आदरणीय
ज्योतिरादित्य सिंधिया जी
पूर्व केन्द्रीय मंत्री एवं कांग्रेस सांसद
महोदय, आपको लिखे जाने वाले इस खत के पीछे मेरा औचित्य न तो किसी तरह के स्वार्थ से प्रेरित है, और न व्यक्तिगत तौर पर आपसे मेरा विशेष जुड़ाव। बस लोकतंत्र के चौथे स्तंभ से जुड़ा उसका एक सजग प्रहरी होने के नाते मुझे चिंता सता रही है लोकतंत्र की। उस लोकतंत्र की, जो मध्यप्रदेश में कायम है, उस लोकतंत्र की, जो मेरे प्रदेश में कायम है।
विपक्ष को लोकतंत्र का गहना माना जाता है। वो गहना, जो उसकी सुंदरता बढ़ाने का काम करे। लेकिन मध्यप्रदेश में लोकतंत्र का यह गहना दिन पर दिन अपनी चमक खोता जा रहा है। इसका आभामंडल सिमटता जा रहा है। अपने शासनकाल में जिस कांग्रेस ने बुलंदी के आयामों को छुआ था, वह विपक्ष में आकर इस तरह धाराशाई हो जाएगी, शायद ही किसी ने यह सोचा हो। खुद की पुरानी साख फिर से हासिल करना तो दूर, बल्कि मौजूदा वक्त में मध्यप्रदेश में अपनी विपक्ष की भूमिका का निर्वहन कर पाने में भी असफल साबित हो रही है कांग्रेस...आपकी कांग्रेस।
हालांकि आपको यह सब बाते बताने का कोई मतलब नहीं है, क्योंकि शायद ही इस बारे में आपसे कुछ छिपा हो। निश्चित ही, आप मुझसे बेहतर तरीके से ये सब जानते होंगे। और सिर्फ जानते ही नहीं, बल्कि इनके पीछे कौन से कारण जिम्मेदार है, इस बात को भी भली भांती समझते होंगे। लेकिन सबकुछ देखने, समझने और जानने के बावजूद भी आप चुप क्यों है। यह बात किसी की समझ में नहीं आती।
किसी ने खूब कहा है, कि यदि आप दूर खड़े होकर गलत होता देख रहे हो, तो आप भी दोषी है। इस बात के जरिए मैं आपको दोषी करार देना नहीं चाहता। लेकिन जिन हालात से मौजूदा वक्त में कांग्रेस जूझ रही है, उन्हे देखकर भी आपका इस तरह शांत बना रहना किसी भी स्तर पर ठीक नहीं है।
दिल्ली में राहुल गांधी को उनके साथ खड़े होने वाले बहुत मिल जाएंगे। क्योंकि आपकी पार्टी में उन नेताओं की कमी नहीं है, जो बड़े नेताओं के पीछे खड़े होकर आगे आने की चाह रखते हों। और भूलवश यदि आप उस जमात में शामिल हो जाते हैं, तो आपकी यह महत्वकांक्षा मध्यप्रदेश कांग्रेस की उम्मीदों को किस तरह चकनाचूर करने का काम करेगी, इस बात अंदाजा आप शायद ही लगा सकें।
दिग्विजय सिंह काफी समय पहले ही खुद को डूबता हुआ सूरज बता चुके हैं, कमलनाथ दिल्ली छोड़ना नहीं चाहते, अरुण यादव कुछ खास कर नहीं पा रहे, पचौरी और भूरिया सिमट गए हैं। ऐसे में मैं इस खत के जरिए आपसे ही पूछना चाहूंगा कि मध्यप्रदेश कांग्रेस भला उम्मीद लगाए भी तो किससे।
मैं मानता हूं, कि कोई छोटी हस्ती नहीं हो आप, आप महाराज हो, सिंधिया राजघराने के वशंज हो। हर किसी के सामने सर झुकाना आपकी फितरत नही है। लेकिन आपको भी यह मानना होगा, कि आपका जुड़ाव राजनीति से है। वह राजनीति, जो बात बात पर तो दूर बल्कि बिना बात के मजबूर करती है हमे झुकने के लिए। ऐसे में आपकी खुद को लचीला बनाए बिना राजनीति के इस समंदर को पार करने की सोच हर स्तर पर बेमानी साबित होती नजर आती है। इस दौरान आपको न सिर्फ झुकना ही पड़ेगा, बल्कि आगे आकर खुदके हक के लिए लड़ना भी पड़ेगा। और बात जब हक की आती है, जो एक जिम्मेदार व्यक्ति वही होता है, जो अपनी जिम्मेदारी को ही खुद का हक मानकर उसे हासिल करने के लिए लड़े।
यह तो बात रही आपकी जिम्मेदारी की। और आपको लेकर प्रदेश कांग्रेस की अपेक्षा की। लेकिन यहां इस बात को भी हम आंखें बंद करके नहीं मान सकते, कि जैसे ही आप मध्यप्रदेश कांग्रेस की कमान संभालोगे तो इसके घोड़े ऐसी सरपट दौड़ लगाएंगे, कि सत्ता तक पहुंच कर ही दम लेगी दस साल से वनवास झेल रही आपकी पार्टी। गुना-शिवपुरी और ग्वालियर को जीतना आसान है, लेकिन मध्यप्रदेश को जीतने के लिए पहली शर्त शिवराज सिंह को हराना है। और मध्यप्रदेश की जनता को शिवराज के विकल्प के तौर पर शिवराज से कम कुछ भी मंजूर नहीं है। ऐसे में आपको यदि शिवराज सिंह से लड़ना है, तो आपको महाराज सिंधिया नहीं बल्कि सेवक सिंधिया बनना पड़ेगा। आपको अपने गिनती के आठ से दस लोगों के सुरक्षा घेरे को तोड़कर किसान मजदूर और गरीब के बीच जाना पड़ेगा। उनको यह बताना पड़ेगा, कि जब उनकी आंखों में लाचारगी के आंसू होंगे तो सिर्फ शिवराज ही उनको पौंछने नहीं आएंगे, बल्कि आप भी उनके साथ खड़े रहोगे। आपको वो जगह भरने की जरूरत है, जो पिछले 12 सालों में कांग्रेस का कोई नेता नहीं भर सका।
मुझे नहीं पता यह खत आप तक पहुंचेगा भी या नहीं। अगर पहुंच भी जाए, तो शायद आपकी व्यस्तता आपको इसे पढ़ने की इजाजत न दे। लेकिन यह जरूरी नहीं कि इस खत का मर्म समझने के लिए आपको इसे ही पढ़ना पड़े। आप बस प्रदेश के किसी भी आम जनमानस का मन टटोल लें। फिर आपको यह खत पढ़ने की बिल्कुल भी जरूरत नहीं पड़ेगी।
अंत में एक बार फिर, यह तय नहीं है कि आप मध्यप्रदेश कांग्रेस के लिए पारस पत्थर का काम करोगे। लेकिन यह जरूर तय है, कि कांग्रेस के बड़े नेताओं की पांत में सिर्फ आप ही इतने काबिल हैं, जो कांग्रेस पर लगी बदहाली के जाल को काफी हद तक छांट सके। और बिना किसी परिणाम की उम्मीद के साथ आप कांग्रेस को अपने कंधों पर उठाकर वह सफर तय करने की कोशिश करेंगे, जो पिछले 12 सालों में कोई नहीं कर सका।
आपका शुभचिंतक
हेमंत चतर्वेदी