ये छोटी सी कहानी मेरी आप लोँगोँ के लिये मेरा बचपन है कहानी छोटी सी मेरी, सुनाता हु आपको को पुरी.
बचपन से ही मुझे शौक कुछ अलग करने की, कुछ भी अलग करने की चाहता हो जाती गलती मुझसे हो जाती शौक अधुरी। शैतान था बचपन से ही पर था सबका लाडला, गलती करता हर बार, पड़ती थी दाँट. माँ की फटकार पापा का प्यार हा हा हँसी आती है अब भी, माँ कहती मत किया कर शैतानी, मारूँगी डँडा टोड़ुगीँ हड्डी.
हा हा पापा तो थे मेरे प्रिय कहते अभी शैतानी नही करेगा तो करेगा कब, डाँटकर भी क्या मिलेगा तुम्हे, जिने दो जिँदगी अभी, कल यही तो दिखायेगा नई जिँदगीँ हमेँ. मैँ छुपकर खुश होता सुनकर बातेँ. शैतानी करता रहता हर पल जीँदगी जीता माँ पापा के संग।
आगे की कहानी जल्दी ले आऊँगा मेरीँ अपनी।।