हवा चली शीतल पवन आती थी।आँधी तूफान लाती थी।अब हवा मे बीमारी हैं।हवा अब वाइरस बन गई हैं।वह अब पेड़, गली से नहीं,लोगो के श्वास नली से निकलती हैं।पतझड़ अब पेड़ो मे नहीं,अब तो पतझड़ इंसानों मे दिखती हैं।कटा पेड़ न्यूज मे दिखता हैं।मरा इंसान कब्रुस्तान या समसान मे दिखता हैं।पेड़ की टहनियाँ सूख कर खाद बनती हैं।
मेरी महफिल में तूने जो शिरकत की, इसलिए मैं तेरा शुक्र गुजार रहूंगा।मैं धन्य हुआ तेरे कदमों के आगाज से,महफिल जो आबाद हुई,तेरी सुरीली आवाज से।मैं वीरान खंडहर में पनपा अकेला एक पेड़,दिन भर सुनसान मैं खड़ाजिंदगी के रंगों को तलाशता रहता हूं,आज तूने यहां आकरहे कोयल तू ने यहां अपनीकूक से इस वीरान जिंदगी म
छांव की तलाशतप रहे हो धूप मे, तो तपो घूप मे, कर्म जो ऐसे किए हैं, घर की छत मे गमले लगा कर, गली के पेड़ को कटवाँ दिए है।जाव अब कहाँ जाओगे? लौट कर एक दिन पेड़ की छांव मे आओगे।भूल जाओगे शहर को एक दिन, गाँव जरूर आओगे।या फिर शहर को ही गाँव बनाओगे।यह तो मुमकिन ही नहीं, ना मुमकिन हैं। यह कोरोना महामारी से प
दिनकर की धूप पाकर भोजन बनाता है पेड़ दिनभर,लक्ष्यहीन अतरंगित असम्पृक्त को भटकन से उबारता है पेड़ दिनभर। चतुर्दिक फैली ज़हरीली हवा निगलता है पेड़ दिनभर, मुफ़्त मयस्सर प्राणवायु उगलता है पेड़ दिनभर। नीले शून्य में बादलों को दिलभर रिझाता है पेड़ दिनभर, आते-जाते थके-हारे परि
हमारे देश में कुछ भी अजीबोग़रीब हो जाए तो उसे चमत्कार कहकर धर्म से जोड़ देना बहुत आम बात है. ताजा मामला है उत्तर प्रदेश के सीतापुर ज़िले के रेउसा ब्लॉक का. यहां के सुरेठा गांव में ज़मीन पर पड़ा हुआ एक पीपल का पेड़ अपने आप खड़ा हो गया. धीरे-धीरे लोगों को इसके बारे में पता चला और
देश के एक जिम्मेदार नागरिक होने के नाते ,आपको पता होना चाहिए की आपके द्वारा दिया जाने वाले टैक्स या कर का पैसा कहाँ जा रहा हैं और जैसे कि हमारा लोकतंत्र पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, यहां कुछ ऐसा है जो हम सबको को जान ना चाहिए| मध्य प्रदेश सरकर हर साल १२ लाख रूपये वि. व
हर साल 5 जून को ’विश्व पर्यावरण दिवस’ ( World Environment Day) मनाया जाता है । यह दिन पर्यावरण के ज्वलंत मुद्दों के बारे में आम लोगों को जागरूक करने और इस दिशा में उचित कदम उठाने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र (United Nations) का प्रमुख साधन है ।इतिहास
प्रकृति एक भविष्य आशमाँ की छोर में, फैले जैसे आंधी,तूफान मचती जाये, जैसे दीप को बुझाती, पल दो पल में हो रही है ,काफी बर्बादी ,चारो ओर अँधेरा घोर ,फैला ये आबादी,ये मानवो की देन है ,और मानवो का अंत ,भविष्य की तू चिंता कर, क्या लेगा कोई