3 मई 2018
प्रकृति एक भविष्य आशमाँ की छोर में, फैले जैसे आंधी,तूफान मचती जाये, जैसे दीप को बुझाती, पल दो पल में हो रही है ,काफी बर्बादी ,चारो ओर अँधेरा घोर ,फैला ये आबादी,ये मानवो की देन है ,और मानवो का अंत ,भविष्य की तू चिंता कर, क्या लेगा कोई