अपनो के बीच रह कर ख़ुद को बदला है ,
ऐसी तो नहीं थी मैं, मैंने ख़ुद को बदला है !
दूसरों को मेरी तकलीफ पर मुस्कुराते देखा है,
अपने आँसुओं को पानी जैसे बहाते देखा है !
इसलिए मैंने अब दुख में भी हँसना सीखा है,
ऐसी तो नही थीं मैं मैंने ख़ुद को बदला है !
रिश्तों की भीड़ में हरदम खुद को तन्हा पाया है,
इसलिए मैंने खामोशी को अब गले लगाया है !
सँगीत की शाम में अक्सर ग़मगीन हो जाती हूँ,
मुसकुराते - मुस्कुराते अचानक से रो जाती हूँ !
सिक्के के हर पहलू पर मैंने ख़ुद को परखा है,
हाँ, मैं ऐसी तो नही थी मैने ख़ुद को बदला है !!