देवांशी
पार्ट 1
स्वरिया कबिले में आज जश्न का माहौल था। करीब पांच सौ लोगों की आबादी का कबीला खुशी से झूम रहा था। सदियों से चली आ रही परम्पराओं को अपने तरीके से निभाते आ रहे थे। उसी के अंतर्गत एक प्रथा सिल्वटी थी जो बहुत की निचले स्तर की थी। स्वरिया कबीले में आज सिल्वटी मनाई जा रही थी।
कबीले का मुखिया दीपांग अपनी शान के अनुरूप उस घर मे तैयार बैठा था और उसके आसपास कबीले के कुछ बुजुर्ग लोग थे और कुछ दीपांग के चापलूस भी।
शारन्द नाम के उस लड़के का आज विवाह नदी पार के दूसरे गांव मेडा में हुआ था। नईं बहु को लेकर झूमते हुए कबीले के लोग वापिस आ गए थे।
इस वक्त शाम का समय था और ढोल बज रहे थे। ढोल की थाप पर नशे में मदमस्त लोग झूम रहे थे। दूसरी तरफ मांस पकाया जा रहा था। यहां लोग ज्यादातर कच्चे मांस को खाते थे, लेकिन सिल्वटी के दौरान मांस को पकाकर खाया जाता था। और उस मांस के साथ सारंगी नाम की देसी शराब का सेवन किया जाता था। सारंगी को भी वो लोग खुद ही तैयार करते थे। मिट्टी के घड़े में लगभग एक सप्ताह तक जमीन में गाड़कर दो तीन तरह के पेड़ों की जड़ और छाल का रस निकाला जाता था और कुछ फूलों को भी उसमें डाला जाता था। खुश्बू तो इत्र की सी आती थी, लेकिन नशा अंग्रेजी शराब से भी ज्यादा होता था। अभी तक इस क्षेत्र में शिक्षा का प्रचार प्रसार नही हुआ था और आज भी यहां के लोगों के खुद के नियम थे।
खैर रहन सहन और खान पान हर क्षेत्र के अलग अलग और विचित्र होते हैं, उसी के अनुसार यहां भी कुछ अलग ही था। लेकिन सबसे अलग जो था वो सिल्वटी। शारन्द का विवाह हुआ, और उसके घर को सजाया हुआ था। नई दुल्हन अपने कमरे में थी। चारों तरफ पत्थर की दीवारें और ऊपर लकड़ी और घासफूस की छत, यही उनका घर होता था। मुखिया दीपांग शराब के घूंट मारते हुए हाथ मे किसी जंगली जानवर की अधपक्की टांग पकड़ कर उसे खा रहा था। कबीले की महिलाएं भी शामिल थी। शराब और मांस को परोस रही थी और बीच बीच मे ढोल की थाप पर ठुमके भी लगा रही थी।
कुछ महिलाएं अंदर दुल्हन के पास थी। उसे सिल्वटी योय लिए तैयार कर रही थी। दुल्हन के लिबास में बैठी लड़की को कुछ पता नही था। हर क्षेत्र में अपनी खुशियां मनाने का अलग ढंग होता है और उन तरीके को नई दुल्हन भी स्वीकार करती है। करीब दो घण्टे तक यही जश्न चलता रहा। शराब के साथ मांस परोसा जाता रहा और ढोल की थाप पर ठुमके लगते रहे। रात के लगभग दस बज गए और अब मुखिया उठा। उसके खड़े होते ही ढोल बन्द हो गया और सब लोग शांत। मुखिया ने कहा,,
दीपांग-- स्वरिया के निवासियों आज हम अपनी सौवीं सिल्वटी मनाने जा रहे हैं। हमारे पिताजी बताते थे कि उन्हें सो सिल्वटी मनाने का मौका नही मिला था। जोश तो उनके बदन में काफी था। लेकिन मुखिया के तख्त पर ज्यादा दिन नही बैठ पाए थे। इसलिए वो इस पड़ाव तक नही पहुंच पाए। हमे यह मौका मिला है तो हम आज यह खुशियां दुगुनी कर रहे हैं। हर सिल्वटी का खर्च वही घर उठाता है जिसके पुत्र का विवाह होता है। लेकिन आज सौवीं सिल्वटी की खुशी में हम पूरे कबीले के इस भोज का खर्च खुद उठाएंगे। और सभी लोगों को कल भेंट भी दी जाएगी।
मुखिया की यह बात सुनकर सभी लोगों में खुशी की लहर दौड़ गई और सब लोग मुखिया के नाम का जयघोष करने लगे। जयकारे लगाते हुए सब फिर से शराब के घूंट गले से उतारने लगे। मुखिया ने अपने कदम अंदर की तरफ बढ़ाए और दुल्हन के उस कमरे से बाकी की महिलाएं बाहर निकल गई।
मुखिया ने कमरे में प्रवेश किया। जमीन पर लगे बिस्तर पर फूल बिखरे हुए थे और इत्र की खुश्बू आ रही थी। दूसरी तरफ मुंह किए हुए दुल्हन बैठी थी। मुखिया ने अपने हाथ का भाला दीवार के सहारे रखा और अपने कपड़े उतारे। दुल्हन की पीठ की तरफ जाकर घुटनो के बल बैठ गया। यह भी सिल्वटी के एक हिस्सा था कि दुल्हन और मुखिया आमने सामने नही बैठते थे। मुखिया को पीठ की तरफ से जाना पड़ता था।
दीपांग उस नईं दुल्हन की पीठ पर हाथ घुमाने लगा। कंधे पर हाथ रखकर उसके सिर का वस्त्र नीचे खिसकाया। गर्दन पर हाथ घुमाते हुए सीने पर हाथ ले गया और चोली की डोरी खोलने लगा। दुल्हन अंदर ही अंदर सिमट रही थी। कमर से ऊपर के बदन को नंगा करके मुखिया अपने सख्त हाथ उस कोमल बदन पर फेरने लगा। सीने के नाजुक उभारों को मसलते हुए वो दुल्हन की गर्दन को चूमने लगा। शरमाती हुई दुल्हन अपने बदन को समेटने की कोशिश कर रही थी। लेकिन मुखिया के हाथ उसके बदन को मसलते हुए आगे बढ़ रहे थे। और होंठ उसके कोमल बदन को चूमते हुए उसकी उतेजना को बढ़ाने में लगे थे। उस दुल्हन के नाजुक अंगों के साथ खेलते हुए मुखिया अब उतेजित हो चुका था और अपनी पत्नी के अलावा कबीले की सो दुल्हनों के साथ सो चुका मुखिया नईं दुल्हन को खुश करने में माहिर था।
आज यह सौवीं दुल्हन थी जिसके साथ मुखिया सुहागरात मना रहा था। मुखिया ने कमर के ऊपर के बदन का रसपान किया और उसके बाद वो नीचे के बदन पर हाथ घुमाने लगा। तभी दुल्हन ने मुखिया का हाथ पकड़ लिया!
मुखिया ने पहले तो सोचा कि शायद यह दुल्हन भी बाकियों की तरह उसका साथ दे रही है, लेकिन जब दुल्हन के हाथ का दबाव बढ़ने लगा तो मुखिया हैरान हुआ! सोलह सत्रह साल की नाजुक लड़की ने एक प्रौढ़ ताकतवर मुखिया का हाथ इस तरह से दबाया की मुखिया के मुंह से आह निकल गई। अब मुखिया को थोड़ा गुस्सा आया कि आज तक इस कबीले में किसी ने ऐसा नही किया तो इस नई दुल्हन ने उसका हाथ क्यों मरोड़ा! मुखिया न एक झटका दिया और अपना हाथ छुड़ा लिया। अब वो खड़ा हो गया और गुस्से में कुछ बोलने ही वाला था। लेकिन अगले ही पल वो दुल्हन अधूरे कपड़ों में मुखिया के सामने खड़ी थी!
मुखिया हैरान था! उसने गुस्से में दुल्हन का हाथ पकड़ा तो दुल्हन ने पलक झपकते ही सामने से उसका हाथ पकड़ लिया और फिर मुखिया के पेट पर जोरदार लात मारी! मुखिया पीछे दीवार से जाकर टकराया और उसकी चीख निकल गई। वो खड़ा होने ही वाला था कि दुल्हन उसकी छाती और पैर रखकर खड़ी हो गई!
बाहर ढोल बज रहे थे और लोग नाच रहे थे। सबको पता था कि अंदर क्या हो सकता था। लेकिन पूरे कबीले की सोच के विपरीत आज अंदर कुछ और ही हो रहा था। दीपांग समझ नही पाया कि आज इस दुल्हन ने ऐसा विरोध क्यों किया! और विरोध किया तो किया, लेकिन वो मुखिया को बोलने का मौका ही नही दे रही थी। साथ ही उसके बदन में मुखिया से ज्यादा ताकत थी! यह कैसे हो सकता है! एक नाजुक लड़की किसी यौद्धा जैसे मुखिया को यूं जमीन पर चित कैसे कर सकती है!
मुखिया बोलना चाह रहा था कि दुल्हन बोल पड़ी,,
-- क्यों मुखिया जी, आज सोंवी सिल्वटी मनाओगे! पूरे जश्न का खर्चा भी तुम्ही वहन करोगे। लेकिन सोंवी सिल्वटी है तो कुछ अलग तरीके से मनाई जाए। क्या कहते हो? इतनी दुल्हनों को नोच चुका है, कभी किसी ने सामने से कुछ नही किया होगा, है ना? लेकिन आज तुम लेटे रहो और मैं करती हूँ। देखो फिर दुगुना मजा आएगा।
कहती हुई दुल्हन ने गिरे हुए मुखिया की छाती पर फिर से लात मारी और मुखिया के मुंह से खून निकलने लगा। उसके साथ ही शराब और मांस भी बाहर निकल गया। मुखिया ने बाहर जाने की कोशिश की, घुटनो के बल वो बाहर निकल रहा था कि दुल्हन ने उसके बाल पकड़े और कागज की तरह उठाकर दूसरी दीवार पर फेंक दिया। बदन को चोट लगी तो मुखिया की फिर से चीख निकल गई। लेकिन बाहर कोई भी उसकी आवाज सुनने वाला नही था। सब लोग मस्ती में झूम रहे थे। अंदर की आवाजें उन लोगों के कान में नही पहुंच रही थी। अब मुखिया हैरान था और वो समझ गया कि आज यह कोई दुल्हन नही है बल्कि कोई और ही है। इतनी ताकत किसी महिला में नही हो सकती है। लेकिन यह है क्या! यह समझ से बाहर था।
ताकतवर मुखिया चींटी की भांति जमीन और था और दुल्हन खड़ी हुई मुस्कुरा रही थी।
-- लो मुखिया जी, यह मेरा नंगा बदन है, आओ इसको नोच लो। ले लो अपनी मर्दानगी से इस जिस्म का मजा। आज तेरी सौवीं सिल्वटी पर जितना मजा आएगा , उतना आज से पहले कभी नही आया होगा। आओ, अब क्या हुआ? कहाँ गई वो मर्दानगी! कहाँ गई तुम्हारी वो ताकत! आओ ना,,,
कहती हुई दुल्हन गुस्से में हांफने लगी और उसकी आंखें लाल होने लगी। अचानक मुखिया ने देखा कि उस दुल्हन का चेहरा बदलने लगा था। कुछ ही पलों में वो दूसरा चेहरा बन गया और अब मुखिया ने पहचान लिया।
अटकते हुए वो बोलने लगा,,,, देवांशी,,,, देवांशी,,, नही, यह नही हो सकता है। तू,,,म,, देवा ,,, देवांशी,,, नही नही,,,यह कोई बुरा सपना है। यह हकीकत नही हो सकता है!!
क्रमशः