नजरें वह हमसे चुराने लगे हैं।
महफ़िल किसी और के सजाने लगे हैं।।
बात करने के बहाने जो कभी ढूंढा करते थे ।
आज बात न करने के बहाने बनाने लगे हैं।।
छोटी-छोटी गलतियों पर रूठ जाने लगे हैं ।
लगता है दिल में किसी और को बसाने लगे हैं।।
जिन गलियों से हर रोज गुजरा करते थे कभी ।
उन्हीं गलियों का रास्ता भूल जाने लगे हैं ।।
नजरे वह हमसे चुराने लगे हैं।
लगता है कहीं और आशियाना बनाने लगे हैं।।
गौरी तिवारी
भागलपुर बिहार