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i am a poet i like nature i believe a good poetry like meditation

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एक मुलाक़ात बरसों के बाद

1 मार्च 2022
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आज बहुत  बरसो के  बाद  देखा  तुमको उम्र बढ़ गई है फिर भी पहले सी लगती हो कंही कंही से सफ़ेद हो गए है बाल तुम्हारे बाकी जूडा अब भी पहले सा ही करती  हो देखा तुम्हे तो सोचा आवाज़ दें कर पुकारूँ या बस यूँ

जब से घर से दूर रहने लगें है

25 जून 2021
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जब से घर से दूर अकेले रहने लगें है मुश्किलों को भी हँसकर सहने लगें हैखुद से ही ढूंढ़ लेते अब तो जवाब हम सवाल भी कुछ अहमियत खोने लगें है कोई मनाता ही नहीं अब हमें खाने को न ही आवाज़ लगाता सुबह जगाने को खुद से ही खुद को सुला देते है रात में खुद से ही खुद को सुबह जगाने लगें है एक मज़बूत सा ताला इंतज़ार में

उठो नारी प्रहार करो

2 अक्टूबर 2020
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है कँहा लिखा काजल भर नेत्रों में श्रृंगार करो फूलो से महकते गजरे में लिपटी कोई नार बनो भुजा में जोर तुम्हारे भी कभी तो स्वीकार करो नरभक्षी पिशाचों की गर्दन पर तुम तलवार धरो है कँहा लिखा काजल भर नेत्रों में श्रृंगार करो फूलो से महकते गजरे में लिपटी कोई नार बनो गुड़ियों के ब्याह में यूँ

लॉकडाउन में ब्याह

25 जुलाई 2020
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चंदू चच्चा निकले बड़े श्याणे लॉक डाउन में चले चाची लाने कम खर्चे में ब्याह करवाऊंगा न बाराती न तो बैंड बजवाऊंगा अब न घोड़ी पर ही खर्चा होगा न डीजे पर कोई झगड़ा होगा न्यौते भी कुछ ही ख़ास रहेंगे बस परिवार के लोग साथ होंगे न पटाखों पर ही पैसे उड़ाऊंगा न महँगे शामियाने ही लगवाउँगा एक साधारण विवा

हीरो

25 जुलाई 2020
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हर व्यक्ति अपनी जीवन का हीरो स्वयं होता है जीवन में कठिनाइयां न हो तो इंसान कि परख नहीं हो सकती अगर हम मुश्किलों से डर जाए और घबरा कर भाग्य को दोष देने लगें तो इससे उत्थान कैसे संभव है रावण के बिना राम राम न होते बिना कंस के आतंक के कृष्ण कृष्ण न होते

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