भींग रहीं थी बरखा,
मेघ बरस रहें थें इतना।
झूम रहें बादल नभ में,
खुश जो थी वो इतना।
इतना खुश किस बात पर थी वो,
पहले तो कभी देखा ना।
लगता है ...देखो तो उसके भी,
क्यूँ! भींग रहे दो नैना।
झर-झर आँसूं से भींग रहीं,
चेहरे पे हँसी है कितना।
जेठ मास के दिन हैं ये,
फिर बरस रही क्यूँ इतना।
लगता है कुछ तो बात हुई,
उस रात से मौसम बिगड़ा।
कितना गरजा था वो अम्बर,
था कुछ तो उसको कहना।
जा चला गया बादल था वो,
बिन सावन वो बरसे ना।
कोई तरस रहा बादल बरसे,
कोइ झटक रहा है मन को हाँ।
नित बादल आये-जाये नभ में,
कुछ शोर करे, कुछ बरसे ना।
क्या छोड़ गया कोई साथी उसको,
देखो ...बरस रहा रो कर वो कितना।
© kumar gupta