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"कनक का मिलन"

15 अगस्त 2023

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मै जो कहानी सुनाने जा रहा हूं उसका वास्तविक जीवन से कुछ लेना नही है और इसमें दिए गए पात्र और स्थानों के नाम काल्पनिक है,

ये कहानी शुरू होती है एक गांव से जिसका नाम कनकपुरा और यहां एक लड़की रहती है जो बेहद खूबसूरत है जिसका नाम कनक है (जबकि इसके पिता ने इसका नाम गांव के नाम पर रख रखा था) और हां इस लड़की का एक बॉयफ्रेंड है जो थोड़ा सा खिसका हुआ है और यही इस कहानी का हीरो है। जिसको डायरेक्टर बनने का बहुत बड़ा सौक है और हां मैं इसका नाम बताना भूल गया इसका नाम विजय है, नाम विजय पड़ जाने की वजह से ये खुद को साऊथ स्टार 'थलपथी विजय ' समझता रहता है और हर किसी को उसके डायलॉग बोलता और परेशान करता पर एक ही थी जो इसे परेशान कर देती थीं ओ थीं हमारी कहानी की नायिका कनक, जो इसकी गर्लफ्रेंड है।

कनक बहुत दिनों से विजय को परेशान कर रही थी विजय कही उसे घुमाने ले जाए , जबकि विजय अपने डायरेक्टर बनने की वजह से हमेशा इसको टाल देता था की नही अभी वक्त नही है हर बार विजय के ना कर देने से परेशान होकर कनक उससे नाराज़ होकर बात करना बंद कर देती है। विजय को बहुत दिनों से एक प्रोड्यूसर के मिलने का इंतेजार था जो उसको कोई काम दे सके जिसपर ओ अपना ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम कर पाए।

बीते कुछ दिनों के बाद उसकी मुलाक़ात एक प्रोड्यूसर से होती है और ओ प्रोड्यूसर विजय से मिलता है और पता नही प्रोड्यूसर ओर विजय के बीच क्या बात हुई जिसे लेकर विजय कुछ परेशान सा हो गया और उस रात ओ अपने दोस्तों के साथ छत पर बैठ कर दारू पीने लगा, उसके चेहरे पर घबराहट थी और ओ डर रहा था मानो प्रोड्यूसर ने उसे जान से मारने की धमकी दे रखी हो। उसके चेहरे पर घबराहट देखकर उसके दोस्तों ने उसे चील करने को बोला और उसे याद दिलाया की उसके बिना कनक का क्या हाल हो गया और दोस्त सभी बोले की तू उसकी बात मान क्यू नही जाता उसे किसी ऐसे जगह ले जा जहां ओ जाना चाहती है फिर विजय दारू के नशे में कनक के साथ किए व्यवहार को सोच कर रोने लगता है फिर उसके दोस्त उसे शांत कराते हैं और उसे बोलते हैं कि अब तेरे पास एक ही रास्ता है उसे खुश देखने का तुझे उसे कही ले जाना होगा और कल उसका बर्थडे भी है तुझे इससे अच्छा मौका नही मिलेगा तू उसे फोन कर कही जाने को बोल...

विजय फोन लेता है और कनक को कॉल करता है (रिंग बजता है......) कनक फोन उठा कर....' हेलो.... अब क्या!

विजय बोलता है कि ' मुझे माफ कर दो मुझे तुम्हारे साथ ऐसा नही करना चाहिए था, तुम जो बोलोगी ओ मै करूंगा, तुम जहां चलने को कहो मै चलूंगा बस एक बार मुझे माफ कर दो।

(कनक के सिसकने की आवाज आती है)

कनक रोते हुवे ' अब मुझे कही नही जाना, तुम्हारी कोई मजबूरी रही होगी तभी तुमने मुझे मना किया होगा कि नही जाते है कही।

विजय समझाते हुवे 'अरे पागल कब तक खुद को दोष देगी, चल अब बता कहा जाना है। मै चलूंगा तुम्हारे साथ आखिर तुम्हारे बिना मेरा है ही कौन ?

कनक कहती हैं 'हम किसी ऐसे जगह चले जहां हम और तुम बस हो हमारे सिवा कोई न हो, मै तुम्हारे साथ वक्त बितानी चाहती हूं।

विजय खुश होते हुवे ' हां, है ना एक ऐसी जगह मेरे दोस्त राजेश का एक बंगला है शहर से दूर नदी किनारे, जहां से बहुत अच्छा नजारा दिखता है हम वहा चलते हैं कल हम दोनो साथ में तुम्हारा बर्थडे भी सेलिब्रेट कर लेंगे।

कनक खुश होते हुए हां कह देती है।

अब उसके दोस्त आपस में हंसने लगते हैं और कहते विजय से कहते है अब तेरी सुहागरात मनेगी.... फिर इतना कह कर सब एक साथ हंसने लगते हैं।

अगली सुबह विजय एक कार में अपने जाने की सारी तैयारी कर लेता है अपने दोस्त राजेश को कनक को लाने भेज देता है, जब तक कनक आ रही होती है तब तक विजय अपने दोस्तों के पूछे जा रहे है सवालों का जवाब दे रहा था जैसे की.... पैसे है ना, उसके लिए कोई गिफ्ट लिया तो विजय कहता है उसका गिफ्ट तो मै और ये ट्रिप है ओर उसे क्या चाहिए तभी कनक वहा आ जाती है और कनक ये बात सुनकर कहती है मेरे लिए तो यही मेरा बर्थडे गिफ्ट है...

फिर सब हंसते हैं और विजय कनक को कार में बिठा कर राजेश के बंगले पर निकल पड़ा इसके दोस्त उसे बाय करते हैं और ओ दोनों देखते ही देखते काफ़ी दूर निकल जाते हैं।

कुछ दूर जाने के बाद कनक कहती है विजय को देखते हुवे 'आखिर तुम्हारा मन बना कैसे? और तुम्हारे डायरेक्टर बनने का क्या हुआ?

फिर विजय जवाब देता है ' मैने ओ सब छोड़ दिया, अब मुझे तुम्हारे साथ वक्त बिताना है। (और कनक को प्यार भरी नज़रों से देखता है)

कनक अगले पल ये नोटिस करती है कि उसकी निगाहें उसके स्तनों पर थी फिर ओ कहती हैं 'अरे रुको इतना भी क्या जल्दी प्रोटेक्शन लिए हो या फिर ऐसे ही '

विजय एक दुकान पर रुकता है और कहता है 'तुम्हे कुछ लेना है तो ले लो, मै सब तैयारी करके निकला हूं।

(फिर दोनों एक दूसरे को देखते हैं... और कनक खुद को विजय के हवाले करते हुवे 'लिप किस 'करने जा ही रही होती है कि तभी कोई कार के दरवाजे पर दस्तक देते हुवे)

'अरे भईया आपको कुछ चाहिए तो बता दीजिए हम ले आते हैं '

विजय कहता है 'ऐसा करो दो बॉटल पानी और बिरयानी कर दो'

दुकान वाला ये सब सामान लाकर देता है और पूछता है 'साहब आप कहा जा रहे हैं '

तो विजय कहता है 'चाचा हम यही एक बंगला है बीच जंगल में नदी के किनारे वही जा रहे हैं '

ये बात सुनकर ओ दुकान वाले के चेहरे का रंग उड़ गया और ओ वहा से चला गया और फिर कुछ एक डायरी में नोट करने लगा इनकी तरफ देखते हुए,  मानो जैसे ये लोग बहुत बड़ा क्राइम करने जा रहे थे, ये देख कनक को थोड़ी घबराहट हुई और ओ विजय से पूछती है 'आखिर ओ दुकान वाला ऐसे हमे क्यों देख रहा था ' फिर विजय समझता है और कहता है ' ऐसा कुछ नहीं है ये दुकान वाले ऐसे ही डराते है, ऐसी कोई बात नही है।

फिर ओ दोनो अपने मंजिल के करीब पहुंचते हैं तभी एक आधी सड़क के किनारे खड़े होकर कुछ पंछियो की तस्वीरें ले रहा था मानो ओ भरमण पर निकला हो और उसका घूमना ही काम हो ।

यही देखते हुवे अब वे दोनो अपनी मंजिल राजेश के बंगले पर पहुंच चुके थे और वे दोनों कार से उतरते हैं और वहा पर काम करने वाले विष्णु भईया को समान उठाने के लिए कहते हैं फिर विष्णु समान लाकर इनके रूम में रखता है और वहा पर लाईट के आने - जाने के समस्या के बारे में बताता है।

विजय कहता है 'अच्छा कोई बात नही तुम अब घर जाओ हम देख लेंगे '।

विष्णु कहता है ' साहब अगर कोई भी दिक्कत होगा आप हमे बुला लीजिए यही समीप वाले गांव में रहते हैं '

विजय हां कहकर जाने को कहता है ये सब देख और सुन कर कनक घबराने लगी थीं और विजय से कहती हैं 'यहां लाईट नही रहेगी तो हम लोग कैसे रहेंगे '

विजय रोमांटिक होते हुवे कहता है 'मैं हूं ना तुम मुझसे आकर लिपट जाना फिर चारों तरफ उजाला ही उजाला होगा।'

फिर कनक कहती हैं 'तुम हमेशा वक्त ढूंढते हो पास आणे का '

फिर वे दोनो एक दूसरे के करीब आते हैं और एक दूसरे को किश करने लगते हैं फिर ऐसे ही लगातार किश करने के दौरान किसी के सिसकने की आवाज आती है फिर ये आवाज सुन दोनो एक दूसरे से अलग होते हैं और घबरा जाते हैं और उस आवाज का पीछा करते हुवे आगे बढ़ते फिर अचानक से आवाज बंद हो जाती है।

कनक - ये कैसी आवाज थी (विजय से पूछती हैं)

विजय - पता नही, अब तो आ भी नही रही लगता है ये हमारा वहम था।

उसके बाद कनक कहती हैं - अच्छा ठीक है मैं नहाने जा रही हूं उसके बाद हम बर्थडे केक काटेंगे, इतना कहकर ओ जाने लगती है और बॉथरूम में पहुंच कर अपने सारे कपड़े उतारने लग जाती है, पहले वह अपने टी-शर्ट को अपने से अलग करती है उसके बाद अपने पैंट को उतार देती है, अब वह टू पीस में उसके उभरे हुए स्तन ब्रा से बंधी हुई उससे बाहर निकलकर झांकना चाहती है और वही उसके कमर के निचे का भाग बहुत लुभावना था। फिर अपने हाथो से अपने स्तन को सहलाते हुए ब्रा तथा पैंटी उतार देती है और बाथ टब में नहाने चली जाती है।

विजय उसके जाने के बाद बेड को अच्छे से सजाने में लग जाता है और रूम को अच्छे से सजाता है कि लगे वाकई आज किसी का बर्थडे और साथ में सुहागरात है, तभी कनक के चीखने की आवाज सुन विजय भागता है और देखता है की कनक घबराई हुई है और एक अंधेरे कि तरफ़ इशारा करती हैं कि वहा कुछ है जो मेरे करीब आ रहा था, विजय पास जा रहा होता है कि कनक रोकती है कि ' नही तुम ना जाओ' फिर विजय उससे बांह छुड़ाते हुवे जाता है और देखता है की वहा एक लड़की का स्टैचू रखा है जो लड़कियों के बाथरोम में रहता है अपने कपड़े उनपर रखने के लिए  और ये स्टैचू एक परदे के पीछे था जिसके कारण साफ दिखाई नही दे रहा था, फिर विजय बोलता है ' जल्दी तैयार होकर आओ, मै इंतेजार कर रहा हूं '।

कुछ देर बाद कनक एक कमाल की ड्रेस पहन कर विजय के सामने आती है जो वाकई लुभावनी थी विजय उसे एक टक निहारता रह गया फिर कनक ने उसे आवाज दी - 'चलो भी केक काटना है, देखने को पूरी रात बाकी है '

फिर विजय केक के ऊपर रखें कैंडल को जलाता है और कनक से फूंक मारने को कहता है फिर कनक फूंक मार कर कैंडल को बुझा देती है तभी विजय हैप्पी बर्थडे कहने लगता है लगातार जब तक कनक केक काट रही होती है। अब कनक विजय को केक खिलाती हैं और फिर दोनो एक दूसरे को केक खिलाते है,  अगले पल विजय अपने मुंह में एक केक का टुकड़ा लेकर कनक को खिलाता है और उसी दौरान वे एक दूसरे को किश करने लगते हैं। अब विजय कनक को किश करते हुए गोद में उठा लेता है और लगातार किश करता है फिर उसे एक दिवाल से सटा कर उसके हाथ के अंगुलियों में अपने हाथ की अंगुलियों को फसा कर दिवाल में चिपका देता है और किश करता रहता है, फिर अगले पल कनक विजय के शर्ट उतारने लगती है और उतार कर वही जमीन पर छोड़ देती है उसके बाद विजय कनक के वेस्टर्न ड्रेस को उतारता है और अब कनक के ड्रेस उतारने के बाद कनक बिकनी में थी, विजय कनक को पकड़ता और किश करने लगता है फिर कनक को गोद उठाकर बेड पार लिटा देता है और उसके बाद ओ बेड के साईड वाले कार्डोर में से बर्फ निकालता है और दातों में एक बर्फ का टुकड़ा पकड़ कर कनक के स्तन से होते हुए उसके नाभि तक लाकर छोड़ देता ये सब करने से कनक की सांसें बढ़ती जा रही थीं मानों उसे परम सुख का अनुभव हो रहा हो और साथ ही साथ ओ अपने ओठो को दातों से काट रही थीं उसके बाद विजय कनक को परमसुख का अनुभव कराने के लिए शारिरिक योग से एक दूसरे का मिलन कराते हैं।

कुछ समय ऐसे नग्न अवस्था में लेटे बिता फिर कनक विजय को इशारा करती है कि फिर से करे और विजय तैयार हो जाता है और फिर वही कार्यकर्म चालू हो जाता है और कुछ पलबीतने के बाद थक हार कर सो जाते हैं।

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"ओ कनक"
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यह कहानी के पात्र और स्थान सभी काल्पनिक है और इस कहानी में हम इस कहानी के नायक के डायरेक्टर बनने तक का सफर तथा उसके प्रेमी अथवा इस कहानी की नायिका का प्रेम में खुद को समर्पित कर देने का सफ़र दिखाया गया है।

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