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अन्तिम संस्कार

3 अप्रैल 2015

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पश्चिम बंगाल का एक छोटा सा शहर / शाम के सात बजने वाले है / अभिजीत अपने ऑफिस से घर लौट आया है / दरवाजे पर खड़े होकर घंटी बजाता है / उसकी पत्नी, पौलमी के दरवाजा खोलते ही वह अंदर प्रवेश कर जाता है / पौलमी दरवाजा बंद करते-करते बोल उठती है / “लगता है तुम्हारा बुढ्ढा बाप इस बार का ठंढ नहीं सह पायेगा / ” ” क्यों, क्या हुआ ? तबियत ज्यादा बिगड़ गई है क्या ?” अभिजीत ने पत्नी से जानना चाहा / पत्नी-” आज सुबह से केवल खाँस रहा है / रामु (नौकर) से नाश्ता भिजवाया था / वो भी अभी तक नहीं खाया है / ना कुछ खा रहा है ना पी रहा है तो कब तक टिकेगा/” - ” तुमने जाकर देखा /” अभिजीत थोड़ा चिंतित नजर आने लगा / पत्नी घबड़ाते हुए – ” ना बाबा ना / मैं नहीं जानेवाली उसके पास / कही उसका संक्रमण मुझे ना लग जाये / और तुम भी ना जाना / रात में फिर से रामु से खाना भिजवा दूंगी / खाए तो भला ना खाए तो भी भला / बहुत दिन जी लिया बुढ्ढा / कही जाते -जाते अपनी बीमारी हमें ना दे जाय / ” अभिजीत को पत्नी के इच्छा के विरुद्ध कोई भी काम करने का साहस नहीं था / इसलिए अपने बूढ़े बाप का खबर लेने का तिब्र इच्छा होने के बावजूद वह ऐसा नहीं कर पाया / वह चिंतित मन से सोफे पर बैठ गया / पौलमी भी उसके बगल में बैठ कर टीवी देखने लगी / वह चैनल बदल रही थी और अभिजीत बुझे मन से चुप-चाप बैठा रहा / तीन व्यक्तियों का यह एक छोटा परिवार था/ पिताजी एक सरकारी कर्मचारी थे / उनको रिटायर हुए सात वर्ष बीत गए थे / अवकास ग्रहण के अगले ही वर्ष पत्नी भी स्वर्ग सिधार गई / एक ही लड़का है / उसके लालन-पालन से लेकर शिक्षा-दीक्षा का उन्होंने विशेष ध्यान रखा / आज वह एक बड़ी कंपनी में मैनेजर है / अवकाश ग्रहण के समय जो पैसा मिला उससे अपने छोटे से मकान को भव्य बनाया / बाहर एक गैरेज भी बनवा डाला ताकि भविष्य में कभी गाड़ी खरीदी जाय तो रखने में असुबिधा ना हो / लेकिन आज यही गाड़ी रखने की जगह उनकी आशियाना बन गई है / बेटे और बहु ने गाडी की जगह उन्ही को उसमे रहने का प्रबंध कर डाला है / बुढ़ापा ने कमजोरी को और कमजोरी ने शरीर को बिमारियों का घर बना डाला / आज वो रात-दिन उसी गैरेज में गुजारते है / बहु समय -समय पर नाश्ता खाना भिजवा देती है / दवाइयों की भी व्यवस्था हो ही जाती है / बदले में उनको अपने पेंशन का एक-एक रुपया बहु के हाथों में सौप देना पड़ता है / टीवी देखते – देखते अचानक अभिजीत ने पौलमी से टीवी का साउंड बंद करने को कहा / ” क्यों क्या हुआ ? क्या सोचने लगे /” पौलमी ने पूछा / ” सोच रहा हूँ एक बार पिताजी को देख आऊँ / जाने क्यों मन घबड़ा रहा है /” वह सोफे से उठ खड़ा हुआ / ” ठीक है कल सुबह देख लेना /” पौलमी ने उसका हाथ पकड़कर फिर सोफे पर बैठा लिया / ” क्यों अभी क्यों नहीं ?” वह घबड़ाया हुआ लग रहा था / पौलमी-” अरे कही मर-मुरा गया होगा तो ना रात में खाना-पीना हो पायेगा ना ही सोना/ सब छोड़कर शुरू कर देना पडेगा अन्तिम संस्कार की तैयारी /” ” हाँ / अब समय देखकर तो किसी की मौत आती नहीं / रात हो या दिन , गर्मी हो या ठंढ , जो हमारे संस्कार है वो तो करने ही होंगे /” ” जब सारी दुनिया तेजी से आधुनिक हो रही है तो ये संस्कार क्यों पुराने ही निभाने होते है मुझे समझ नहीं आता / अब कोई मर जाय तो अपना सारा काम-धाम छोड़कर पंडित बुलाओ, कफ़न खरीदो , धुप – बत्ती जलाओ, शमसान पहुंचाओं, मुखाग्नि दो, जलाओं, नहाओ, दस-बारह दिनों तक पड़े रहो श्राद्ध करो, ये क्या मुसीबत है / खुद तो मरकर स्वर्ग में आराम फरमाओं और दूसरों को परेशान करो / ” ” पूर्बजो की बनाई इस प्रथा को बदला तो नही जा सकता /” ” ऐसा भी तो नहीं हो सकता की म्युनिसिपल वालों को खबर करो / कुछ पैसे दो और वही उठाकर ले जाय/ जो करना हो करे /” ” म्युनिसिपल वाले पशुओं के मृत शरीर को ले जाते है मनुष्य को नहीं/” ” हाँ पता है मुझे / लेकिन कोई तो संस्था होगी जो पैसे लेकर हमारे इस सड़े संस्कार की खाना पूर्ति कर दे /” ” हाँ मैंने इंटरनेट पर ऐसी कुछ सत्कार समितियों का प्रचार देखा है जो पैसे के बदले ऐसे काम कर दिया करती है /” ” तो खोजकर रखो ना ऐसे संस्थाओं का अता-पता, ताकि हमें परेशान होने की जरुरत नहीं पड़े /” फिर दोनों इंटरनेट पर ऐसे सत्कार संस्थाओं के संपर्क खोजने में व्यस्त हो गए / अभी आधे घंटे भी नहीं हुए होंगे की बाहर से “आग-आग” की आवाज सुनकर दोनों घर से बाहर निकले / बाहर उनका गैरेज चारों और से धूं-धु करके जल रहा था/ जबतक दमकल वाले आते और आग बुझाते, पूरा गैरेज जलकर राख में तब्दील हो चुका था / आग की ऊँची – ऊँची उठ रही लपटों ने उस बूढ़े के साथ-साथ उसमे पल रहे संक्रमण के कीटाणु को भी राख में तब्दील कर दिया था / गैरेज से दूर घर के दरवाजे पर एक कागज़ का टुकड़ा पड़ा था जिसपर लिखा था / मेरी अन्तिम संस्कार की चिंता तुमलोगो को करने की जरुरत नहीं / मैंने अपने माता-पिता और पत्नी के अन्तिम-संस्कार किये है / मुझे अपना अन्तिम संस्कार करना भी आता है /

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राजेश जी, रचना बहुत अच्छी लगी. आभार,

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अग्रवाल जी अक्सर अपने बड़े बेटे को साथ लेकर खड़गपुर जाया करते थे / खड़गपुर में उनकी ठेकेदारी चलती थी / जिस कारखाने में उनकी ठेकेदारी चलती थी उसकी दुरी स्टेशन से महज एक किलोमीटर होगी / लेकिन वे पैदल ना चलकर रिक्शा किराए पर ले लेते / रिक्सावाला उनसे इस दुरी के लिए दस रुपये मांगता / बिना मोल-भाव किये वे उ

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भारतीयों से सीखें

21 अप्रैल 2015
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शिवाजी जैसा शुर बनो / महाराणा प्रताप सा वीर बनो / बनो श्रवण सा मातृ- पितृ भक्त / कर्ण सा दानवीर बनो / राजा बनो तुम राम जैसा / हनुमान सा स्वामी भक्त बनो / गांधी जैसा अहिंसावादी / पटेल सा देशभक्त बनो / स्त्रियों की लाज बचाकर - कृष्ण सा तारणहार बनो / अर्जुन सा एकाग्र मन- भीम सा बलवान बनो /

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बलात्कार पीड़िता

24 अप्रैल 2015
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हाड़ है मांस है / लेती अब भी साँस है / सोती है, जागती है / भोजन भी करती है / फिर भी अब जीने की - नहीं उसमे आस है / बर्बर समाज की बनाई - ज़िंदा एक लाश है / ना रोती ना हंसती है / मिलने से डरती है / गूंगी ना बहरी फिर भी - ना बोलती ना सुनती है / गांव है, उसका घर है / लोग है बाग़ है / नीम क

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इनकार (लघु कथा)

29 अप्रैल 2015
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“सुरेश जी आप तो कल अपनी बेटी के लिए लड़का देखने गए थे ना ?” “हाँ , गया था /” “कैसा है लड़का ?” “लड़का गोरा-चिट्टा, ६ फुट लम्बा, उभरा मस्तिस्क , मजबूत शरीर, किसी राजकुमार से कम नहीं लगता / मेरी बेटी की तुलना में तो बीस पड़ता है /” “करता क्या है ?” “केंद्रीय ऊर्जा आयोग में अधिकारी के पद पर है /” “तब त

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रावण दहन

17 अक्टूबर 2015
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दो पैर , दो भुजाएँ /चौड़ी छाती, मजबूत कंधे -बिशालकाय शरीर बनाई /उस पर दस शीश लगाई /पुतला निस्तेज पड़ा था /फिर उसे सहारा दिया -खड़ा किया /फिर भी पुतला चुप था /हाथों में हथियार थमाएँ /आँखों में नफ़रत का रंग भरा /पुतले में कोई हलचल ना हुई /फिर भी मन ना भरा /हाथ , पैर , पेट, पीठ ,एक-एक अंग में बारूद भरा /पु

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10 फरवरी 2016
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सुबह के साढ़े छह बजते ही स्मार्ट फोन का अलार्म बजने लगा और मेरी नींद टूट गई / उठकर, सिराहने रखे बोतल से आधा बोतल पानी गटकने के बाद बाथरूम की ओर बढ़ा /  सुबह साढ़े सात बजे मुझे ऑफिस के लिए निकलना पड़ता है  इसलिए मै साढ़े छह बजे का अलार्म सेट करके बेड पर ही रख देता हूँ / मुझे फ्रेश होने के लिए टॉयलेट में प

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7 मार्च 2016
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