॥मोक्षा॥
बस इतनी सी सौगात मुझे मेरे ईलाही दे।
इस जिस्म की कैद से मुझे जल्द रिहाई दे॥
मेरी रूह उनकी रुह की आवाज सुन सके
उसके बाद चाहे मुझे कुछ भी ना सुनाई दे॥
हम बेगुनाह पाक उड़ते फरिश्ते थे बस यूहीं
तू खुद आकर फिर समाज को ये गवाही दे॥
सब समझते हैं कुछ गुनाह कर बैठे थे हम
उस दुनिया में तो कमसकम हमें बेगुनाही दे॥
इन आँखो में थे उनके लिए हसीं सपने कितने
मेरे आँसुओं में उनको वो सब दिखाई दे॥
ये जिंदगी, ये साँसे, ये दर्द तू ही रख, मेरे मौला
मुझे बस उस आजाद चमन की रहनुमाई दे॥
और झेल नहीं सकता इस दुनिया का बोझ मैं
गमुनाम अधेंरों में भरके मुझे अब बस तन्हाई दे॥
बस इतनी सी सौगात मुझे मेरे ईलाही दे।
इस जिस्म की कैद से मुझे जल्द रिहाई दे॥
Written by Vikram_Singh_Rawat - सत्याण्वेशी