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मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के नाम खुला खत

2 अप्रैल 2016

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प्रति

शिवराज सिंह चौहान

मुख्यमंत्री, मप्र

 

              आदरणीय मुख्यमंत्री जी। न तो मैं इस काबिल हूं, कि आपको कोई सलाह दे सकूं। और न ही मैं इतनी हिमाकत कर सकता हूं, कि आपके कुछ किए हुए को गलत ठहरा सकूं। मैं तो सिर्फ इस खुले खत के जरिए आपके सामने अपना दुखड़ा व्यक्त करना चाहता हूं। जो कि सिर्फ मेरा ही नहीं, बल्कि उस प्रदेश के साढ़े सात करोड़ लोगों का है, जिसे आप अपना परिवार कहते हो। मेरा आपसे निवेदन है कि आप इस खत को पढ़ते हुए उन्ही करोड़ों आवाजों को महसूस करने का कष्ट करें।

       हाल ही में मेरा दतिया जिले में अपने गृहग्राम उचाड़ जाना हुआ। कहने को सबकुछ पहले जैसा ही था, लेकिन वहां के अस्पताल के सामने बड़ी संख्या में लोग लाइन लगाए खड़े हुए थे। कोई आदमी किस स्थिति में अस्पताल पहुंचता है यह बात अच्छी तरह से समझ सकते हैं। लेकिन उन लोगों का दुर्भाग्य देखिए कि अस्पताल में कोई डॉक्टर न होने की वजह से वह घंटों उसके द्वार पर बैठकर वापस लौट गए। थोड़ा बहुत पूछताछ करने पर पता चला, कि डॉक्टर की कमी के चलते ऊपर से अस्पताल में पदस्थ डॉक्टर को इंदरगढ़ तहसील बुलाने का फरमान आया है। चूंकी स्वास्थ्यकर्मी हड़ताल पर चल रहे हैं, ऐसे में उचाड़ के अस्पताल में ताला लग गया, ऐसे में इस अस्पताल के भरोसे करीब 15 से 20 गांवों के लोग किसके भरोसे रहेंगे यह एक बड़ा सवाल था।

ऐसे न जाने कितने उचाड़ होंगे, कितने अस्पताल होंगे। और खुद की वेदना को इस उम्मीद के सहारे झेलने वाले कितने ही मरीज होंगे, कि कभी तो अस्पताल का ताला खुलेगा। 

मैं मानता हूं कि आपका मैनेजमेंट बहुत मजबूत है, आपने अपनी इस प्रबंधन कुशलता का परिचय देते हुए हड़तालियों को वापस काम पर बुला लिया। लेकिन इस हड़ताल का पिछले करीब 4 हफ्तों का समय एक आदमी पर कैसे बीता होगा, शायद आप उस दर्द को महसूस कर पाने की कोशिश करें।

सिर्फ स्वास्थ्यकर्मी ही क्यों, बोर्ड परीक्षा के ऐन पहले अतिथि शिक्षकों की लामबंदी भी उन छात्रों के लिए किसी बड़ी परेशानी से कम नहीं थी। जो सिर्फ सरकारी शिक्षा के भरोसे थे। नियमितिकरण की मांगों को लेकर शिक्षक सिर्फ सड़क पर ही नहीं उतरे, बल्कि इस दौरान वो लाखों छात्रों के भविष्य को अंधेरे में डुबाने का काम भी कर रहे थे। परीक्षा के ऐन वक्त पर शुरू हुए आत्महत्याओं के सिलसिले को हम अतिथि शिक्षकों की लामबंदी के साथ जोड़कर क्यों न देखे।

कितनी खतरनाक होती जा रही है, बात बात पर विभिन्न कर्मचारी संगठनों की लामबंदी। शायद आप इसे लेकर आम आदमी के दर्द को समझ सकें। आपको याद हो, इससे पहले सूखे को लेकर जब मुआवजा बांटने का समय था, उस वक्त पटवारियों की हड़ताल भी परेशान किसानों की माथे की शिकन को और बढ़ाने का काम रही थी।

सिर्फ यही नहीं पंचायत प्रतिनिधि, रोजगार सहायक के अलावा विभिन्न वर्गों की हड़ताल ने आम आदमी की कमर को तोड़ने का काम किया है। और वह बिचारा खुलकर इसका विरोध भी नहीं कर पाता। शायद यही कारण है कि उसकी आवाज आज तक आप तक नहीं पहुंच सकी।

सोच तो आपकी बहुत अच्छी है, लेकिन उस सोच को धरातल पर लाने वाला आपका सिस्टम कहीं न कहीं आप पर ही हावी दिखाई दे रहा है। आपको बात बात पर दबाने की कोशिश की जाती है। और वह कोशिश प्रभावित करती है समूचे प्रदेश को, और प्रदेश की जनता को। ऐसे में वो कौनसी मजबूरी है आपकी, जो आप बात बात पर लामबंद होने वाले कर्मचारी संगठनों के खिलाफ सख्त नहीं हो पा रहे। आपको मालूम होना चाहिए, कि मुख्यमंत्री के पद पर रहते हुए जयललिता ने हड़ताल पर अड़े करीब दो लाख कर्मचारियों को एक बार में ही बाहर का रास्ता दिखा दिया था। फिर वही अधिकार, वही ताकत होने के बावजूद आप कोई ऐसा फैसला क्यों नहीं ले पा रहे यह एक बड़ा सवाल है।

सहनशीलता एक सीमा तक ठीक रहती है, इसके बाद लोग उसे कमजोरी मानने लगते हैं। और कर्मचारी संगठनों को लेकर आपकी सहनशीलता भी उस स्तर तक पहुंच गई है, जिसे कमजोरी का नाम दिया जाने लगा है। ऐसे में हर किसी के समझ में यह बात भी नहीं बैठती, कि ये कमजोरी क्यों ? सवाल यहां यह भी खड़ा होता है, कि क्या कर्मचारी संगठनों के प्रति आपका ये झुकाव क्या सिर्फ आपकी तुष्टीकरण की नीति का एक हिस्सा है। क्या आपको अपनी वोट बैंक दरकने का डर कुछ इस कदर है कि आप लगातार जारी हड़तालों के सिलसिले के खिलाफ सख्ती भरा रवैया नहीं अपना पा रहे।

ये प्रदेश आपका है, आप इसके मुखिया हो। यहां की जनता ने अपना अमूल्य मत देकर आपको अपना नेता चुना है। इसका भला बुरा भी अब आपको ही सोचना है। और सिर्फ सोचना ही नहीं बल्कि वो करके दिखाना है, जो एक नेता का फर्ज होता है। मैं फिर से एक बार यहां कहना चाहूंगा कि मैं इस काबिल नहीं हूं, कि आपको आपका फर्ज याद दिला सकूं। लेकिन चौबीसों घंटे आमजन के बीच रहने वाला मैं काफी हद तक उन हालातों को समझ सकता हूं, जिनको नजदीकी से जानना शायद आपके लिए थोड़ा मुश्किल हो। और अपने उसी छोटे अनुभव के आधार पर एक बार फिर से आपसे यह निवेदन करना चाहूंगा। कि हे शिवराज, ये वक्त सबकुछ देखते हुए भी अपनी आंखें बंद करने का नहीं है, बल्कि अपनी तीसरी नजर खोलकर खुदकी पकड़ से बाहर जा रहे हालातों पर लगाम लगाने का है। 

हेमंत चतुर्वेदी

 

    


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