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मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगे

6 मई 2017

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झुरमुट में दिखती परछाइयाँ

घुँघुरू की मद्दिम आवाज

लम्बे अर्से का अन्तराल

तुझसे मिलने का इन्तजार

चाँद की रोशन रातों में

पल हरपल थमता जाए

ऐसा लगता है मानो तुम

मुझसे आलिंगन कर लोगी

पर कुछ छण में परछाइयाँ

नयनों से ओझल हो जायें

दिन की घड़ी घड़ी में बस

बस तेरी ही याद सताये

सच कहता हूँ मै तुमसे

मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगे.


सच में सच को समझ न पाना

यह मेरी ऩादानी थी

एक दीदार को मेरी ऩजरें

हरपल प्यासी प्यासी थी

वक्त के कतरे कतरे से

एक झिलमिल सी आहट आई

मेरी रूहें कांप उठी

जब उसने इक झलक दिखाई

चन्द पलों तक मै खुद को

उसकी बाहों में पाया था

यही वक्त था जिसने मुझको

गिरकर उठना सिखाया था

सच कहता हूँ मै तुमसे

मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगे.


दिल की चाहत एक ही है

तुम मेरी बस हो जाओ

गर इस जनम न मिल पाओ तो

अगले जनम तुम साथ निभाओ

जग सूना सूना है तुम बिन

तुम ही मेरी खुशहाली हो

मेरे आँका खुदा तुम्ही हो

मेरी रूह की धड़कन तुम हो

साथ में मरना साथ ही जीना

दो होकर भी एक हो जाऊँ

जनम जनम तक साथ मिले बस

इससे ज्यादा क्या बतलाऊँ

सच कहता हूँ मै तुमसे

मेरे लफ़्ज तुझसे यकीं माँगे.

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रेणु

रेणु

बहुत अच्छी रचना --

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6 मई 2017
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