कितनी विचित्र बात है न जिस इंसान ने मेरी आँखों से बिखरते मोतियों को अपने प्रेमपूर्ण हाथों से समेटते हुए कहा था, "मेरी गुड़िया! तुम्हारे इन शोभित आँखों नेत्रों में ये पवित्र मोती अच्छे नहीं लगते। ये मोती अनमोल हैं, इनका मोल ये जग कभी नहीं समझेगा। इन पवित्र मोतियों को इस पल-पल रंग बदलते जग की वजह से लूटाना व्यर्थ है। ये मोती ज़मीं पर गिरेंगे तो जग की मैली धूल में लिपटकर मैले हो जायेंगे। इनकी जगह ज़मीं पर नहीं मेरे हृदय में है। ये ज़रूरी तो नहीं है कि तुम्हारे इन पवित्र मोतियों को रोकने के लिए मैं हमेशा तुम्हारे साथ रहूँ। तुम्हें खुद संभलना सीखना होगा।" आज उसी एक इंसान की याद में मैं इन पवित्र मोतियों से अपने गुलिस्तां को विराने का रूप देकर सजा रही हूँ। वो इंसान तो चला गया मेरे जीवन से दूर बहुत दूर। मगर! मैं खूद को संभालना आज भी नहीं सीख पायी। इन पवित्र मोतियों को ज़मीं को स्पर्शित करने से रोकना मुझे आज भी नहीं आया...