बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।
तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥
देख हमें कुछ नहीं हैं फिर भी बेफिक्र खुशहाल हैं
क्या है के हमें रिश्ते आहिस्ता पिरोने की आदत है ॥
तेरे सारे सोने चाँदी रुपए सिक्के उसे नहीं बहका पाए
आखिर दुधमुहे बच्चे को सिर्फ खिलोने की आदत है ॥
आदत कब शौक से लत बन जाए ये कोई नहीं जानता
हमें अपने ज़मीर को आँसुओं से धोने की आदत है ॥
तू लाख दबा जिंदगी पर हम टूटने वालों में से हैं नहीं
इन आँखों को अब तक ख्वाब सँजोने की आदत है ॥
मेरे दोस्त बनाना तो मेरी चिता को थोड़ा बड़ा बनाना
जानता है ना, हमें थोड़ा फैल के सोने की आदत है ॥
तुम्हें बूँद-बूँद, अपने जिम्मेदारियाँ जोड़ने की जरूरत है
हमें कतरा-कतरा अपना सब कुछ खोने की आदत है ॥
मेरे कानों को सिर्फ उस बाँसुरी की धुन की तलब है।
मेरी आँखों को सिर्फ उस साँवरे सलोने की आदत है ॥
बहुत ज्यादा गुस्सा हो तो आँसू डुबोने की आदत है।
तुझे एक अरसे से जिंदगी पर बस रोने की आदत है ॥
विक्रम सिंह रावत द्वारा रचित
Written by VIKRAM singh Rawat