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मैंने ख़ुद को बदला है...

3 सितम्बर 2021

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अपनो के बीच रह कर  ख़ुद को बदला है ,
ऐसी तो नहीं थी मैं, मैंने ख़ुद को बदला है !

दूसरों को मेरी तकलीफ पर मुस्कुराते देखा है,
अपने आँसुओं को पानी जैसे बहाते देखा है !

इसलिए मैंने अब दुख में भी हँसना सीखा है,
ऐसी तो नही थीं मैं  मैंने ख़ुद को बदला है !

रिश्तों की भीड़ में हरदम खुद को तन्हा पाया है,
इसलिए मैंने खामोशी को अब गले लगाया  है !

सँगीत की शाम में अक्सर ग़मगीन हो जाती हूँ,
मुसकुराते - मुस्कुराते अचानक से रो जाती हूँ !

सिक्के के हर पहलू पर मैंने ख़ुद को परखा है,
हाँ, मैं ऐसी तो नही थी मैने ख़ुद को बदला है !!

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