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विक्रम सिँह रावत की डायरी

विक्रम सिँह रावत

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vikram sih rawat ki dir

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पुस्तक के भाग

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॥ वियोग॥

13 मई 2016
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॥ वियोग॥कुछ आयतें किसी भी अजान तक पहुँचती नहीं हैदुआएँ आजकल उसके कान तक पहुँचती नहीं है ॥इस दुनिया को जब आँसुओं की कदर ही नहीं है तोसिसकियाँ मेरी भी अब जुबान तक पहुँचती नहीं है ॥कैसे झेलूँ ग़र सालों के सपनें एक पल में टूट जाएँहिम्मत मेरी अभी उस इम्तहान तक पहुँचती नहीं है ॥उन्हें छोड़ना पड़ा तो बहुत

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॥मोक्षा॥

13 मई 2016
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॥मोक्षा॥बस इतनी सी सौगात मुझे मेरे ईलाही दे।इस जिस्म की कैद से मुझे जल्द रिहाई दे॥मेरी रूह उनकी रुह की आवाज सुन सके उसके बाद चाहे मुझे कुछ भी ना सुनाई दे॥हम बेगुनाह पाक उड़ते फरिश्ते थे बस यूहींतू खुद आकर फिर समाज को ये गवाही दे॥सब समझते हैं कुछ गुनाह कर बैठे थे हमउस दुनिया में तो कमसकम हमें बेगुनाह

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॥ ॥हत्या ॥ ॥

13 मई 2016
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॥ ॥हत्या ॥ ॥जिंदगी अब और सही जाती नहीं हैमौत भी पर कम्बख्क्त मुझे आती नहीं है ॥जानता हूँ जान देना बुज़दिली है मगरखुद-ब-खुद जान भी निकल पाती नहीं है ॥कोशिश की हमने उन्हें भूलने की बहुतपर इन साँसों से उनकी खुशबू जाती नहीं है ॥दौलत और हवस ही बस देखते हैं येमोहब्बत ज़लील दुनिया समझ पाती नहीं है ॥वो कहते

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॥ आदत ॥

13 मई 2016
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बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥देख हमें कुछ नहीं हैं फिर भी बेफिक्र खुशहाल हैंक्या है के हमें रिश्ते आहिस्ता पिरोने की आदत है ॥तेरे सारे सोने चाँदी रुपए सिक्के उसे नहीं बहका पाएआखिर दुधमुहे बच्चे को सिर्फ खिलोने की आदत है ॥आदत कब शौक से लत

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॥ आदत ॥

13 मई 2016
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बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥देख हमें कुछ नहीं हैं फिर भी बेफिक्र खुशहाल हैंक्या है के हमें रिश्ते आहिस्ता पिरोने की आदत है ॥तेरे सारे सोने चाँदी रुपए सिक्के उसे नहीं बहका पाएआखिर दुधमुहे बच्चे को सिर्फ खिलोने की आदत है ॥आदत कब शौक से लत

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