दीपों की जगमग है दिवाली
दीपों का श्रृंगार दिवाली
है माटी के दीप दिवाली
मन में खुशियाँ लाती दिवाली ||
रंगोली के रंग दिवाली
लक्ष्मी संग गणपति का आगमन दिवाली
स्नेह समर्पण प्यार भरी
मिठास का विस्तार दिवाली
अपनों के संग अपनों के रंग में
घुल जाने की प्रीति दिवाली
हाथी घोड़े मिट्टी के बर्तन
फुलझड़ियों का खेल दिवाली ||
जब कृष्ण ने बजाई थी बांसुरी
होली के रंग छलके थे
राम राज्य के आगमन से
झिलमिल तारे चमके थे
ईश्वर प्रदत्त वरदान है ये
मिलकर पर्व मनाते हैं
तन में तिमिर न आए फिर से
ज्योतिर्गमय मन को बनाते हैं
तम को दूर भगाकर
प्यार का रास रचती दिवाली
फूलों की खुशबू में ,चंदन सी खुशबू दिवाली ||
'प्रभात' जग में कैसी रीति है आई
लोगों ने जाति धर्म से है प्रीति लगाई
मन्दिर मस्जिद हों भले अनेक
ईश्वर तो सिर्फ एक है भाई
जाति धर्म की रीत पाटकर ,बनो सभी भाई भाई
आओ ,मन मुटाव से दूर निकलकर
आशा के दीप जलाते हैं
जिसमें सभी संग दिखें
कुछ ऐसी तस्वीर बनाते हैं
जो जीवन के पथ में हैं भटके
उनको नई राह दिखलाते हैं
आओ मिल जुल कर
दीपावली मनाते हैं ||
प्रभात पांडेय की अन्य किताबें
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं और देश के प्रतिष्ठित पत्रिकाओं व समाचार - पत्रों में समसामयिक मुद्दों पर इनके लेख प्रकाशित होते रहते हैं
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