shabd-logo

'ख्वाहिशों को पर लगेंगे ,अभी तो जमीं पर हूँ ,आसमां में भी जहां बसेंगे'

5 मई 2015

239 बार देखा गया 239
शब्दनगरी संगठन

शब्दनगरी संगठन

गौरव जी, किसी कारणवश आपकी रचना प्रकाशित नहीं हो सकी है, कोई तकनीकी कारण हो सकता है, कृपया पुनः प्रयास करें ! धन्यवाद !

6 मई 2015

1

'क्यों है इतना'

5 मई 2015
0
2
1

आज के इस दौर में लोग अपना मूल्य खो बैठे हैं उनपर में ये कुछ पंक्तियाँ लिखा हूँ।

2

'ख्वाहिशों को पर लगेंगे ,अभी तो जमीं पर हूँ ,आसमां में भी जहां बसेंगे'

5 मई 2015
0
2
1
3

आँसू अगर न होते

6 मई 2015
0
1
0
4

अपनी अभिलाषा

5 जून 2015
0
1
1
5

तुमसे जो दो शब्द हुए थे

28 नवम्बर 2015
0
3
0

तुमसे जो दो शब्द हुए थे ओ गोरी वो प्यारी रेआँखें अब सोना न चाहे रात भर सारी रेसपने भी अब क्या देखें ,बात औरों से क्या करेंखुद से ही बातें कर कर सपने हो गए भारी रे।तुमसे जो दो शब्द हुए थे ओ गोरी वो प्यारी रे।तेरे नशीले शब्द प्यार के व्यसनी बनाया तेरी अदा कान उतरी है तब से अब तक तेरी वो खुमारी रेतुमसे

6

मुक्तक

2 दिसम्बर 2015
0
3
0

तुमको भूलूँ या न भूलूँ मैं हूँ वहीं उलझाक्या थी प्यार हम दोनों में अब तक नहीं समझाइन सब बातों के कारण परस्पर एक से तो हैंतुम मुझको नहीं समझी मैं तुमको नहीं समझा।                                              ~~गौरव 

7

जब प्रणय अंजाम पहुँचता

9 अप्रैल 2016
0
5
2

तेरी चूड़ियों की खन खन,पायलों की छम छमवो सब सुनने को जी करता हैये तो हासिल नही प्रारब्ध मुझे बस तुम्हे लिखने को जी करता है।मेहँदी तुम रचती रहती मैं तुमको रचता रहताबार बार वो पढ़ती तुमएक बार मैं जो लिखता।तेरे सुमधुर रसाल होंठ कोमान मधुरस मैं पीता,नयन तुम्हारी गंगा में मैंपवित्र चित्रित खुद को देखतागर क

---

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए