तेरी चूड़ियों की खन खन,
पायलों की छम छम
वो सब सुनने को जी करता है
ये तो हासिल नही प्रारब्ध मुझे
बस तुम्हे लिखने को जी करता है।
मेहँदी तुम रचती रहती
मैं तुमको रचता रहता
बार बार वो पढ़ती तुम
एक बार मैं जो लिखता।
तेरे सुमधुर रसाल होंठ को
मान मधुरस मैं पीता,
नयन तुम्हारी गंगा में मैं
पवित्र चित्रित खुद को देखता
गर कभी जल छलक जाते तो
रिश्ता और पूजनीय हो जाता।
कोमल कर तेरी लक्ष्मी की
लिए हाथ में अपने मैं
स्वयं को अति समृद्ध मानता
तेरी सुंदर भागवत काया को
मान ईश्वर प्रसाद स्वयं भोग लगाता।
प्रेम के नव राही,
का होते हम आदर्श
होते जब तुम हम-राही,
का होते हम आदर्श
अहोभाग्य हम दोनो के
बना दृष्टान्त जग आँखों पर रखता
ये सब होता,ये तब होता
जब प्रणय अंजाम पहुँचता
~~~गौरव कुमार