कवि की कल्पना
सौन्दर्य की प्रतिमान,
वो विश्व कमल की म्रिदुल मधुकरी।
वो अन्नत रह्स्यो की मुर्ति,
वो स्वर्ग लोक की चंचल परी।।
एक रात चुपके से चलकर,
मेरे पास आई थी।
बहुत नजदीक थी मेरे,
मगर एक गहरी खाई थी॥
उस पार पहुचना मेरे,
वश की बात नही थी।
पर कवि की उन्मत भावों के,
रुकने की रात न