shabd-logo

नजरें वह हमसे चुराने लगे हैं

26 अक्टूबर 2022

10 बार देखा गया 10
नजरें वह हमसे चुराने लगे हैं।
महफ़िल किसी और के सजाने लगे हैं।।

बात करने के बहाने जो कभी ढूंढा करते थे ।
आज बात न करने के बहाने बनाने लगे हैं।।

छोटी-छोटी गलतियों पर रूठ जाने लगे हैं ।
लगता है दिल में किसी और को बसाने लगे हैं।।

जिन गलियों से हर रोज गुजरा करते थे कभी ।
उन्हीं गलियों का रास्ता भूल जाने लगे हैं ।।

नजरे वह हमसे चुराने लगे हैं।
लगता है कहीं और आशियाना बनाने लगे हैं।।

गौरी तिवारी
भागलपुर बिहारarticle-image

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए