भाव कुभाव की चाह बनी जब, कुर्सी पे बैठ भयों अँधियारो
मोल तौल सबही भूल गयो जब, कुर्सी ने दे दौ मोय ठिकानो
धन दौलत की आस करूँ जब, ईमान धरम फिर दूर हिरानो
यू अंतस भाव जब बिसर गयो तब, घर भी कहे क्यों बौरानो
सतीश गुप्ता
21 अगस्त 2016
भाव कुभाव की चाह बनी जब, कुर्सी पे बैठ भयों अँधियारो
मोल तौल सबही भूल गयो जब, कुर्सी ने दे दौ मोय ठिकानो
धन दौलत की आस करूँ जब, ईमान धरम फिर दूर हिरानो
यू अंतस भाव जब बिसर गयो तब, घर भी कहे क्यों बौरानो
सतीश गुप्ता