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लोक और तंत्र का रिश्ता

20 दिसम्बर 2021

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फ्रीडम हाउस नामक संस्था के अनुसार पिछले साल दुनिया के 73 देशों में लोकतंत्र कमजोर पड़ा इनमें दुनिया का सबसे पुराना लोकतंत्र अमेरिका और सबसे बड़ा लोकतंत्र भारत दोनों शामिल थे इस साल लोकतंत्र के हॉर्स की रफ्तार और तेज हुई म्यामार और सूडान में लोकतंत्र के लिए आंदोलन करने वालों को निर्वासन यातना और मौत का सामना करना पड़ा हांगकांग की सदस्यता पर अंकुश लगाया गया ताइवान के आसमान पर चीनी विमान मंडरा रहे हैं और रूसी सेना ने यूक्रेन के दरवाजे पर दस्तक दे रही है आप कह सकते हैं कि तानाशाही ताकतें लोकतंत्र ऊपर हावी होती जा रही है दूसरे नजरिए से देखें तो लोकतंत्र का ठप्पा सत्ता की वैधानिकता और सुशासन का सरल मंत्र पर्याय बन चुका है तानाशाह देश भी अपनी व्यवस्था को लोकतंत्रिक सिद्ध करने में जुटे हैं एक दलीय शासन वाले चीन ने दावा किया है कि चीन की पीपुल्स कांग्रेस के चुनाव दुनिया के सबसे बड़े चुनाव होते हैं इसलिए चीन दुनिया का सबसे बड़ा और स्तर लोकतंत्र है जिसमें भारत जैसी अराजकता और रिश्ता नहीं है रोज का दावा है कि उसके यहां तो बहुत दलिए लोकतंत्र है ईरान भी बहुत दलीय लोकतंत्र होने का दावा कर सकता है यानी लोकतंत्र पर दो तरफा हमला हो रहा है जहां लोकतंत्र हैं वहां पहले सत्ता हथियाने और फिर उस पर कब का बीज रहने के लिए अधिनियम ध्रुवीकरण लोकरंजन और अभी वक्त पर अंकुश जैसे हथकंडे अपनाए जा रहे हैं जहां लोकतंत्र नहीं है वहां तानाशाही को वैध ठहराने के लिए उसे लोकतंत्र के स्थाई और अधिक उपयुक्त रूप मे पेश कर दुनिया को गुमराह किया जा रहा है यह लगातार पांचवें साल जिस में लोकतंत्र की तरफ बढ़ने वाले देशों की तुलना में तानाशाही की और उपदेशों की संख्या ज्यादा रही ऐसे में लोकतंत्र पर अंतरराष्ट्रीय शिखर सम्मेलन का विचार बुरा नहीं था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति जो वार्डन ने उस में जिस प्रकार कुछ देशों को बुलावा भेजा और कुछ को नहीं तो उस पर सवाल उठने जरूरी थे लोकतंत्र के मंच पर अमेरिक नेतृत्व पर भी सवाल उठना लाजिमी क्योंकि एक के बाद एक अमेरिकी राज्य में मतदान के अधिकारियों पर अंकुश लगाते हैं जा रहे हैं वहीं पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले चुनाव में ना केवल अपनी हार मानने से इनकार किया बल्कि सत्ता के शांतिपूर्ण हंसता रन को रोकने का प्रयास भी किया इस लोकतंत्र शिखर सम्मेलन में भाग लेने वाले देशों को 3 लक्ष्यों पर ठोस प्रतिबंधक करनी थी तानाशाही को रोकना भ्रष्टाचार मिटाना और मानव अधिकारों की रक्षा करना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मोदी ने इन तीनों राशियों पर कुछ वचन देने या जिन बातों को लेकर भारत की आलोचना हो रही है उन पर कुछ कहने के बजाय भारत के जन-जन में बसी लोकतंत्र की भावना को रेखांकित किया उन्होंने कहा कि भारत स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने और प्रशासन के हर क्षेत्र के डिजिटल समाधान ओं के जरिए पारदर्शिता लाने के काम में अपनी विशेषता साझा करने को तैयार है आलोचकों का कहना है कि लोकतंत्र के लिए केवल तंत्र चुनाव ही काफी नहीं है उनके लिए न्यायपालिका की स्वतंत्रता राजनीतिक एवं नागरिक स्वतंत्रता और मीडिया की संतरा जैसे अन्य तत्वों का होना भी आवश्यक है चुनाव का दावा तो सिंगापुर चीन और भी कर सकते हैं एक ही दल है या एक से अधिक दल होने की स्थिति में चुनाव में भागीदारी के लिए सर्वोच्च कुत्ता की अनुमति आवश्यक है भारत में पंचायत चुनाव को छोड़ दें तो चुनाव में उम्मीदवारों का चयन पार्टी आलाकमान भी करता है इनमें भी अधिकांश खानदानी जागीर की बातें या वंशवाद के दम पर चलते रहे हैं इसलिए आलाकमान का मतलब नेता उसका कुनबा या कर पात्र होते हैं उम्मीदवार के निर्धारण में जनता की कोई भूमिका नहीं होती थोपे हुए नेताओं के कारण ही तमाम लोग निराश में मतदान करने के लिए भी नहीं जाते अमेरिका ब्रिटेन के अलावा यूरोप के कई देशों में ऐसे नहीं है मां छोटे-छोटे चुनाव से लेकर बड़े-बड़े चुनाव तक उम्मीदवारों को हमेशा पार्टी सदस्य करते हैं आलाकमान या सत्ता का कोई हस्तक्षेप नहीं करता लोक और तंत्र के बीच का रिश्ता बना रहता है इसलिए इसे लोकतंत्र कहते हैं भारत की पार्टियों में और अधिक आवाज की वजह से लोक और तंत्र के बीच का यह रिश्ता टूट चुका है जब पार्टी सदस्य ही अपने क्षेत्र के उम्मीदवार चयन में कोई भूमिका नहीं निभा सकते तो उन्हें फिर उनमें और चीनी कम्युनिस्ट पार्टी में क्या अंतर है कि चुनाव आयोग पार्टियों को लोकतंत्र और सीता का उपदेश देने के अलावा भी यह एक बड़ी समस्या है कहने को अमेरिका में जनता को चुने जाते हैं परंतु हर पार्टी जानती है कि चुनाव लड़ने और पार्टी चलाने के लिए से कहीं ज्यादा भारी भरकम राशि की जरूरत पड़ती है तो अमीरों कंपनियों से ली जाती है भारत में स्थिति और खराब है चुनाव प्रचार में चुनाव आयोग की तय सीमा से कई गुना पैसा खर्च किया जाता है और वह अक्सर काले स्त्रोतों से आता है जिस व्यवस्था की बुनियाद की और उनके आलाकमान द्वारा थोपे गए उम्मीदवारों पर टिकी हो उसे आप सुधारों की कितनी उम्मीद रख सकते हैं यह हम सब के लिए विचार का विषय है यदि भारत को प्रशासन और राजनीतिक दलों में तानाशाही आदि को रोकने के लिए गंभीरता से कुछ करना है यदि भ्रष्टाचार मिटाने और मानव अधिकारों की रक्षा के लिए कुछ करना है तो सबसे पहले दलों के भीतर को हटाकर आंतरिक लोकतंत्र लाना होगा चुनाव में अनावश्यक खर्च पर अंकुश लगाना होगा और मुख्यधारा का मीडिया घर घर पहुंच चुका है तो लोगों को उठाकर मैदान भरने के बजाय उम्मीदवार मतदाता से संवाद पर ध्यान दें इसमें खर्च घटेगा और मतदाता और प्रत्याशियों के बीच नाता भी कायम होगा क्या भारत की राजनीति पार्टियां इसके लिए तैयार हैैलेखक नूर मोहम्मद

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लोकतन्त्र का सही से कार्य करना, वहां के निवासियों पर निर्भर करता है। हिन्दू समाज के मानस में यह भाव वैदिक काल से ही चले आ रहे हैं। इसीलिए भारत में लोकतन्त्र जीवित है और रहेगा भी।

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