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मैं एक मध्यम परिवार से हूं।मेरा बचपन से ही पेड़–पौधों से बहुत लगाव रहा है। कभी कभी मैं अकेला किसी अकेले पेड़ के पास बैठकर उनके पत्तों की सराराहट को आंख बंद करके सुनता हूं,तो ऐसा लगता है कि वे पत्ते जो एक–दूसरे से प्यारी–प्यारी बातें कर रहे है, काश! वो बाते मैं समझ पता ,तो कितना सुकून मिलता मुझे ....और यदि पेड़ बोलता तो क्या होता ।बस यही सोचते–सोचते मैने एक छोटी–सी कविता लिखी है।

10 सितम्बर 2024

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काश! पेड़ भी बोलते होते,
तो इनकी खुशी हम समझे होते।
कैसे सावन में  पेड़ के सारे पत्ते,
 मिलकर खुशी मनाते हैं।
 ऐसा लगता है हर रोज,
 वो कोई पर्व मनाते हैं।
काश!पेड़ भी चलते–फिरते होते,
तो प्रेमी किस्से उनके होते।
कैसे वृक्ष परागण करते ,
इतना तो बतलाते वो।
वो अनुभूति कैसी होती,
मित्र समझ बतलाते वो।
 काश! पेड़ भी पढ़ते अखबार,
पता चलता  उनका व्यवहार।
कैसा महसूस वो करते होंगे।
जब उनके साथी के कटने की,
 सूचना वो पाते होंगे।
मिलने तो वो जा नही सकते,
सिर्फ रोते होंगे .....रोते होंगे।
काश!पेड़ भी बोलते होते,
तो उनका दर्द हम समझे होते।
कैसे गिरे हुए वृक्षों को,
 दिन– दिन सुखना पड़ता है।
कैसे पतझड़ के मौसम में,
अपनों का साथ छूटता है।
काश! पेड़ बोलते होते,
और हम उन्हे समझे होते।
अब ये कसम हम खायेंगे,
पेड़ों को नहीं रुलायेंगे।
बस एक नारा दोहराएंगे,
 पर्यावरण स्वच्छ बनायेंगे ।                                                                         ✨  नागेश यादव ✨ 

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मीनू द्विवेदी वैदेही

मीनू द्विवेदी वैदेही

बहुत सुंदर लिखा है आपने 👌👌 आप मेरी कहानी प्रतिउतर और प्यार का प्रतिशोध पर अपनी समीक्षा और लाइक जरूर करें 🙏🙏🙏

11 सितम्बर 2024

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