चाहतों की हरियाली है। घड़ी भर ठहर जाएं, इस पल में यहीं खुशहाली हों। कल कौन मिलता है किसी से? मिलता है वहीं जिसकी चाहत में, अपनेपन की खुशहाली हों। रैन और नैन कालें, दोनों ही कुदरत की खूबसूरत नेमतें, खूबसूरत हो जाता है, वो अहसास.. जब, इस अंधेरे में चांद और अपने की सूरत मतवाली हों। थकी शाम से उजली भोर, सब बदल जाता है, ढलते शाम से उगते सूरज की जब लाली हों। फूलों की खुशबू, पंछियों की टोली गुनगुनाती हों। मन और मौसम पल पल बदलें, पर बदलने के लिए भी बात निराली हों। दर्द और चैन सिर्फ हालात नहीं, बढ़ जाते हैं जब अपने की मेहरबानी हों। फर्क टूटी नाव से उतना नहीं पड़ता, जितना मांझी के टूटते विश्वास से पड़ता है। जीवन में कुछ भी स्थायी नहीं, कुदरत का नियम ही परिवर्तन है, तो फिर बदलते लोगों से क्यों परेशानी हों? फिर क्यों आंखों में नमी और पानी हों। जिसे मिल जाए मन चाहा, उस पर ऊपर वाले की मेहरबानी हों।