प्रकृति एक भविष्य
आशमाँ की छोर में, फैले जैसे आंधी,
तूफान मचती जाये, जैसे दीप को बुझाती,
पल दो पल में हो रही है ,काफी बर्बादी ,
चारो ओर अँधेरा घोर ,फैला ये आबादी,
ये मानवो की देन है ,और मानवो का अंत ,
भविष्य की तू चिंता कर, क्या लेगा कोई जनम?
बाते करते कितने सारे बाते वो तू छोड़ ,
आँखों से तू देख ज़िंदगी के कई मोड़,
ये अपनी धरती ,अपनी माता, अपनी ये जनक ,
प्राणो से क्या ज्यादा प्यारा , तुमको क्या ,नरक?
फर्क पड़ता तुमको तो,तू रक्त से खर्च ,
ये ज़िन्दगी की सिख , तू दरिंदगी से बच.
ये मौसमो का खेल नही ,
न है वो खिलाडी ,खेलते हो तुम ,
पर बाजी उसने मारी ,
हारी अपनी ज़िन्दगी उसके पीछे सारी,
सुनाते फिर रहे हम बस अपनी लाचारी.
ये नदिया , ये पर्वते ,ये प्रकृति की करवटें,
ये बादलों की घोर में छुपे हुए ये जलजले,
कहीं बाढ़ कही सूखा , कहीं महामारी की लक्षणें,
कहीं ध्वनियों की शोर में , मरे लोग लाखो दर्जने.
हाँ ये हो रहा ओर हम देखते जा रहे ,
आँखों में है लालच मोहरा खुद को ही बना रहे ,
पा रहे कुछ नहीं ज़िन्दगी की दौड़ में ,
असलियत में बोलू तो.
हम खुद को ही लुटा रहे.
आदते है अपनी अपने हर इंसानो की ,
मिला कुछ छोटा नहीं की बड़ा उससे पाने की ..
चाहने की आदत बनी,ज़िन्दगी गवाने की ,
लाखो मर रहे पर आवाजों में कोई दम नहीं, ये मुद्दा उठाने की,
करो कम प्रदूषण ये लेती कई जाने नई,
रखो आवाजे सही न रखो आस
आज के आज करो न करो कल की बात
आज पे टिकी है पूरी भविष्य की लाज.
हर साल मना रहे हम , World Environment Day,
लोग करे बाते बस पर इसका न है समय ,
कागजो में, समाचारों में , दूर संचारो में ,
पर ये काफी नहीं ,ये उन सभी विचारो में ,
बढ़ो आगे आके एक पौधा भी लगाने में ,
हर दिन एक नयी ज़िन्दगी प्यार से सजाने में ,,
करो आज , कल का कोई पता नहीं ,
कल इंसान ही बन जाये, इक सोच किसी के ख्वाबों में!!