Poonam kaparwan
मैं गृहिणी हूँ ।पहले एक अध्यापिका थी।लेखन पाठन नृत्यं में रुचि है।मुझ में पशुवर्ग प्राकृतिक प्रेम कूट कूट कर भरा है।प्रेम मेरा प्रिय विषय है। समाजके विषय पर लेखन करती हूँ ।प्रतिलिपि मंच पर भी लेखन करती हूँ ।धन्यवाद ।
करवटें
करवटें बदलतें रहे रात भर हम.... आंखों की पलकों को बंद किए थे हम.... पलकें में बसी यादें जो अतीत पर भारी थी.... नींद की जुंबिश ठहर ठहर कर गुनगुनी रही थी.... सलवटें चादर की बयां कर रही थी कोई पहलू में बैठकर नजर भर देख रहा था ये मेरा अंतर्मन था
करवटें
करवटें बदलतें रहे रात भर हम.... आंखों की पलकों को बंद किए थे हम.... पलकें में बसी यादें जो अतीत पर भारी थी.... नींद की जुंबिश ठहर ठहर कर गुनगुनी रही थी.... सलवटें चादर की बयां कर रही थी कोई पहलू में बैठकर नजर भर देख रहा था ये मेरा अंतर्मन था
रूठें सनम
चलिए मान भी जाईऐ ऐ मेरे सनम बलैय्या लूं हजारों तुम पर ऐ मेरे सनम माफ करना हो गई गलतियां जो नागवार गुजरी दिल पर लगाना जो हमारी बद्जुबानी गुजरी सम्बंध है हमारा कुदरत का तोहफ़ा चलो घर आते हुऐ ले आना साड़ी का तोहफ़ा नाराज नही पर बात चुभ गई मेर
रूठें सनम
चलिए मान भी जाईऐ ऐ मेरे सनम बलैय्या लूं हजारों तुम पर ऐ मेरे सनम माफ करना हो गई गलतियां जो नागवार गुजरी दिल पर लगाना जो हमारी बद्जुबानी गुजरी सम्बंध है हमारा कुदरत का तोहफ़ा चलो घर आते हुऐ ले आना साड़ी का तोहफ़ा नाराज नही पर बात चुभ गई मेर