वो अम्मा है ना,
अरे वही जो गली में एक घर छोड़ कर अगले ही घर में रहती हैं। हां दीदी, वही अम्मा जिनकी पलकें उनके बालों का साथ निभाते हुए सफेद हो गयी हैं। अच्छा.. वो अम्मा , जिनका मुंह पान की पींग से भरा और होंठ लाल रहते हैं। हां जीजी वहीं लम्बी सी गोरी अम्मा। उनको देख कभी कभी सोचती हूं कि ये अम्मा अभी इतने शौक से जीती हैं। अपनी जवानी में तो कहर ढाती होगी। हाथों में अभी भी दो दर्जन से कम चूड़ी नहीं पहनती हैं। हम तो दो दर्जन तो दूर दो चूड़ी भी मुश्किल से पहनते हैं। एक एक कड़ा डाला और चल दिए। हां मीनू ! हम से तो नहीं पहनी जाती ये चूड़ी, कड़े ही ठीक लगता है। अम्मा का क्या है? पुराने जमाने की बुढ़िया है। आदत हो गई है। हमें तो उलझन होती है। हां दीदी! रात करवटों में पलक के पापा कहते हैं, यार क्या तुम सब सूना सूना रखती हों? माथे पर सिन्दूर के नाम पर छींट सी टिकी, वो भी बालों में खो देती हों। पांव में पायल के नाम पर, पतली सी चेन, बिन आवाज के घुंघरू। गले में मंगलसूत्र के नाम पर एक सवा तोले की चेन में ये सोने के दो मोती वाली जंजीर , ना चूड़ियां,कलाई सूनी । क्या बात है क्यों गरीबी के आलम को बढ़ाती हों? मीनू इन बातों पर मुझे तो गुस्सा आता है, प्यार हमसे करते हैं या सिंदूर, बिंदिया, पायल, चूड़ी से। आदमी की सोच का भी ठिकाना नहीं। पता नहीं दीदी कहां दिमाग घूमता रहता है। साड़ी में लिपटी सिमटी रहों तो बीबी लगती है। दुनिया बदल गई पर आदमी की सोच ना बदली। कमरे में कुछ, बाहर कुछ, कुछ कहो तो कहेंगे यार मैं किससे कहूं, किससे मांगू? तुम्हारे सिवा कौन है मेरा? तुम नहीं समझोगी तो कौन समझेगा,कहां जाऊं? बस ! दीदी तरस आ जाता है। पता ही नहीं चलता कि वो कुछ .. मैं नहीं कह पायी या वो नहीं समझ पाती।
अम्मा की मिसाल देकर कहेंगे तुमसे अच्छी तो अम्मा है। अभी भी रंगीली। काम में चटक, सजने संवरने में चटक। उनके सामने तुम फीकी लगती हों। अम्मा भी कम नहीं है। भूल से पांव छू लो तो बच्चों की लाइन लगाने वाला आशिर्वाद दे देती है। पलक के पापा को बहुत मजा आता है। जब देखो अम्मा अम्मा करके आज कल की बहुओं की बातें करते रहते हैं। ये बातें ही तो है जो मन में खीझ बढ़ाती है। जीने नहीं देती।