मैं एक मध्यम परिवार से हूं।मेरा बचपन से ही पेड़–पौधों से बहुत लगाव रहा है। कभी कभी मैं अकेला किसी अकेले पेड़ के पास बैठकर उनके पत्तों की सराराहट को आंख बंद करके सुनता हूं,तो ऐसा लगता है कि वे पत्ते जो एक–दूसरे से प्यारी–प्यारी बातें कर रहे है, काश! वो बाते मैं समझ पता ,तो कितना सुकून मिलता मुझे ....और यदि पेड़ बोलता तो क्या होता ।बस यही सोचते–सोचते मैने एक छोटी–सी कविता लिखी है।
काश! पेड़ भी बोलते होते,तो इनकी खुशी हम समझे होते।कैसे सावन में पेड़ के सारे पत्ते, मिलकर खुशी मनाते हैं। ऐसा लगता है हर रोज, वो कोई पर्व मनाते हैं।काश!पेड़ भी चलते–फिरते होते,तो