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कविता : पतित पावनी गंगा मैया

27 अक्टूबर 2020

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देवी देवता करते हैं गंगा का गुणगान

इसके घाटों पर बसे हैं ,सारे पावन धाम

गंगा गरिमा देश की ,शिव जी का वरदान

गोमुख से रत्नाकर तक ,है गंगा का विस्तार

भागीरथी भी इन्हे ,कहता है संसार

सदियों से करती आई लोगों का उद्धार

शस्य श्यामल गंगा के जल से ,हुआ है ये संसार

जन्म से लेकर मृत्यु तक ,करती है सब पर उपकार

लेकिन बदले में मानव ने ,कैसा किया व्यवहार ||

आज देवी का प्रतीक

प्लास्टिक प्रदूषण के जाल में फंस गई

बड़े बड़े मैदानों में दौड़ने वाली

न जाने क्यों सिकुड़ गई

दूसरों की प्यास बुझाने वाली

आज खुद ही प्यासी हो गई

अन्धे विकाश की दौड़ में

आज गंगा, खूँटे से बंधी गाय हो गई

ज्यों ज्यों शहर अमीर हुए

गंगा गरीब हो गई

बेटों की आघातों से

गंगा मैया रूठ गईं ||

‘प्रभात ‘ क्यों लोग ना समझ हो जाते हैं

गंगा मैली कर जाते हैं

सुजला -सुफला वसुधा ऊपर

जन जीवन इससे सुख पाते हैं

आओ सब मिल प्रण करें

गंगा मैया को बचाना है

पावन निर्मल शीतल जल में

कूड़ा करकट नहीं बहाना है

कल कल छल छल करती निनाद

फिर से मिल ,अमृत कलश बहाना है ||

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<p><br></p> <figure><img src="https://shabd.s3.us-east-2.amazonaws.com/articles/611d448d42f7ed561c8

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