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हीरो

25 जुलाई 2020

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हर व्यक्ति अपनी जीवन का हीरो स्वयं होता है

जीवन में कठिनाइयां न हो तो इंसान कि परख नहीं हो सकती अगर हम मुश्किलों से डर जाए और घबरा कर भाग्य को दोष देने लगें तो इससे उत्थान कैसे संभव है रावण के बिना राम राम न होते बिना कंस के आतंक के कृष्ण कृष्ण न होते अगर राम बनना है तो बुराई रूपी रावण से लड़ना होगा मनुष्य धर्म है नैतिकता कि रहा पर चल कर बुराई पर जीत प्राप्त करना जीवन कि बाधा को पार करके ही कोई महान बनता है हर व्यक्ति अपने जीवन कर हीरो स्वयं है कोई दूसरा कोई हमारे लिये मुश्किलों को आसान नहीं करने वाला हमें खुद अपने मार्ग के पत्थर उठाने होने खुद से नव मार्ग बनाने होंगे

हर कोई जाग रहा आँखों सपने लीये हर कोई भाग रहा मंज़िल कि ओर अपने मन कई तरह के सवालों को लिये उन सवालों के उत्तर कि खोज में हर इंसान हाँफ रहा यूँ तो जिंदगी खुद में ही एक अनसुलझा सा सवाल है बस जवाब खोजने में तमाम उम्र निकल जाती है

हम न जाने कियों बाहर के दिखावे से इतने प्रभावित हो जाते है कि किसी के मन कि खूबसूरती कि तरफ ध्यान नहीं जाता हर इंसान में एक हीरो छुपा हर इंसान अपनी जीवन कहानी का हीरो खुद है जिस तरह सिनेमा में हीरो खलनायक से लड़ता कभी अच्छाई के लिये कभी सच्चाई के उसी तरह हर इंसान अपनी लाइफ कि परेशानियों से लड़ता कभी मार खाता है अपनी मुसीबतों से कभी घायल होता है अनगिनत प्रहारों से कभी रोता है कभी हँसता है कभी जश्न मनाता है कभी मातम मनाता है कभी आनंदित होता है नवजीवन के उत्सव में कभी सोग से बिध जाता है मृत्यु के अंत तक जीत कि आस में जीता है कभी कहानी का दुखांत होता है तो कभी सुखांत फिर भी

एक आशा विश्वास के सहारे व्यक्ति निरंतर चलता है उस भोर कि आशा में जो सारे दुख पीड़ा हर लेगी और नव जीवन कर शुप्रभात करेंगी हर कहानी का एक अंत होता है हर इंसान अपनी कहानी का हीरो होता है

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लॉकडाउन में ब्याह

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चंदू चच्चा निकले बड़े श्याणे लॉक डाउन में चले चाची लाने कम खर्चे में ब्याह करवाऊंगा न बाराती न तो बैंड बजवाऊंगा अब न घोड़ी पर ही खर्चा होगा न डीजे पर कोई झगड़ा होगा न्यौते भी कुछ ही ख़ास रहेंगे बस परिवार के लोग साथ होंगे न पटाखों पर ही पैसे उड़ाऊंगा न महँगे शामियाने ही लगवाउँगा एक साधारण विवा

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उठो नारी प्रहार करो

2 अक्टूबर 2020
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है कँहा लिखा काजल भर नेत्रों में श्रृंगार करो फूलो से महकते गजरे में लिपटी कोई नार बनो भुजा में जोर तुम्हारे भी कभी तो स्वीकार करो नरभक्षी पिशाचों की गर्दन पर तुम तलवार धरो है कँहा लिखा काजल भर नेत्रों में श्रृंगार करो फूलो से महकते गजरे में लिपटी कोई नार बनो गुड़ियों के ब्याह में यूँ

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जब से घर से दूर रहने लगें है

25 जून 2021
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जब से घर से दूर अकेले रहने लगें है मुश्किलों को भी हँसकर सहने लगें हैखुद से ही ढूंढ़ लेते अब तो जवाब हम सवाल भी कुछ अहमियत खोने लगें है कोई मनाता ही नहीं अब हमें खाने को न ही आवाज़ लगाता सुबह जगाने को खुद से ही खुद को सुला देते है रात में खुद से ही खुद को सुबह जगाने लगें है एक मज़बूत सा ताला इंतज़ार में

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एक मुलाक़ात बरसों के बाद

1 मार्च 2022
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आज बहुत  बरसो के  बाद  देखा  तुमको उम्र बढ़ गई है फिर भी पहले सी लगती हो कंही कंही से सफ़ेद हो गए है बाल तुम्हारे बाकी जूडा अब भी पहले सा ही करती  हो देखा तुम्हे तो सोचा आवाज़ दें कर पुकारूँ या बस यूँ

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