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लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं ,लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं

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कविता : देखो ,नया वर्ष आया है

30 दिसम्बर 2021
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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d448d42f7ed561c8

दीपों का त्यौहार

13 नवम्बर 2020
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दीपों की जगमग है दिवाली दीपों का श्रृंगार दिवाली है माटी के दीप दिवाली मन में खुशियाँ लाती दिवाली || रंगोली के रंग दिवाली लक्ष्मी संग गणपति का आगमन दिवाली स्नेह समर्पण प्यार भरी मिठास का विस्तार दिवाली अपनों के संग अपनों के रंग में घुल जाने की प्रीति दिवाली हाथी घोड़े मिट्टी के बर्तन फुलझड़ियों का

देश में कुछ ऐसा बदलाव होना चाहिए

8 नवम्बर 2020
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जीवन में बुलन्दियों को छूना है अगर कुछ कर दिखाने का दिल में,जुनून होना चाहिए दामन को रखिए दूर ,दलदलों से पाप की शालीनता और स्वच्छता को ,जीवन में होना चाहिए || अधिकार गर समान सभी के लिये नहीं अब ऐसी व्यवस्था में,बदलाव होना चाहिए पीढ़ी है दिग्भ्रमित ,यहाँ निर्णय हैं खोखले अब शिक्षा व्यवस्था में बदलाव ह

कविता : ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना

3 नवम्बर 2020
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आज ,अखण्ड सौभाग्यवती कामाँ उमा से है वर पाना ऐ चाँद, तुम जल्दी आ जाना || आज पिया के लिये है सजना संवरना अमर रहे सदा मेरा सजना ऐसा वर तुम देते जाना ऐ चाँद ,तुम जल्दी आ जाना || अहसानों के बोझ तले मुझे मत दबाना आज आरजू है यही इबादत में मोहब्बत का विस्तार कराना रहे सदा साथ सजना का ऐसा वर तुम देते जाना

कविता : पतित पावनी गंगा मैया

27 अक्टूबर 2020
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देवी देवता करते हैं गंगा का गुणगानइसके घाटों पर बसे हैं ,सारे पावन धामगंगा गरिमा देश की ,शिव जी का वरदानगोमुख से रत्नाकर तक ,है गंगा का विस्तारभागीरथी भी इन्हे ,कहता है संसारसदियों से करती आई लोगों का उद्धारशस्य श्यामल गंगा के जल से ,हुआ है ये संसारजन्म से लेकर मृत्यु तक ,करती है सब पर उपकारलेकिन बद

वो एकतरफा प्यार

8 अक्टूबर 2020
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वो एकतरफा प्यार ,जिसके लिये हुआ दिल बेक़रार मैं ढूंढता रहा उसे ,होकर बेक़रार उसका मुस्कुराना देखकर आँखों का झुकना देखकर उसके आगे लगने लगे महखाने सारे बेअसर वो जाते जिधर जिधर मैं पहुंचता उधर उधर जैसे मृग कस्तूरी के लिए ,भटके इधर उधर अब तो दिन कटता था ,रस्ता उनका देखकर उनसे मिलने का मौका ढूंढता था ,दिल

कविता :मोहनदास करमचन्द गांधी

2 अक्टूबर 2020
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दुनियां में हैं शख्स लाख ,पर दिल के पास हैं गाँधी अहिंसा ,सत्य ,समता शांति की तलवार हैं गाँधी अटल ,अविजेय ,अविचल ,वज्र की दीवार हैं गाँधी अडिग विश्वास ,जीवन का उमड़ता ज्वार हैं गाँधी उमड़ता कोटि प्राणों का ,पुलकमय प्यार हैं गाँधी मनुजता के अमर आदर्श की झंकार हैं गाँधी सूर्य सम कांतिमयी दीप्तिमान हैं

आईपीएल २०२०

29 सितम्बर 2020
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लो आ गया चौके छक्कों का सफर ये सुहाना आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना गूंजा रण ताली से सारा जमाना आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना बुमराह की यार्कर ,रसेल का सिक्सर आर्चर की बाउन्सर ,डी विलियर्स का स्कूपर संजू सैमसन का गेंदबाजों को डराना आईपीएल का हुआ हर कोई दीवाना चहल की गुगली ,है अबूझ पहेली रबाडा का बाउन्

बेरोजगारी

18 सितम्बर 2020
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सरकारें बदलती हैं यहाँ पर नवयुवकों को आश्वासन देती हैं झूठे भाषण देती हैं पर नौकरियां नहीं देती हैं हर जगह लम्बी हैं कतारें व्यवस्था में हैं खामियां बड़बड़ाते हुये घिसट जाती हैं ,देखो कितनी जिन्दगानियाँ आत्मनिर्भरता का स्वप्न दिखाती झूठी दिलासाएँ देती है सब कुछ है कागजों पर पर नौकरियां नहीं देती हैं

कैसा ये सभ्य समाज

6 सितम्बर 2020
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इन्सानियत को हमने रुलाया है आज डर ने मुकाम दिल में बनाया है मंदिर से अधिक मधुशालाएं हैं ऐसा बदलाव अपने देश में आया है ये वस्त्रहीन सभ्यता अपने देश की नहीं पर्दा ही आज ,लाज पर से उठाया है बेकारी ,भूंख प्यास ने सबको रुलाया है भारत में यह कैसा अच्छा दिन आया है साहित्य से क्यों दूर हैं आज की पीढ़ियां इस

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