ढंग है, जो शब्दातीत है। जैसे फूल की सुगंध, फूल में रची बसी होती है, उसी तरह "हिन्दुत्वव् हिन्दू सामाजिक जीवन से विशेषकर तथा भारतीय जीवन से सामान्यत: अविभाज्य है। सम्पूर्ण विश्व में फैले हिन्दुत्व की सुगन्ध को महसूस करना है तो बस इन्हीं कथनों को समझ लीजिए-
आजादी के बाद खेतिहर भूमिहीनों को भूमि आवंटित करने की चुनौती सामने थी। आचार्य विनोबा भावे ने इसका हल अपने स्तर से खोजा। उन्होंने गांव-गांव जाकर भू-स्वामियों से अपील की कि वे भूमिहीनों को, स्वेच्छा से भूमिदान करें। आचार्य विनोबा भावे ने ऐसा करने के लिए किसी हिन्दू धर्मशास्त्र अथवा हिन्दू धर्म-शिक्षा का पालन नहीं किया था। राजनीतिक विचारधारा भी भूमिहीनों की इस समस्या का ऐसा हल नहीं इंगित करती। भूदान यज्ञ की प्रेरणा उन्होंने "हिन्दुत्वव् से प्राप्त की थी, जो अवचेतन के स्तर पर, जातीय स्मृति के रूप में उनकी मानसिकता में सजीव था।
जब जय प्रकाश नारायण ने चंबल के डाकुओं से स्वेच्छा से आत्म-समर्पण करवाया तब न तो हिन्दू पंथ से वे प्रेरित थे और न माक्र्स या अन्य किसी राजनीतिक चिंतन से। उनकी प्रेरणा थी "हिन्दुत्वव्, जो भारतीय संस्कृति के पंथ-निरपेक्ष, उदात्त मूल्यों का पर्याय है।
भारत का विभाजन 1947 में मजहब के आधार पर हुआ था। भारत में लगभग हजार वर्ष से रह रहे अधिकांश मुसलमानों ने मोहम्मद अली जिन्ना की अध्यक्षता में घोषित किया कि हिन्दू और मुसलमान दो अलग-अलग कौमें हैं और दोनों एक साथ नहीं रह सकतीं। भारतीय मुसलमानों का अपना अलग देश होना चाहिए। इसलिए उन्होंने देश का विभाजन करके अपने लिए एक अलग देश पाकिस्तान की मांग की। कांग्रेस के हिन्दू-नेताओं से अपनी मांग मनवाने के लिए उन्होंने हिन्दुओं की हत्या और लूटपाट का सहारा लिया। मोहम्मद अली जिन्ना ने 16 अगस्त, 1946 को "डायरेक्ट एक्शनव् (सीधी कार्रवाई) दिवस के रूप में मनाया, जिसमें कुछ ही घंटों में कोलकाता में 5000 हिन्दुओं की हत्या कर दी गई। इस रक्तपात से घबराकर, महात्मा गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने मुस्लिम लीग की मांग के आगे घुटने टेक दिए। भारत को काटकर, पाकिस्तान बनाया गया। पाकिस्तान ने तुरंत ही अपने को इस्लामी राज्य घोषित कर दिया। मजहब के आधार पर देश विभाजित हुआ था। इस तर्क से भारत को भी अपने को हिन्दू राज्य घोषित कर देना चाहिए था। किंतु उसने ऐसा नहीं किया। उसने एक पंथ-निरपेक्ष राज्य होना स्वीकार किया। क्यों? इसका उत्तर है "हिन्दुत्वव्।
देश के विभाजन के समय, पाकिस्तान में 24 प्रतिशत हिन्दू थे। आज वहां मुश्किल से एक प्रतिशत हिन्दू हैं। इसकी तुलना में विभाजन के समय हिन्दुस्थान में 8 प्रतिशत मुसलमान थे। आज उनकी आबादी लगभग 12 से 15 प्रतिशत है। इधर छह दशकों में हिन्दुस्थान में मुसलमान आर्थिक और सामाजिक दृष्टि से फले-फूले हैं। मुसलमान भारत के राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति, मुख्यमंत्री आदि पदों पर रह चुके हैं, और अभी भी हैं। भारत के हिन्दू नेतृत्व ने पाकिस्तानी नेतृत्व के समान क्यों नहीं पांथिक मजहबी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार किए? उत्तर है-हिन्दुत्व।
हिन्दू धर्म के देवता हैं-राम, कृष्ण और शिव। अयोध्या में राम मंदिर, मथुरा में कृष्ण मंदिर तथा वाराणसी में बाबा विश्वनाथ मंदिर हिन्दुओं के सर्वाधिक महत्वपूर्ण श्रद्धास्थल थे। इन तीनों ही मंदिरों को तोड़कर उनके स्थान पर मुगल शासकों ने मस्जिदें बनार्इं। 700 वर्षों के मुस्लिम शासन के अन्तर्गत लगभग 30,000 हिन्दू, बौद्ध तथा जैन मंदिर तोड़े गए। इसके बावजूद, मध्य युग में भी किसी हिन्दू राजा ने एक भी मस्जिद नहीं तोड़ी। राणा प्रताप, शिवाजी, गुरु गोविंद सिंह, महाराजा छत्रसाल आदि-जिन्होंने मुस्लिम आधिपत्य के विरुद्ध विद्रोह की पताका फहराई और मुस्लिम सत्ता के विरुद्ध युद्ध किया, कभी भी अपने राज्य में एक भी मस्जिद नहीं तोड़ी और न ही उन्होंने मुसलमानों को हिन्दू धर्म में सम्मिलित करने का कोई प्रयत्न किया। उनकी धार्मिक सहिष्णुता उस मानसिकता से निर्मित थी जो "हिन्दुत्वव् कहलाती है।
मुगल शासक औरंगजेब की मतान्धता सर्वविदित है। इसलिए अपेक्षित था कि उसके विरुद्ध विद्रोह करने वाले शिवाजी, औरंगजेब द्वारा हिन्दुओं के उत्पीड़न और अत्याचार की र्इंट का जवाब पत्थर से देते। किंतु उन्होंने ऐसा नहीं किया। जब सूरत पर शिवाजी ने आक्रमण करके उस पर भगवा झंडा फहराया तो उनको सूरत के पराजित मुगल सूबेदार की रूपवती पत्नी पेश की गई। कुछ देर शिवाजी उस अपूर्व सुंदरी को देखते रह गए, फिर उन्होंने उससे कहा-"काश। तुम मेरी मां होतीं तो मैं भी तुम्हारी तरह सुंदर होता।व् और उन्होंने आदेश दिया कि उसे ससम्मान उसके परिवार में पहुंचा दिया जाये। शिवाजी ने ऐसा करने में किसी हिन्दू धर्म की किसी पुस्तक का अनुपालन नहीं किया। उन्होंने जो भी किया, वह "हिन्दुत्वव् से प्रेरित था।
वर्तमान पश्चिमीकरण के पहले अधिकांश हिन्दू परिवारों में भोजन बनाते समय, पहली रोटी गाय को दी जाती थी और अंतिम रोटी कौए, चिड़ियों या कुत्तों के लिए बनाई जाती थी परम्परानुसारऐसा सैकड़ों वर्षों से हो रहा है।
क्यों? इसका भी उत्तर है "हिन्दुत्वव्।
यह जगत सत्य है कि यहूदी लोग जहां भी गए, या जहां भी उन्होंने शरण ली, वहां उन्हें प्रताड़ित किया गया। मुसलमानों और यहूदियों की शत्रुता तो सर्वज्ञात है। ईसाई भी यहूदियों को प्राय: नापसंद करते हैं, क्योंकि ईसा मसीह को यहूदियों ने सलीब पर चढ़ाया था। इसलिए किसी भी ईसाई देश में यहूदियों का स्वागत नहीं हुआ। हिटलर ने तो साठ लाख यहूदियों को एक साथ ही मरवा दिया था। इस संदर्भ में, हिन्दुओं ने यहूदियों का जो स्वागत किया और उनको जो सम्मान दिया, वह अद्वितीय है। मुसलमानों और ईसाइयों के व्यवहार के विपरीत, हिन्दुओं का यहूदियों के प्रति व्यवहार क्यों सम्मानपूर्ण था? उत्तर फिर वही है -"हिन्दुत्वव्।
सातवीं शताब्दी में अरबी लोगों के ईरान पर आक्रमण के पहले, ईरानवासी "जोरस्ट्रीयनव् धर्म का पालन करते थे, जिसे ई.पू.पन्द्रहवीं शताब्दी में उनके मसीहा जरथ्रुस्त्र ने स्थापित किया था, और जो अहुरमज्दा की उपासना करते थे। ईरान की विजय के बाद अरब आक्रमणकारियों ने सब ईरानवासियों को जबरदस्ती मुसलमान बनाया। जिन्होंने इस्लाम मजहब नहीं ग्रहण किया वे या तो मार दिए गए या उन्होंने भागकर दूसरे देशों में शरण ली। ऐसे ही ईरानियों के एक दल ने भारत में शरण ली। हिन्दुओं ने उनको शरण ही नहीं दी अपितु उन्हें अपने धर्म के पालन की पूर्ण स्वतंत्रता भी दी और समाज में बराबरी और सम्मान का स्थान दिया। इन शरणार्थी ईरानियों को भारत में पारसी कहते हैं, जिनकी वर्तमान भारत के आर्थिक उन्नयन में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका रही है। भारतीयों की इस उदारता और धार्मिक सहिष्णुता का क्या कारण है? उनके व्यक्तित्व और मानसिकता में व्याप्त हिन्दुत्व।
जब मैं छोटा था तो मेरी मां मुझे रात को बाग में फूल या पत्ती तोड़ने नहीं जाने देती थीं। उनका कहना था कि रात को पेड़ सोते हैं और किसी को नींद से उठाना अच्छी बात नहीं होती। रात को फूल नहीं तोड़ो-ऐसा आदेश किसी हिन्दू धर्मग्रंथ में नहीं है। पशुओं के साथ वृक्षों तक के प्रति क्रूरता को रोकना और उनके प्रति सहानुभूति और अपनत्व अनुभव करना हिन्दुत्व है सिखाता।
जब मुगलों के अंत के बाद अंग्रेजों की हुकूमत स्थापित हुई तो उन्होंने अंग्रेजी को प्रशासन की भाषा बनाया। अंग्रेजी न तो हिन्दुस्थानी हिन्दू जानते थे और न हिन्दुस्थानी मुसलमान। दोनों के ही सामने नई भाषा सीखने की चुनौती थी। अंग्रेजी और आधुनिक ज्ञान-विज्ञान की शिक्षा प्राप्त करने की दौड़ में हिन्दू मुसलमानों से बहुत आगे निकल गए। क्यों? इसी संदर्भ में उल्लेखनीय है कि मुस्लिम आक्रमणकारियों ने अनेक पुस्तकालय जलाए। ईसाइयों ने एलेक्जेंड्रिया का पुस्तकालय जलाया था। हिन्दुओं ने मुसलमानों और ईसाइयों की तरह अपने तीन हजार साल के इतिहास में कभी भी पुस्तकालय क्यों नहीं जलाए? दोनों प्रश्नों का उत्तर है-हिन्दुत्व।
वंचित उद्धार और पुनर्वास संबंधी अधिनियम जब संसद द्वारा पारित किए जा रहे थे, तब किसी संत, महंत या हिन्दू ने उनका विरोध नहीं किया। क्यों? इसका उत्तर-हिन्दुत्व है।
अभी हाल में ईसाई पंथ के सर्वोच्च पोप ने आधिकारिक व्यवस्था दी है कि महिलाएं रोमन कैथेलिक चर्च में पादरी नहीं बनाई जा सकतीं, क्योंकि स्वयं ईसा मसीह ने किसी स्त्री को अपना शिष्य नहीं बनाया था। इसी तरह से स्त्रियों के गर्भपात संबंधी नियमों का भी चर्च द्वारा घोर विरोध हो रहा है। किंतु भारत में स्त्री-सशक्तिकरण के लिए बनाए गए विधवा विवाह, स्त्री शिक्षा, स्त्री पुरुष समानता, संपत्ति उत्तराधिकार संबंधी अधिनियमों का विरोध नहीं हुआ। क्यों? यही तो हिन्दुत्व है।
मुसलमानों में शिया-सुन्नी विभेद प्राय: उतना ही पुराना है, जितना स्वयं इस्लाम। शिया-सुन्नी संघर्ष इतिहास का एक तथ्य है। इराक में सद्दाम के पतन के पश्चात शिया-सुन्नी के बीच चल रहे खूनी संग्राम से समाचार पत्र रंगे रहे। पड़ोसी पाकिस्तान में शिया और सुन्नी एक मस्जिद में नमाज नहीं पढ़ते। एक दूसरे की मस्जिद में बम विस्फोट करते हैं। एक-दूसरे के नेताओं की हत्या करते हैं। किंतु हिन्दुस्थान में ऐसा नहीं है। यहां शिया-सुन्नी के बीच की विभाजक रेखा काफी धुंधली है। दोनों प्राय: एक साथ एक मस्जिद में नमाज पढ़ते हैं, उनके बीच दंगे प्राय: नहीं के बराबर होते हैं। भारतीय मुसलमानों में एकांतिक मानसिकता तथा आक्रमकता का पाकिस्तानी मुसलमानों की तुलना में कम होना हिन्दुत्व की ही देन है।
पाकिस्तान में सुन्नी मुसलमानों ने अहमदिया मुसलमानों को गैर मुस्लिम (काफिर) घोषित कर दिया है। किन्तु हिन्दुस्थान में उन्होंने ऐसा नहीं किया है। क्यों? क्योंकि हिन्दुस्थान के मुसलमान हिन्दुत्व से प्रभावित हैं।
संक्षेप में, हिन्दुत्व कम या ज्यादा, सभी भारतीयों की मानसिकता/मनोवृत्ति का परिचायक है। भारतीय संस्कृति से अभिप्रेरित, हिन्दुत्व वह नैतिक मूल्य हैं, जो सब भारतीयों (हिन्दुओं और गैरहिन्दुओं) की मानसिकता को कम या ज्यादा प्रभावित करते हैं। इस प्रकार हिन्दुत्व एक पंथ-निरपेक्ष अवधारणा है।
( दया प्रकाश सिन्हा - पूर्व आई. ए. एस)