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नरेंद्र केशकर - Narendra Keshkar

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जीवन के सफर में कुछ चंद लम्हें शब्दों में पिरो कर इस पेज में प्रस्तुत कर रहा हूँ . आशा है की आपको पसंद आएगा  

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पुस्तक के भाग

1

वो अाँखों में तूफ़ान रखते हैं

4 अप्रैल 2017
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वो सीने में आग, दिलों में तूफ़ान रखते हैं, अपने बुलंद हौसलों से झुकाकर आसमान रखते हैं नहीं कोई मुश्किल बड़ी उनके आगे वो संकट से लड़ने का हर सामान रखते हैं किसी मोड़ पर जो ठिठक

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लम्बा नाम

15 जुलाई 2017
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ट्रेन में एक आदमी सबके छोटे नाम का मजाक उड़ा रहा था तभी वो मुझसे बोला - “हैलो मेरा नाम चंद्रशेखरन मुत्तुगन रामस्वामी पल्लीराजन भीमाशंकरन अय्यर! ….. और आपका नाम?”“नरेन्द्र” मैंने जवाब दिया तो वो हँसते हुए बोला “हमारे यहाँ इतना छोटा नाम किसी का नहीं होता”! मैंने जवाब दि

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नुक्कड़ वाला मकान

20 अगस्त 2017
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गली के नुक्कड़ पर जो वो मकान है, सारे मोहल्ले के मनोरंजन का सामान है,जो भी वहाँ से निकले वह रह जाए हक्का बक्का, बेलन लग गया तो चौका नहीं तो छक्का!!

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वो आखिरी लोकल ट्रेन

23 अगस्त 2017
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शुक्रवार की वो सुनसान रात जहाँ लोग रात के ९ बजे से ही घर में दुबक जाते हैं, वहाँ रात ९ बजे से ही कब्रिस्तान जैसा सन्नाटा छा जाता है। कड़ाके की इस ठंड में हड्डियाँ तक काँपने लगती हैं, बाहर इंसान तो क्या कुत्ते का बच्चा भी नजर नहीं आता फिर भी कुत्तों के रोने की आवाज़ क

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वो आखिरी लोकल ट्रैन - भाग 2

24 अगस्त 2017
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पिछले भाग में एक साधारण सा व्यक्ति नरेंद्र अपने घर जाने के लिए ट्रैन पकड़ता है लेकिन जब वो उठता है तब वह अतीत के नरसंहार को सामने पाता है जो अंग्रेज कर रहे थे| वो चार अंग्रेजों को मार कर नरसंहार को रोक देता है लेकिन बेहोश होते-होते बागियों के हाथ लग ज

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