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इनकार (लघु कथा)

29 अप्रैल 2015

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featured image “सुरेश जी आप तो कल अपनी बेटी के लिए लड़का देखने गए थे ना ?” “हाँ , गया था /” “कैसा है लड़का ?” “लड़का गोरा-चिट्टा, ६ फुट लम्बा, उभरा मस्तिस्क , मजबूत शरीर, किसी राजकुमार से कम नहीं लगता / मेरी बेटी की तुलना में तो बीस पड़ता है /” “करता क्या है ?” “केंद्रीय ऊर्जा आयोग में अधिकारी के पद पर है /” “तब तो वेतन भी अच्छा -खाशा होगा / उपरवार भी कमा लेता होगा /” “उपरवार का तो नहीं पता लेकिन वेतन अच्छा – खासा है /” “परिवार कैसा है ?” “घर में माँ -बाप और बेटा सिर्फ तीन लोग ही है / बाप राज्य सरकार में कर्मचारी थे / अब रिटायर्ड हो गए है / अच्छा -खासा पेंसन पाते है / माँ घर में ही रहती है / अपना एक बड़ा सा मकान भी है / निचे के कमरों को उनलोगों ने किराये पर दे रखा है /” ” मांग कितना का है /” ” कोई खास नहीं /’ “तब तो बड़ा अच्छा रिश्ता पाया है आपने / जल्द से सगाई कर दीजिये / शादी बाद में होती रहेगी /” “मैं भी तो यही चाहता हूँ / लेकिन——” “लेकिन क्या ?” “मेरी बेटी ने ऐसे परिवार में शादी से इंकार कर दिया है /” वो भला क्यों? अकेला लड़का है वो भी अपने माँ -बाप के साथ रहता है / मेरी बेटी को भी अपने सास-ससुर के साथ रहना होगा / उनकी गुलामी करनी होगी / उनके पुराने संस्कार को मानने होंगे / और तुम तो जानते हो की मेरी बेटी किसी के अधीन नहीं रह सकती / संस्कार के नाम पर उसके पंखों को उड़ने से नहीं रोका जा सकता / इसलिए इंकार कर दिया है /

राजेश कुमार श्रीवास्तव की अन्य किताबें

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अन्तिम संस्कार

3 अप्रैल 2015
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पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा शहर / शाम के सात बजने वाले है / अभिजीत अपने ऑफिस से घर लौट आया है / दरवाजे पर खड़े होकर घंटी बजाता है / उसकी पत्नी, पौलमी के दरवाजा खोलते ही वह अंदर प्रवेश कर जाता है / पौलमी दरवाजा बंद करते-करते बोल उठती है / “लगता है तुम्हारा बुढ्ढा बाप इस बार का ठंढ नहीं सह पायेगा / ” ”

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व्यवसाय के गुर

3 अप्रैल 2015
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अग्रवाल जी अक्सर अपने बड़े बेटे को साथ लेकर खड़गपुर जाया करते थे / खड़गपुर में उनकी ठेकेदारी चलती थी / जिस कारखाने में उनकी ठेकेदारी चलती थी उसकी दुरी स्टेशन से महज एक किलोमीटर होगी / लेकिन वे पैदल ना चलकर रिक्शा किराए पर ले लेते / रिक्सावाला उनसे इस दुरी के लिए दस रुपये मांगता / बिना मोल-भाव किये वे उ

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भारतीयों से सीखें

21 अप्रैल 2015
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बलात्कार पीड़िता

24 अप्रैल 2015
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हाड़ है मांस है / लेती अब भी साँस है / सोती है, जागती है / भोजन भी करती है / फिर भी अब जीने की - नहीं उसमे आस है / बर्बर समाज की बनाई - ज़िंदा एक लाश है / ना रोती ना हंसती है / मिलने से डरती है / गूंगी ना बहरी फिर भी - ना बोलती ना सुनती है / गांव है, उसका घर है / लोग है बाग़ है / नीम क

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इनकार (लघु कथा)

29 अप्रैल 2015
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रावण दहन

17 अक्टूबर 2015
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दो पैर , दो भुजाएँ /चौड़ी छाती, मजबूत कंधे -बिशालकाय शरीर बनाई /उस पर दस शीश लगाई /पुतला निस्तेज पड़ा था /फिर उसे सहारा दिया -खड़ा किया /फिर भी पुतला चुप था /हाथों में हथियार थमाएँ /आँखों में नफ़रत का रंग भरा /पुतले में कोई हलचल ना हुई /फिर भी मन ना भरा /हाथ , पैर , पेट, पीठ ,एक-एक अंग में बारूद भरा /पु

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10 फरवरी 2016
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सुबह के साढ़े छह बजते ही स्मार्ट फोन का अलार्म बजने लगा और मेरी नींद टूट गई / उठकर, सिराहने रखे बोतल से आधा बोतल पानी गटकने के बाद बाथरूम की ओर बढ़ा /  सुबह साढ़े सात बजे मुझे ऑफिस के लिए निकलना पड़ता है  इसलिए मै साढ़े छह बजे का अलार्म सेट करके बेड पर ही रख देता हूँ / मुझे फ्रेश होने के लिए टॉयलेट में प

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भोजपुरी गीत

7 मार्च 2016
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