मंच को नमन
विषय पिता
विधा कविता
पिता प्रेम भरा सागर पीपल की ठंडी छांव है
बहती बयार सुहानी जैसे खुशियों भरा गांव है
आशाओं का जलता दीप खिलता फूल गुलाब सा
औलाद की हर फरमाइश पूरी करे बन नवाब सा
जिम्मेदारियों का नाम अनुभवों का खजाना भी
सफर की दुर्गम राहों में वो राहत का ठिकाना भी
त्याग की ऐसी मूर्त है सारे गम दिल में छुपा लेता
रखकर खयाल वो सबका केवल खुशियां ही देता
सिंधु में मिल जाती नदिया बस मोतियों की आशा है
पिता भी अथाह सिंधु सी संघर्ष की परिभाषा है
हिमालय सा रहे अटल मुश्किलों से भीड़ जाता
पिता का साया सिर पर हो घर में हर सुख आता
संस्कारों के बोता बीज राह का ज्ञान सदा देता
झरना प्रेम का बनकर हर दुखों को सह लेता
पिता त्यागी तपस्वी सा सुखधाम पावन तीर्थ होता
जुटाता सुख सुविधाओं को मन का राजा होता
रमाकांत सोनी नवलगढ़ जिला झुंझुनू राजस्थान