जब से घर से दूर अकेले रहने लगें है
मुश्किलों को भी हँसकर सहने लगें है
खुद से ही ढूंढ़ लेते अब तो जवाब हम
सवाल भी कुछ अहमियत खोने लगें है
कोई मनाता ही नहीं अब हमें खाने को
न ही आवाज़ लगाता सुबह जगाने को
खुद से ही खुद को सुला देते है रात में
खुद से ही खुद को सुबह जगाने लगें है
एक मज़बूत सा ताला इंतज़ार में बैठा है
टकटकी लगाए राह पर खामोश रहता है
दरवाज़े ताले की चुगलियॉं करने लगें है
जब से घर से दूर अकेले रहने लगें है