काश!
मैं भारत का सम्राट होता
तो
भारत का नाम इण्डिया नहीं
भारत ही होता।
जो हठ से इसे इण्डिया कहता
उसे मैं भारत से बाहर करता।
भेज देता वापस
चार देशों के आयातित संविधान
उनके अपने-अपने देशों में
लिखकर यह टीप
कि अशोक नहीं लाये थे
बाहर से कोई संविधान
अब और नहीं सहेंगे यह वैचारिक अपमान।
हम फिर से
अपना संविधान बना सकते हैं
और भारत को
सोने की चिड़िया बना सकते हैं।
तोड़ देते वे बैसाखियाँ
जो बाँटी जा रही हैं
सही सलामत पैरों को।
नहीं रहता कोई आरक्षण।
देते हर किसी को
शिक्षा का समान अवसर।
नहीं होती कोई शिथिलता
योग्यता के धरातल पर
सुपात्र को ही मिलते अवसर।
होती समान नागरिक संहिता
धर्म और जाति पर नहीं होते
बवाल
वर्णाश्रम व्यवस्था पर नहीं उठते
इस तरह सवाल।
सारे धर्मों का सम्मान होता
न कोई अल्पसंख्यक
न कोई बहुसंख्यक होता
हर व्यक्ति
केवल भारत का नागरिक होता
सबकी एक ही पहचान होती
और भारत
केवल हिन्दू राष्ट्र होता।
करते जो भ्रूण हत्या
मृत्युदण्ड उन्हें मिलता।
आशीर्वाद में कहते – ‘दूधों नहाओ’
पर पूत एक ही
सपूत होता।
जंगल का सम्मान होता
नदियों का उपचार होता
नहीं अटकती गंगा
बारबार शिव की जटाओं में।
हिमालय से गंगा का
फिर से अवतरण होता
गंगा के लिये साधु का
न आमरण अनशन होता।
नदियाँ सब भरी होतीं
कोख सब हरी होतीं।
धरा खिलखिलाती
फसल लहलहाती
अन्नपूर्णा का भरा
सदा भण्डार होता।
मानसरोवर अपना होता
नहीं लेनी पड़ती अनुमति
छोटे-छोटे चीनियों से।
हर नागरिक में
भारत का स्वाभिमान होता
देश पर मिटने को सदा तैयार होता।
माँ “माँ” होती
बेटी “बेटी” होती
कोई रिश्ता कलंकित न होता
तलवार में धार होती
पर धार में प्यार होता।
मंच तो होता
पर मंच पर नंगा
‘परिधान’ न होता।
कला “कला” होती
संगीत ध्रुपद होता
नारी के चरणों में पुरुष का नमन होता।
विचरते
सभी प्राणी होकर उन्मुक्त
नहीं होती कोई भी प्रजाति विलुप्त।
हर शेर को जंगल मिलता
हर आदमी को घर मिलता
हर हाथ को काम मिलता
कोई भूखों न मरता
कोई फ़र्ज़ी बिल न बनता
रिश्वत का जोर न होता।
उद्योग देशी होते
विदेशी भाग जाते।
भारत का राष्ट्रपति
सोनिया नहीं
भारत में जन्मा
भारत का ही नागरिक तय करता।
देश का पैसा देश में होता
साधु का सम्मान होता
दुष्ट का अपमान होता
शिक्षा में संस्कार होता
घोटालेवाज जेल में होता।
अपनी भाषा
अपना संस्कार होता
सच्चे अर्थों में
भारत आज़ाद होता।
( कौशलेन्द्र )